किसी भी विरोध प्रदर्शन के वक़्त धारा 144 जारी करना प्रावधान का दुरुपयोग है: सुप्रीम कोर्ट

यह फैसला तो नज़ीर बन गया! लेकिन क्या भाजपा सरकारों द्वारा विरोध के स्वर को कुचलने के लिए धारा 144 का लगातार दुरुपयोग रुकेगा? क्या मज़दूरों को भी प्रदर्शन हेतु राहत मिलेगी?
सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए अधिकारियों द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के लगातार इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त की। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की अध्यक्षता में सुनवाई के दौरान, सार्वजनिक प्रदर्शनों को प्रतिबंधित करने वाले आदेश जारी करने के लिए इस प्रावधान के दुरुपयोग की जांच की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को विरोध और प्रदर्शनों को रोकने के लिए कर्फ्यू आदेश जारी करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 144 (धारा 163 BNSS) के दुरुपयोग को चिह्नित किया।
अदालत ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा,
“एक प्रवृत्ति है कि क्योंकि कोई विरोध प्रदर्शन है, इसलिए धारा 144 का आदेश जारी किया जाता है। यह गलत संकेत देता है। अगर कोई प्रदर्शन करना चाहता है तो धारा 144 जारी करने की क्या आवश्यकता है? ऐसा लगता है कि धारा 144 का दुरुपयोग किया जा रहा है।”
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ झारखंड राज्य द्वारा दायर उस याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें 2023 में राज्य सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के संबंध में निशिकांत दुबे, अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी सहित 28 BJP नेताओं के खिलाफ मामला रद्द कर दिया गया।
क्या है मामला?
यह मामला झारखंड राज्य में वर्ष 2023 में भाजपा नेताओं पर सचिवालय मार्च के दौरान पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी से संबंधित है। घटना में धारा 144 लागू होने के बावजूद भाजपा द्वारा प्रोजेक्ट भवन के पास एक विरोध प्रदर्शन हुआ था। पुलिस ने दावा किया कि विरोध प्रदर्शन के दौरान, भाजपा नेताओं ने बैरिकेड्स तोड़ने का प्रयास किया और बोतलें और पत्थर फेंके।
सचिवालय तक मार्च पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा, अन्नपूर्णा देवी, सांसद निशिकांत दुबे और राज्य के पार्टी सांसदों के नेतृत्व में शुरू हुआ था। भाजपा कार्यकर्ताओं ने पुलिस बैरिकेड तोड़कर बलपूर्वक आगे बढ़ने की कोशिश की थी, जिसपर पुलिस ने लाठीचार्ज किया और इस मामले में प्राथमिकी भी दर्ज की थी।
हाईकोर्ट ने किया था खारिज
झारखंड हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए 14 अगस्त 2024 को अपना फैसला सुनाया था और दुबे, मरांडी सहित 28 भाजपा नेताओं के खिलाफ़ एफआईआर यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरोपियों पर पथराव करने और पुलिस बैरिकेड तोड़ने का कोई सीधा आरोप नहीं है।
हाईकोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार की संवैधानिक गारंटी की पुष्टि की और कहा था कि शीर्ष नेताओं को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
झारखंड सरकार ने झारखंड हाईकोर्ट द्वारा भाजपा नेताओं के खिलाफ दंगा करने के आरोप को रद्द करने के फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही के दौरान, राज्य के वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि आरोपियों ने धारा 144 CrPC आदेश का उल्लंघन किया और एक हिंसक प्रदर्शन का नेतृत्व किया। कहा कि विरोध प्रदर्शन के कारण सरकारी कर्मचारियों, पुलिस अधिकारियों और पत्रकारों को चोटें आईं।
इन तर्कों के बावजूद, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। खंडपीठ ने झारखंड सरकार की याचिका को खारिज कर दिया, और हाईकोर्ट के इस रुख को बरकरार रखा कि विरोध करने के मौलिक अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।
यह फैसला नज़ीर है, क्या भाजपा नेताओं के अलावा भी लागू होगा?
गौरतलब है कि इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस ओक ने मौखिक रूप से कहा, “यह प्रवृत्ति है कि चूंकि कोई विरोध प्रदर्शन हो रहा है, इसलिए 144 (CrPC) का आदेश जारी कर दिया जाता है। इससे गलत संदेश जाएगा। अगर कोई प्रदर्शन करना चाहता है तो 144 जारी करने की क्या आवश्यकता है? ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि 144 का दुरुपयोग किया जा रहा है।”
इसी आधार पर शीर्ष अदालत ने भाजपा नेताओं को राहत दी है। हालांकि अब यह नज़ीर बन जाएगी और भाजपा शासित राज्यों द्वारा लगातार इसके दुरुपयोग को भी चुनौती दी जा सकेगी।
गौरतलब है कि मज़दूरों द्वारा अपने न्यायसंगत विरोध प्रदर्शन की हर आवाज को कुचलने के लिए लगातार कथित शांतिभंग हथियार के रूप में इस्तेमाल होता है। औद्योगिक क्षेत्र से लेकर श्रम भवन और जिला मुख्यालयों पर भी प्रदर्शन रोकने के लिए धारा 144 (अब धारा 163 BNSS) का दुरुपयोग होता है। चुनाव के समय प्रशासन द्वारा धरना हटवा दिया जाता है।
अब यह कहना मुश्किल है कि उन स्थितियों में क्या होगा, जब भाजपा सरकारों द्वारा विरोध के हर स्वर को कुचलने के लिए धारा 144 का लगातार इस्तेमाल हो रहा है, क्योंकि भाजपा सरकारों के लिए सारे क़ानून और फैसलों की व्याख्या अपने हित की होती है।