बनारस: कबीर जन्मोत्सव पर ‘ताना बाना कबीर का’; विरासत को आगे बढ़ाने हेतु विविध कार्यक्रम सम्पन्न

एक पखवारे का अभियान आम मेहनतकश बुनकर समाज के बीच कबीर के भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब की विरासत और समाज में जिंदा रहने के जद्दोजहद को आगे बढ़ाने के प्रति समर्पित रहा।
बनारस के बुनकर मुहल्लों में 22 जून से शुरू हुआ कबीर जन्मोत्सव कार्यक्रम सम्पन्न हो गया। बनारस के बुनकरो के सवालों को नागरिक समाज के लोगों ने मिलकर पिछले साल की तरह इस साल भी उठाने की पहल ली, जिसमे कबीर के जीवन, उनके संघर्ष और दर्शन की बात हो। इस रूप में एक पखवारे का यह अभियान उत्साहजनक रहा।

22 जून को था संत कबीर का जन्म दिवस
इस साल 22 जून संत कबीर की जन्मतिथि थी। कबीर जन्मदिवस पर हर साल बनारस में कबीर मठ मूलगादी और कबीर के जन्मस्थल लहरतारा तालाब के पास कबीर मठों में कार्यक्रम होता आ रहा है, जिसमें देश के बहुत सारे प्रांतों से कबीरपंथी लोग आते हैं।

‘ताना बाना कबीर का‘ अभियान
कबीर जन्मोत्सव समिति द्वारा ‘ताना बाना कबीर का’ कार्यक्रम आम मेहनतकश जन, विशेष रूप से बुनकर समाज के बीच कबीर के विचारों को पहुँचाने और भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब की उनकी विरासत और समाज में जिंदा रहने के जद्दोजहद को आगे बढ़ाने के प्रति समर्पित है।

इस साल ‘ताना बाना कबीर का’ नामक कार्यक्रम का सिलसिला 22 जून को बनारस के पीली कोठी के कटहर मैदान में कार्यक्रम से शुरू करके 24 जून को बजरडीहा (कुरिया), 26 जून को पीली कोठी, 27 को कोटवा, 28 जून को जलालीपुरा, 4 जुलाई को बजरडिहा (लमही के मैदान) सहित अन्य जगह पर भी कार्यक्रम होता रहा।

अभियान के दौरान बुनकर बस्तियों में नुक्कड़ नाटक ‘काँटों में खिलता गुलाब’ की विविध प्रस्तुतियाँ हुईं, विभिन्न जगहों पर नुक्कड़ सभाएं और बैठकें हुईं। अभियान टोली ने इस जरिए आम जन विशेष रूप से बुनकर समाज से सीधा संवाद कायम किया, उनके दुख-तकलीफ़ से एक जुड़ाव बनाने का प्रयास किया।

इस अभियान के तहत जन्मोत्सव समिति की ओर से बनारस में 7 जुलाई को बुनकर सम्मलेन के साथ समापन होना था, लेकिन भारी बारिश के कारण सम्मेलन स्थगित हो गया।

कबीर का जद्दोजहद बुनकर समाज के जीवन में मौजूद
कबीर जन्मोत्सव समिति का प्रचार पत्र कहता है – “कबीर का उन्नत दर्शन किसी किताब से नहीं, इस दुनिया में ज़िंदा रहने की ज़द्दोजहद से निकला है। वह ज़द्दोजहद जो आज भी बनारस के बुनकर समाज के जीवन के दैनिक संघर्ष का हिस्सा है और उनके जैसे मेहनत करके खाने वाले हर व्यक्ति के जीवन का भी। कबीर भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति के प्रमुख सूत्रधार हैं। उन्होंने लोगों को किताबी ज्ञान में उलझने की जगह अपने अनुभव से निकलने वाले ज्ञान पर भरोसा करने की सीख दी।…
“आज ज़रुरत है कि नफ़रत, अंधभक्ति और बँटवारे पर आधारित सोच को चुनौती देते हुए, समानता, सम्मान और सामूहिकता पर आधारित संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए। आज जरुरत है कबीर की विरासत को बचाने और संरक्षित करने की। ज़ाहिर है कि यह काम सबसे पहले हमारे बुनकर और मेहनतकश जनता कर सकती है जिन्होंने उनकी सोच को लोक जीवन में आज भी ज़िंदा रखा है।”

बुनकर समाज की मुख्य मांगें-
समिति का मानना है की – संत कबीर के उपदेश की तरह ही, बुनकारी उद्योग भी दरकिनार हो रहा है! इस दौरान वितरित पर्चा में मांग उठाया गया है-
★ 2006 के पुराने फ़्लैट रेट के हिसाब से बिजली का बिल लेना पड़ेगा! बिजली विभाग की तरफ से मनमाना जुर्माना लगाना, भ्रष्टाचार के तहत अलग अलग-तरीकों से बुनकरों को परेशान करना बंद करना होगा! सरकार को इसकी निगरानी रखकर कड़े कदम उठाने होंगे!
★ वाराणसी नगर निगम द्वारा बुनकरों के घर के टैक्स के साथ व्यावसायिक टैक्स के नाम पर जो 700 रुपया सालाना लिया जा रहा है, उसे ख़त्म किया जाए!
★ बुनकरों के लिए न्यूनतम दैनिक 8 घंटे काम का 1000 रुपये कमाई/मज़दूरी सुनिश्चित करनी होगी! बुनकर मज़दूरों के लिए सरकार को सामाजिक सुरक्षा के लिए योजना लाना और उसे लागू करना पड़ेगा!
★ बुनकर उद्योग के विकास के लिए आधुनिक पावरलूम मशीन खरीदने के लिए बिना ब्याज के ऋण और सब्सिडी देनी होगी! उत्तर प्रदेश में धागों की फैक्ट्री लगाई जाए जिससे बुनकरों को सूरत से अधिक दामों में धागा न मंगाना पड़े! हथकरघा को विशेष रूप से संरक्षित करना पड़ेगा!