जरा चश्मा उतारो, फिर देखो यारों!

उत्तरप्रदेश, जहाँ बेरोजगारी चरम पर है, शिक्षा-इलाज तक दुर्दशा में है, वहाँ नागरिक चेतन गायब है। ट्रेन या बस में सफर करते वक़्त भी महसूस कर सकते है कि कैसे हर आम की राजनीतिक बातचीत को धार्मिक चश्मा पहना दिया जाता है।

  • उत्तम

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी के मुताबिक साल 2022 के मई महीने में भारत में करीब 40 करोड़ 40 लाख लोगों के पास किसी न किसी तरह का रोजगार था। केवल एक महीने बाद यह संख्या घटकर तकरीबन 39 करोड़ हो गयी है। यानी केवल एक महीने में तकरीबन 1 करोड़ 30 लाख लोग बेरोजगार हो गए। इस बीच देशभर में हिन्दू मुस्लिम से जुड़े कई मसले सामने आते रहे।

उत्तर प्रदेश में आम जीवन और समाज में बदहाली और बढ़ती विषमताओं की अनेको व्याख्याए दी जा सकती हैं। नीति आयोग के 2021 में जारी किए गये आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 37 प्रतिशत लोग गरीब हैं। संसद में दिए गए एक जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि देश भर में शिक्षकों के दस लाख से भी अधिक पद खाली हैं, जिसमे करीब पांच लाख सरकारी शिक्षकों के पद केवल यू पी  और बिहार में रिक्त हैं।

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक 1 लाख आबादी के लिए जिला अस्पताल में बिस्तरों की औसत संख्या यूपी में सबसे कम है। यूपी में प्रति लाख की आबादी पर एक जिला अस्पताल में औसतन सिर्फ 13 बेड हैं।

इन सबके बीच उत्तर प्रदेश हिंदुत्व की राजनीति की प्रयोगशाला बनी हुई है। अयोध्या, बनारस और गोरखपुर इसके वो केंद्र है जहाँ राजनीत और धर्म का एक स्थायी गठजोड़ बन चुका है। इसके नतीजे में ये हुआ है कि उत्तर प्रदेश से किसी भी तरह की नागरिक चेतना की समाप्ति हो गई है। आप यहाँ ट्रेन या बस में सफर करते वक़्त भी यह महसूस कर सकते है कि कैसे हर आम की राजनीतिक बातचीत को धार्मिक चश्मा पहना दिया जाता है।

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प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के काम की समीक्षा कर पाने की क्षमता समाप्त सी हो गई है। उन्हें मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री होने से ज्यादा एक पंडित, पुजारी या तपस्वी की तरह देखा जाता है और ये उम्मीद की जाती है कि हफ्ते में कम से कम एक बार लाइव टीवी पर आकर वो पूजा अर्चना जरूर करें। भाजपा के वोटर कई बार ये भी कहते हुए पाए जाते हैं कि योगी जी और मोदी जी ने जीवन त्याग कर तपस्या किया है इसलिए वो उस मुकाम तक पहुंचे हैं।

वो अपने नेता के सामने इतने बुजदिल हैं कि खुद भी नहीं मानते कि उनके ही वोट से ही भाजपा की सरकार बनी है। इस तरह का एक जनमत तैयार हुआ जो किसी भी तरह की प्रगितशील चेतना पर हावी है। हाँ ये जरूर है कि कुछ कुछ इलाको में सड़के अच्छी बनी है, जिसे गांव देहात में विकास मान लिया जाता है लेकिन उसका भी समुचित मूल्यांकन करे तो पाएंगे कि कोक-पेप्सी के गाँव तक आसानी से पहुँचने के मतलब के साथ उसका सबसे ज्यादा आर्थिक लाभ ठेकेदारों को ही मिलता है।

शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ के क्षेत्र में कोई मूलभूत बदलाव नही आया है। इन सब मुद्दों से ध्यान भटकाए रखने के लिए लगातार एक के बाद एक उन्मादी मुद्दों के ज़रिए जनता को उलझाए रखा जाता है। जनता भी अपने नेता को एक दबंग की तरह देखती है।

इसलिए भी ये इतना आसान है कि दिल्ली में पढ़ने वाले किसी छात्र को सजा देने के नाम पर उसके घर को बुलडोज़र से गिरा दिया जाता है और ये काम मुख्यमंत्री ट्वीट करके करते है।

मैं एक बार भाजपा को ही वोट देने वाले यू पी के परिचित इंसान से बात कर रहा था तो उन्होंने हँसते हँसते फोन पर कहा कि ‘योगी जी त पहले गोरखपुर के गुंडा रहन’ और फिर और जोर से हंस पड़े।

बुलडोज़र द्वारा आमलोगों का घर गिराकर उन्होंने साबित किया है कि वो मुख्यमंत्री के साथ साथ खुद को शायद उसी फ्रेम से देखते है। हम सबको बाहुबली और गुंडों को सत्ता से बाहर करने की जरूरत है।

‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिकाअंक-47 (जुलाई-सितम्बर, 2022) में प्रकाशित

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