कोरोना एक चिंताजनक बीमारी है. जहाँ इसके निदान के लिए पूरी दुनियाँ में कोशिशें चल रही हैं, वहीँ कुछ तत्व गल्प किस्से फ़ैलाने और तरह-तरह से भ्रांतियां बढ़ाने में मशगूल हैं. ज़ाहिर है, यह मामले की गंभीरता को क्षति पहुँचाने वाली हरक़त है. इनमे से ही युहान 400 का गल्प भी सोशल मिडिया पर प्रचलित है. क्या है इसका सच, आइए जानें…
पूरी दुनिया आज कोरोना वाइरस (COVID 19) के कहर से जूझ रही है. विश्वभर में कोरोना के संक्रमण से ग्रसित लोगों की संख्या दो लाख से अधिक हो चुकी है. दुनिया भर में इससे जान गँवाने वालों की संख्या दस हजार का आंकड़ा पार कर गयी है. भारत में अब तक सामने आए आंकड़ों के मुताबिक 223 लोग कोरोना के संक्रामण की चपेट में हैं और चार लोगों की मृत्यु हो चुकी है.
इस वाइरस के कहर के साथ ही दुनिया भर में इसके होने के कारणों पर बहस हो रही है और इससे बचने के उपायों पर चर्चा हो रही है. वैज्ञानिक इस वाइरस की उत्पत्ति के कारणों और इससे निपटने के उपायों की खोज में लगे हुए हैं. लेकिन जैसा कि ऐसी स्थितियों में होता है,अफवाहों का दौर-दौरा भी काफी तेज है. इसकी उत्पत्ति और निदानों को लेकर तरह-तरह की बातें चर्चा में हैं,ऐसी बातें जिनका कोई सिर-पैर या आधार नहीं है. लेकिन चर्चा उनकी आधिकारिक तथ्यों से भी ज्यादा आधिकारिक तरीके से हो रही है.
ऐसी ही चर्चाओं में एक अत्याधिक प्रचलित चर्चा यह है कि यह वाइरस चीन अपनी प्रयोगशाला में बना रहा था और वहाँ किसी की गलती के चलते यह बाहर आ गया और फिर इसने पहले चीन को अपनी चपेट में लिया और वहाँ से दुनिया भर में फैल गया. इस बात को साबित करने के लिए सबूत के तौर पर एक किताब का कवर पेज और एक पन्ना भी प्रसारित किया जा रहा है. दावा यह है कि उक्त किताब में चीन द्वारा युहान 400 नामक संक्रामक वाइरस बनाने की बात लिखी गयी है.चूंकि कोरोना का संक्रमण चीन के युहान शहर से फैला और किताब में वाइरस का नाम भी युहान 400 है तो इसे भी चीन द्वारा यह वाइरस प्रयोगशाला में बनाए जाने के सबूत के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है.
तो क्या वास्तव में ऐसी कोई भविष्यवाणी करने वाली किताब है,जिसमें 1981 में ही चीन द्वारा कोरोना वाइरस बनाने की घोषणा की गयी थी ? अगर ऐसा था तो 40 साल पहले की गयी इस खतरनाक भविष्यवाणी पर दुनिया ने अब तक ध्यान क्यूँ नहीं दिया ? सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जिस किताब की चर्चा हो रही है,क्या वह भविष्यवाणी करने वाली पुस्तक है या खोजी पत्रकारिता की कोई कृति जिसमें जांच-पड़ताल करके चीन द्वारा प्रयोगशाला में वाइरस बनाने की बात सिद्ध की गयी है ? आइये सिलसिलेवार तरीके से इन बातों को तथ्यात्मक तरीके से समझने की कोशिश करते हैं.
जिस पुस्तक के आधार पर चीन द्वारा प्रयोगशाला में कोरोना वाइरस बनाने का दावा किया जा रहा है,उस पुस्तक का नाम है- द आइज ऑफ डार्कनेस. न तो यह भविष्यवाणी करने वाली कोई पुस्तक है,ना ही खोजी पत्रकारिता की पुस्तक. यह एक अमेरिकी उपन्यासकार डीन कूंट्ज का उपन्यास है. 1981 में जब यह पहली बार प्रकाशित हुआ तो लेखक के तौर पर ले निकोलस के छद्म नाम का प्रयोग किया गया.
यह किसी ऐतिहासिक घटना को आधार बना कर लिखा गया उपन्यास भी नहीं है. स्वयं लेखक डीन कूंट्ज ने उपन्यास के बारे में लिखा है कि द आइज ऑफ डार्कनेस, एक्शन,सस्पेंस,रोमांस और परासामान्य (पारानॉर्मल) जैसी अंतरविधाओं को एक उपन्यास में बांधने की उनकी शुरुआती कोशिश थी.

“द आइज ऑफ डार्कनेस” अमेरिका के लास वेगास शहर में रहने वाली एक नाट्य निर्देशक महिला टीना की कहानी है. टीना का अपने पति माइकल से तलाक हो चुका है. उपन्यास जब शुरू होता है तो यह उल्लेख मिलता है कि टीना का दस वर्ष का बेटा डैनी एक स्काउट टूर के दौरान दुर्घटना का शिकार हुआ और मारा गया. पर जैसे-जैसे उपन्यास आगे बढ़ता है तो कुछ परासामान्य घटनाओं के चलते उसे आभास होता है कि डैनी काफी तकलीफ में है. वह यह भी महसूस करती है कि डैनी उसे यह आभास कराने की कोशिश कर रहा है कि वह मरा नहीं है.
टीना अपने वकील मित्र इलियट के जरिये अदालत में अपने बेटे की कब्र खोद कर उसका चेहरा पुनः देखने की अर्जी देती है. चूंकि इलियट और जज कैनेबेक सैन्य इंटेलिजेंस में साथ नौकरी कर चुके हैं,इसलिए इलियट को भरोसा था कि जज तत्काल ही उसकी अर्जी पर डैनी की कब्र दिखाये जाने का आदेश कर देगा. लेकिन जज ऐसा नहीं करता है. इसके तत्काल बाद टीना और इलियट दोनों पर जानलेवा हमला होता है,लेकिन वे दोनों बच जाते हैं. टीना से अलग हो चुका उसके पति की भी इस तरह हत्या की जाती है कि वह हार्ट अटैक प्रतीत हो. इसी प्रक्रिया में टीना और इलियट को मालूम पड़ता है कि अमेरिका में एक ऐसी खुफिया एजेंसी भी काम करती है,जिसके बारे में सार्वजनिक तौर पर कोई जानकारी नहीं है.
इस अंडरग्राउंड खुफिया एजेंसी से लड़ते हुए टीना और इलियट उस खुफिया प्रयोगशाला में पहुँचते हैं,जहां डैनी पर विभिन्न तरह के प्रयोग किया जा रहे हैं. डैनी की परासामान्य शक्तियों तथा इलियट और टीना के साहस के दम पर डैनी प्रयोगशाला की कैद से मुक्त होता है.
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यह उपन्यास का कथा सार है. लेकिन प्रश्न यह है कि इसमें उस युहान 400 वाइरस का जिक्र कहाँ है,जिसके आधार पर चीन को प्रयोगशाला में कोरोना वाइरस बनाने का जिक्र कहाँ है ? डैनी की खोज में जब इलियट और टीना घने जंगलों और पहाड़ों के बीच स्थित खुफिया प्रयोगशाला पहुँचते हैं तो वहाँ काम करने वाले एक वैज्ञानिक के मुंह से उपन्यासकार ने युहान 400 वाइरस का उल्लेख करवाया है. कार्ल डूंबे नाम का वैज्ञानिक इस खुफिया प्रयोगशाला में होने वाले प्रयोगों का पक्षधर नहीं है. कार्ल डूंबे कहता है कि 20 महीने पहले चीनी वैज्ञानिक ली चेन अमेरिका आ गया. साथ में वह चीन द्वारा इस दशक में विकसित किए जा रहे सर्वाधिक महत्वपूर्ण और घातक नए जैविक हथियार का रिकॉर्ड भी ले कर आया. “वे इस सामग्री को युहान 400 कहते हैं.”
उपन्यासकार द्वारा कार्ल डूंबे नामक पात्र के मुंह से कहलवाए गए इस संवाद के आधार पर ज़ोरशोर से यह प्रचार किया जा रहा है कि चीन ने प्रयोगशाला में वाइरस बना कर फैलाया. जहां तक उपन्यास का सवाल है तो उसमें वाइरस चीन में बना हुआ भले बताया गया है,लेकिन फैलता वह चीन से नहीं है. बल्कि अमेरिका की उस खुफिया प्रयोगशाला से फैलता है,जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है. अगर इस उपन्यास के आधार पर ही देशों का चरित्र निर्धारण होना है तो सर्वाधिक स्याह तस्वीर इससे अमेरिका की ही उभरेगी.
युहान 400 वाइरस के उल्लेख से पहले डूंबे कहता है कि उक्त अमेरिकी प्रयोगशाला में रासयानिक और जैविक हथियारों का प्रयोग चल रहा है. वह कहता है कि सार्वजनिक रूप से भले ही अमेरिका रासयानिक और जैविक हथियारों की दौड़ से अलग हो गया हो,लेकिन खुफिया तौर पर यह काम जारी है. उसी प्रयोगशाला में चार साल तक डैनी नामक उस बच्चे पर विभिन्न रासयानिक और जैविक वाइरसों का प्रयोग किए जाने की कथा भी उपन्यास में कही गयी है,जिसे दस वर्ष की उम्र में उसके परिजनों और समाज के सामने अमेरिकी सरकार मृत घोषित कर चुकी होती है. लेकिन चूंकि यह गल्प है तो यह अमेरिका के चरित्र निर्धारण का पैमाना तो नहीं हो सकता और ना ही चीन के.

चीन में वाइरस बनने के किस्से का एक रोचक पहलू यह भी है कि जब यह उपन्यास पहली बार प्रकाशित हुआ था तो उसमें चीन का उल्लेख ही नहीं था. 1981 में पहली बार प्रकाशित होते समय इसमें वाइरस का नाम था- गोर्की 400 जो रूस के शहर के नाम पर था. इसे अमेरिका लाने वाले पात्र का नाम भी ली चिन न हो कर रूसी इलिया पोपारोव था. 1989 में सोवियत संघ के विघटन के बाद जब डीन कूंट्ज ने इस उपन्यास का नया संस्करण निकाला तो रूसी शहर,वाइरस और रूसी वैज्ञानिक की जगह पर उन्होंने इन सब को चीनी बना दिया. जाहिरा तौर यह बदलाव अमेरिका की राजनीतिक और आर्थिक प्रतिद्वंद्विता के पात्रों के बदलने के मद्देनजर किया गया.
जब एक फतांसी भरे उपन्यास को करोना जैसे महामारक वाइरस के लैब में बनाए जाने के सबूत के तौर पर स्थापित करने की कोशिश होती है तो गल्प,मिथक और तथ्य में फर्क न कर पाने का एक और नमूना है. साथ ही इस बात को भी दिखाता है कि संकट कितना ही बड़ा और गंभीर क्यूँ न हो लेकिन कुछ लोगों को सिर्फ अवैज्ञानिकता,कुतर्क और अफवाहों का ही प्रचार प्रसार करना है.
लेकिन विश्वभर में वैज्ञानिक निरंतर कोरोना वाइरस की उत्पत्ति और निदान की खोज में लगे हुए हैं. 17 मार्च 2020 को प्रसिद्ध शोध पत्रिका-“नेचर मेडिसिन” में पाँच अमेरिकी,ब्रिटिश और ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों-क्रिस्टन जी एंडरसन,एंड्रयू रैमबट,डब्ल्यू. लैन लिपकिन,एडवर्ड सी होम्स,रोबर्ट एफ गैरी का शोध प्रकाशित हुआ है. उक्त शोध में ये वैज्ञानिक कहते हैं कि यह संभव ही नहीं है कि कोरोना वाइरस का निर्माण प्रयोगशाला में किया गया हो.उनका कहना है कि यह वाइरस जानवरों से ही मनुष्य में आया है. चीन के युहान प्रांत के हुनान मार्केट से इसकी शुरुआत होने के संदर्भ में उक्त वैज्ञानिकों का मत है कि जानवर स्रोत जिससे यह वाइरस फैला,वह जरूर इस स्थान पर मौजूद रहा होगा.
मनुष्यता के सामने एक बड़ा संकट आ कर खड़ा हो गया. निश्चित ही अफवाहबाजी और अवैज्ञानिक तौर-तरीकों के बजाय वैज्ञानिक नजरिए को अंगीकृत करने की जरूरत है. विज्ञान और वैज्ञानिक सोच-समझ ही हैं,जो मनुष्यता को इस भीषण संकट से उबार सकते हैं.
-इन्द्रेश मैखुरी (नुक्ता-ए-नज़र से साभार)