कविताएं इस सप्ताह : सपना देखने का अधिकार !
चंद ताज़े मौजूँ शे'र…. / रवि सिन्हा लोग किस रंग में नहाये हैं हम तो दामन बचा के आये हैं...
चंद ताज़े मौजूँ शे'र…. / रवि सिन्हा लोग किस रंग में नहाये हैं हम तो दामन बचा के आये हैं...
राजा ने कहा 'जहर पीओ' …वह मीरा हो गई / शरद कोकास वह कहता था, वह सुनती थी, जारी था...
माँ / राजाराम चौधरी माँ पहली कविता है मानव की बचपन डोलता रहता है अपने में मगन तोतली जुबान में...
इन सबका दुख गाओगे या नहीं / भवानीप्रसाद मिश्र इस बार शुरू से धरती सूखी है हवा भूखी है वृक्ष...
अभी वही है निज़ामे कोहना / ख़लीलुर्रहमान आज़मी अभी वही है निज़ामे कोहना अभी तो जुल्मों सितम वही है अभी...
सड़कें / रूपाली एक उनके सीनों पर ठोंक दी गईं कीलें खड़ी कर दी गई ऊँची बाड़ें समतल सड़कों को...
शासन की बंदूक / नागार्जुन खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक उस...
कैसे न वे / स्वप्निल श्रीवास्तव कैसे न वे अचूक निशानेवाज बन जाये जब द्रोणाचार्य ही हाथ उठाकर उनके पक्ष...
"चार कौवे उर्फ चार हौवे" / भवानी प्रसाद मिश्र (देश की सर्वोच्च अदालत ने 'किसानों के भले के लिए' कमेटी...
मजदूर निहार रहे थे उस दिन मजदूर निहार रहे थे अपनी पत्नियों को पत्नियाँ समझ नहीं पाईं आज इनको ये...