सवित्रीबाई जन्मदिवस: शिक्षा के साथी और सावित्रीबाई जन्मोत्सव समिति द्वारा विविध आयोजन

सबरंग मेला : विविध विषयों पर चर्चा, नाटक, चित्रकला, नृत्य, गीत और कविता पाठ का आयोजन। क्योंकि कठिन दौर में आज सावित्रीबाई और फातिमा शेख को याद करना ज्यादा प्रासंगिक है।
गुड़गांव। इस 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले का 194वां जन्मदिन था। गुडगाँव में शिक्षा के साथी और सावित्रीबाई जन्मोत्सव समिति ने सबरंग मेला के रूप में आठवीं बार इस दिन को मनाया और भारत में शिक्षा के समान अधिकार के लिए सावित्रीबाई और फातिमा शेख के योगदान को याद किया। सावित्री और फातिमा भारत की पहली महिला शिक्षिका थीं, जिन्होंने महिलाओं और दलितों को पहली बार शिक्षा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया।

विविध चर्चा, नाटक, चित्रकला, नृत्य, गीत, कविता पाठ का आयोजन
इस वर्ष, शिक्षा के साथी ने सबरंग मेला कार्यक्रम के इर्द-गिर्द कई चर्चा सत्र आयोजित किए। भारतीय आर्थिक व्यवस्था के इतिहास, भारत में लैंगिक आंदोलन, फिलिस्तीन का इतिहास और वर्तमान स्थिति, भारत में स्वतंत्रता आंदोलन में मजदूर वर्ग के आंदोलनों की भूमिका और अन्य विषयों पर चर्चा हुई। हर साल की तरह इस साल भी सावित्रीबाई जन्मोत्सव कार्यक्रम में नाटक, चित्रकला, नृत्य, गीत और कविता पाठ का भी आयोजन किया गया। लेकिन इसमें आंशिक रूप से उन चर्चाओं से प्रस्तुतियाँ भी शामिल थीं।
फिलिस्तीन के स्वतंत्रता संग्राम के दो गीतों का हिंदी में अनुवाद किया गया और पिछले कई महीनों से बुरी तरह पीड़ित फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता दिखाते हुए शिक्षा के साथी के युवाओं द्वारा उनका प्रदर्शन किया गया।

सामाजिक-राजनीतिक स्थिति गंभीर; नफ़रत का माहौल
शिक्षा के साथी ने सावित्रीबाई जन्मोत्सव 2025 के लिए प्रकाशित परचा में लिखा है कि यद्यपि यह दिवस खुशी के साथ मनाया जा रहा है, लेकिन इस कार्यक्रम के अंतर्निहित सामाजिक-राजनीतिक स्थिति गंभीर है। भारत को दलित, आदिवासी, मुसलमान और ईसाई समुदायों पर अत्याचार के मामलों में दुनिया के सबसे भयानक 15 देशों में से एक माना गया है। अगर केवल शिक्षा के संदर्भ में ही बात किया जाये तो इसमें भी इन समुदायों को काफी संघर्ष करना पड़ता है।

दलित छात्र की हत्या (जैसे राजस्थान, 2022), मुस्लिम बच्चे का सहपाठियों द्वारा अपमान (जैसे यूपी, 2023), और आदिवासी लड़की के साथ शिक्षक द्वारा यौन हिंसा (जैसे गुजरात, 2024) जैसी घटनाएं आम हो चुकी हैं। इनमें से अधिकांश मामलों में अपराधियों को सजा नहीं मिलती। सिर्फ अत्याचार ही नहीं, केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा में नया पाठ्यक्रम लाकर छात्रों के लिए भारत के इतिहास को बदलने का प्रयास किया जा रहा है।

आज़ादी की लड़ाई में हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई समुदायों के सहयोग और त्याग की कहानियों को हटाकर नफरत और झूठी घटनाओं को पाठ्यक्रम में जोड़ा जा रहा है। बाबासाहेब अंबेडकर के लेख, भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार, गांधी की हत्या में आरएसएस की भूमिका, और गुजरात में मुसलमानों पर हुए अत्याचार जैसे विषयों को पाठ्यक्रम से हटाया जा रहा है। इसका उद्देश्य बच्चों को समाज की सच्चाई से दूर रखना और शिक्षा को असमानता और नफरत फैलाने का औजार बनाना है।

इसी साल तेलंगाना पुलिस ने रोहित वेमुला की मौत की जांच बंद कर दी है, यह दावा करते हुए कि वह दलित नहीं था और उसने आत्महत्या कर ली क्योंकि उसे डर था कि उसकी “असली जाति पहचान” उजागर हो जाएगी। इसी साल राजस्थान सरकार ने एक दलित शिक्षक का वेतन 10 महीने तक रोक दिया, इसलिए की उन्होंने देवी सरस्वती को नहीं, सावित्रीबाई फुले को शिक्षा की असली देवी मानी थी।

सावित्रीबाई और फातिमा शेख को याद करना आज ज्यादा प्रासंगिक
ऐसे संदर्भों में, सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख को याद करना पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। शिक्षा के साथी को उम्मीद है कि उसका वार्षिक उत्सव और पूरे वर्ष चलने वाला उसका शिक्षण कार्यक्रम जारी रहेगा, जिसमें अधिकाधिक संख्या में ऐसे छात्र शामिल होंगे, जिन्हें मुख्यधारा की कॉर्पोरेट-संचालित शिक्षा प्रणाली अक्सर बेकार समझती है।