मासा ने मज़दूर नेताओं पर प्रशासन द्वारा गुंडा एक्ट लगाने की साजिश का किया पुरजोर विरोध

पीड़ित मज़दूरों को दबाने की कोशिश और मज़दूर नेताओं पर गुंडा एक्ट थोपने से खौफ का माहौल बनाने की निंदनीय घटना उत्तराखंड में बढ़ते पुलिसिया राज का एक उदाहरण मात्र है। -मासा
उत्तराखंड के सिडकुल, पंतनगर में मज़दूर हक़ की आवाज उठाने वाले मज़दूर नेताओं पर ऊधम सिंह नगर के जिला प्रशासन द्वारा गुंडा एक्ट लगाने एवं जिला बदर करने की चेतावनी के साथ नोटिस जारी करना तथा श्रमिक संयुक्त मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष को एसएसपी द्वारा गुंडा कहकर चैंबर से निकालना बेहद शर्मनाक है।
देश के विभिन्न संघर्षशील मज़दूर यूनियनों व संगठनों के साझा मंच ‘मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान’ (मासा) ने इस बेहद क्षोभपूर्ण व निंदनीय घटना की तीखे शब्दों में भर्त्सना और पुरजोर विरोध किया है। इसके खिलाफ मासा की केन्द्रीय समन्यवय समिति की ओर से 29 जून को बयान जारी किया गया है।
मासा द्वारा जारी पूरा बयान-


इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र के पूर्व अध्यक्ष कैलाश भट्ट व डॉल्फिन मज़दूरों पर गुंडा एक्ट की नोटिस और जिला बदर करने की चेतावनी घोर निंदनीय!
मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) मजदूर आंदोलन के अपराधीकरण और पुलिस राज कायम करने की इस कोशिश की पुरजोर मुखालफ़त करता है!
उत्तराखंड के भाजपा राज में, विशेष रूप से राज्य के औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल में पूंजीपतियों के साथ पुलिस-प्रशासन एवं श्रम विभाग के अधिकारियों का गठजोड़ एकदम नंगे रूप में मज़दूरों पर हमलावर है। कंपनी मालिकों के हित में यह घोर अंधेरगर्दी व मज़दूरों का दमन राज्य की धामी सरकार के स्पष्ट निर्देशन में जारी है।
ताजा घटनाक्रम में सिडकुल, पंतनगर में बुनियादी श्रम कानूनों को लागू करने, मालिक के गुंडों के हमलों व दमन के खिलाफ डॉलफिन मज़दूरों के जारी आंदोलन के दौरान उधमसिंह नगर के जिलाधिकारी द्वारा इंकलाबी मज़दूर केंद्र के पूर्व अध्यक्ष कैलाश भट्ट सहित डॉलफिन मज़दूर संगठन के नेताओं ललित कुमार, सोनू कुमार, वीरु सिंह, बबलू सिंह और राजेश सक्सेना पर गुंडा एक्ट लगाने एवं जिला बदर करने की चेतावनी के साथ नोटिस जारी किये गये हैं। जिले के एसएसपी की रिपोर्ट के आधार पर 19 जून को जारी किये गये इन नोटिसों की भाषा भी बेहद निम्न स्तरीय और आपत्तिजनक है।
डालफिन के मज़दूर न्यूनतम वेतनमान देने, बोनस, डबल ओवरटाइम भुगतान और स्थाई नौकरी के स्थान पर जबरन मजदूरों को ठेकेदार के तहत करने के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। प्रतिशोधवश डालफिन प्रबंधन ने मजदूर नेताओं की गेटबंदी कर दी, मज़दूरों के साथ गुंडई, जानलेवा हमले और महिला मज़दूरों के साथ छेड़खानी जैसी घटियाई पर उतर आया। इन तमाम घटनाओं के बाद महिला मजदूरों व अन्य द्वारा समय-समय पर पुलिस को दी गई तहरीर पर कोई मुकदमा दर्ज नही किए गए, उल्टा मजदूर नेताओं व उनके सलाहकारों पर फर्जी मुकदमे दर्ज कर दिए गए।
इस अन्याय के खिलाफ 18 जून 2024 को श्रमिक संयुक्त मोर्चा उधमसिंह नगर का एक प्रतिनिधि मंडल एसएसपी महोदय से मिलने गया तो उन्होंने मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष दलजीत सिंह को गुंडा कहकर जलील करते हुए अपने कार्यालय से बाहर निकाल दिया। एसएसपी ने मोर्चा प्रतिनिधि मंडल से कहा कि मजदूर अपनी तहरीर से डालफिन कंपनी का नाम हटा लें तो मुकदमा दर्ज कर लिया जाएगा। 20 जून को मोर्चा इसकी शिकायत लेकर डीएम महोदय से मिला और उनके माध्यम से पुलिस महानिरीक्षक महोदय कुमाऊ क्षेत्र को ज्ञापन प्रेषित करके हस्तक्षेप करने की मांग की। उस समय डीएम महोदय ने अपने स्तर से कार्यवाही करने का आश्वासन दिया। लेकिन इसके विपरीत सुनियोजित तरीके से उन्होंने मज़दूर नेताओं को गुंडा घोषित कर जिला बदर करने की चेतावनी की नोटिस जारी कर दी।
जिला प्रशासन की यह परंपरा बन गई है कि जब भी मज़दूर अपने हक़ के लिए आगे आते हैं, तो उनपर मुक़दमें दर्ज होते हैं, या शांति भंग की कथित आशंका में पाबंद किया जाता है। बीते दिनों नील ऑटो (जेबीएम), रॉकेट इंडिया, डॉल्फिन, ब्रिटानिया ठेका मज़दूरों से लेकर अलग-अलग संघर्षों के दौरान श्रमिक संयुक्त मोर्चा के नेताओं, नेस्ले, लुकास टीवीएस, इंटरार्क, वोल्टास, भगवती, सत्यम ऑटो, गुजरात अंबुजा आदि सहित तमाम कंपनियों के मज़दूर इस प्रताड़ना के शिकार होते आ रहे हैं। कथित शांतिभंग के तहत धारा 107, 116, 116(3) के तहत पाबंद हो रहे हैं। स्थिति यह है कि 2019 के चुनाव के समय जिला प्रशासन इंटरार्क व भगवती के मज़दूरों को चुनाव में बाधा पहुँचने वाला खतरनाक अपराधी घोषित करके पाबंद करने का हास्यास्पद नोटिस जारी कर चुका है।
हालात ये हैं कि ऊधम सिंह नगर जिला प्रशासन ने इस वर्ष (2024) ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस (मई दिवस) कार्यक्रम मनाने की अनुमति तक नहीं दी और अंततः उच्च न्यायालय, नैनीताल के आदेश पर मज़दूरों ने मई दिवस का आयोजन किया।
देश के विभिन्न संघर्षशील मज़दूर यूनियनों व संगठनों के साझा मंच ‘मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान’ (मासा) इस बेहद क्षोभपूर्ण व निंदनीय घटना का तीखे शब्दों में भर्त्सना और पुरजोर विरोध करता है।
मासा का मानना है कि क्षेत्र में बेलगाम आपराधिक घटनाओं पर आँखें मूँदे प्रशासन द्वारा हक़ की आवाज उठाने वालों को गुंडा घोषित करना शासन के चरित्र और निरंकुशता का स्पष्ट नमूना है। उत्तराखंड के औद्योगिक क्षेत्र में मालिकों के खुले शोषण, अन्याय, अत्याचार को शासन-प्रशासन व भाजपा सरकार द्वारा बढ़ावा देने; पीड़ित मज़दूरों को दबाने की कोशिश और मज़दूर नेताओं पर गुंडा एक्ट थोपने से खौफ का माहौल बनाना राज्य में बढ़ते पुलिसिया राज का एक उदाहरण मात्र है।
मासा की माँग-
- इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र के पूर्व अध्यक्ष कैलाश भट्ट व डॉल्फिन मज़दूरों पर गुंडा एक्ट सहित दर्ज सभी फर्जी मुक़दमें रद्द करो!
- वास्तविक गुंडों पर कार्रवाई की जगह मज़दूरों का दमन बंद करो!
- मज़दूरों पर फर्जी मुक़दमें थोपने, पाबंद करने पर रोक लगाओ; धरना-प्रदर्शन के संवैधानिक अधिकारों पर हमले बंद करो!
- प्रबंधन और पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत से मजदूरों पर लगे सभी मुकदमों की निष्पक्ष जांच हो!
- मालिकों की सेवा बंद करो! मज़दूरों के शोषण-उत्पीड़न पर रोक लगाओ!
- डॉल्फिन, लुकास टीवीएस, करोलिया लाइटिंग, इंटरार्क सहित सभी पीड़ित मज़दूरों को न्याय दो!
केन्द्रीय समन्यवय समिति, मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा)
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