सप्ताह की कविता : पाश की कविताएं !

सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना / पाश

सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती,
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती,
गद्दारी, लोभ का मिलना सबसे
खतरनाक नहीं होता,
सोते हुये से पकड़ा जाना बुरा तो है,
सहमी सी चुप्पी में जकड़ जाना
बुरा तो है,
पर सबसे खतरनाक नहीं होता,
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा
शान्ति से भर जाना,
न होना तड़प का सब कुछ सहन कर जाना,
घर से निकलना काम पर और काम से
लौट कर घर आना,
सबसे खतरनाक होता है, हमारे
सपनों का मर जाना ।
सबसे खतरनाक होती है, कलाई पर
चलती घड़ी, जो वर्षों से स्थिर है।
सबसे खतरनाक होती है वो आंखें
जो सब कुछ देख कर भी पथराई सी है,
वो आंखें जो संसार को प्यार से
निहारना भूल गयी है,
वो आंखें जो भौतिक संसार के
कोहरे के धुंध में खो गयी हो,
जो भूल गयी हो दिखने वाली
वस्तुओं के सामान्य
अर्थ और खो गयी हो व्यर्थ के खेल
के वापसी में ।
सबसे खतरनाक होता है वो चांद, जो
प्रत्येक हत्या के बाद उगता है
सूने हुए आंगन में,
जो चुभता भी नहीं आंखों में,
गर्म मिर्च के सामान
सबसे खतरनाक होता है वो गीत जो
मातमी विलाप के साथ कानों में
पड़ता है,
और दुहराता है बुरे आदमी की
दस्तक, डरे हुए लोगों के दरवाजे पर ।


सपने / पाश

हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग के सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुयी
हथेली को पसीने नहीं आते
शेल्फों में पड़े
इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़मी है
झेलने वाले दिलों का होना
नींद की नज़र होनी लाज़मी है
सपने इसलिए हर किसी को नहीं आते


मैं घास हूँ / पाश

मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर
बना दो होस्टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे क्या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊंगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी…
दो साल… दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।


हम लड़ेंगे साथी / पाश

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिये
हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्छाओं के लिये
हम चुनेंगे साथी, जिंदगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीखती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कंधों पर चढ़कर

हम लड़ेंगे साथी
कत्ल हुए जज्बों की कसम खाकर
बुझी हुई नजरों की कसम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की कसम खाकर

हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले खुद नहीं सूंघते
कि सूजी आंखों वाली
गांव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्व से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाईयों का गला घोटने को मजबूर हैं
कि दफतरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर

हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की जरुरत बाकी है
जब तक बंदूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की जरूरत होगी

और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता

हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं

हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे.



अवतार सिंह संधू (9 सितम्बर 1950 – 23 मार्च 1988), जिन्हें सब पाश के नाम से जानते हैं पंजाबी कवि और क्रांतिकारी थे।

अवतार सिंह पाश उन चंद इंकलाबी शायरो में से है, जिन्होंने अपनी छोटी सी जिन्दगी में बहुत कम लिखी क्रान्तिकारी शायरी द्वारा पंजाब में ही नहीं सम्पूर्ण भारत में एक नई अलख जगाई। जो स्थान क्रान्तिकारियों में भगत सिंह का है वही स्थान कलमकारो में पाश का है। इन्होंने गरीब मजदूर किसान के अधिकारो के लिये लेखनी चलाई, इनका मानना था बिना लड़े कुछ नहीं मिलता उन्होंने लिखा “हम लड़ेगें साथी” तथा “सबसे खतरनाक होता है अपने सपनों का मर जाना” जैसे लोकप्रिय गीत लिखे। आज भी क्रान्ति की धार उनके शब्दों द्वारा तेज की जाती है।।


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