मिल्टन साइकिल कंपनी बगैर वेतन दिए हुई थी बंद, पिछले छह महीने से मज़दूर संघर्षरत

मिल्टन में एक समय डेढ़ लाख साइकिल बनती थीं। इसके बावजूद वह दो साल से लगातार श्रमिकों को निकलती रही। जब कंपनी में मात्र 250 श्रमिक बचे तो बगैर वेतन दिए बंद कर दिया।

हरियाणा के सोनीपत स्थित मिल्टन साइकिल कंपनी के श्रमिक पिछले छह महीने से अपनी तनख़्वाह का इंतज़ार कर रहे है। संपत्ति को लेकर हुए विवाद के बाद मिल्टन के मालिकों ने फ़ैक्ट्री बंद कर दी लेकिन मज़दूरों का न वेतन दिया, न ही ग्रेच्युटी। बढ़ती महंगाई और काम के अभाव में मज़दूर अब सड़कों पर है।

कंपनी के मालिक संपत्ति के विभाजन को लेकर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में कानूनी लड़ाई में हैं और उन्होंने छह महीने से अधिक समय के लिए काम को निलंबित कर दिया था। कंपनी के इस फैसले से सैकड़ों श्रमिकों की नौकरी चली गई है और वेतन तक नहीं मिला।

आक्रोशित मज़दूर कारखाने के गेट के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। मजदूरों का आरोप है कि मालिकों ने बिना किसी पूर्व सूचना के उत्पादन रोककर काम बंद कर दिया। बिना किसी नौकरी के, श्रमिक अपना घर चलाने और अपने बच्चों की शिक्षा के लिए धन जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

मिल्टन साइकिल वर्कर्स यूनियन के प्रधान सुरेंद्र सिंह के अनुसार, ‘मिल्टन में दो साल पहले तक हजारों साइकिल बनती थीं और कंपनी को ऑर्डर भी खूब मिल रहे थे। परिवार की खींचतान का असर कंपनी का पड़ता रहा और कर्मचारियों के बारे में कुछ नहीं सोचा गया। अचानक कंपनी पर ताला लगा दिया गया और कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दिया गया।’

1951 से एटलस और मिल्टन थी कायम, विवाद से बंटवारा

सोनीपत में साल 1951 में एटलस साइकिल लिमिटेड की पहली यूनिट शुरू करने के बाद दूसरी यूनिट मिल्टन साइकिल इंडस्ट्रीज लिमिटेड के नाम से उसी समय औद्योगिक क्षेत्र में शुरू की गई थी। मिल्टन कंपनी साल 2003 तक साइकिल के पार्ट बनाकर एटलस को भेजती थी और वहां साईकिल तैयार की जाती थी।

2003 में पारिवारिक विवाद के बाद कंपनी में बंटवारा हो गया। तब मिल्टन कंपनी जयदेव कपूर के हिस्से में आई थी और एटलस साइकिल अरुण, विक्रम व राजीव कपूर के हिस्से में। इसके बाद उसी साल मिल्टन में भी साइकिल निर्माण का काम शुरू हुआ था।

कंपनी में तेजी से विकास, बम्पर मुनाफा

कंपनी ने लगभग 700 कर्मचारियों के साथ एक महीने में 70 हजार साइकिल बना शुरू किया था। इसके बाद मांग तेजी से बढ़ने के साथ साल 2008 तक डेढ़ लाख साइकिल का उत्पादन होने लगा था। कंपनी अपनी साइकिल एशिया के अधिकतर देशों में निर्यात करने लगी। इस बीच एटलस ग्रुप अपनी शाखा बंद करने लगी। इसके बाद मिल्टन ने भी प्लांट बंद करने की दिशा में बढ़ी।

इससे पहले गाजियाबाद के साहिबाबाद स्थित एटलस का एक प्लांट डेढ़ साल पहले बंद हुई थी। अब मिल्टन पर ताला लगा है।

कंपनी ने धीरे-धीरे श्रमिकों को निकाला, फिर बंद किया

कंपनी दो साल से लगातार अपने श्रमिकों को निकाल रही थी। जब कंपनी में 1200 से मात्र 250 स्थाई श्रमिक रह गए थे तब कंपनी को बंद करने का फैसला ले लिया। श्रमिकों को मार्च 20 से मार्च 21 तक आधा वेतन दिया गया। उसके बाद से वेतन देना बंद कर दिया गया।

मिल्टन साइकिल वर्कर्स यूनियन के प्रधान सुरेंद्र सिंह का कहना है कि मिल्टन कंपनी में बनने वाले साइकिल की मांग बाजार थी मुनाफा भी था लेकिन परिवारिक मतभेद के कारण कंपनी पर ताला लगा। कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला।

About Post Author