तो इसलिए योगी सरकार ने कबीर के बनारस में कबीर उत्सव मनाने नहीं दिया!

Picsart_23-06-11_20-08-11-113

जी20 तो बहाना था, आयोजन ही निशाना था। क्योंकि कबीर की परम्परा नफ़रत और ग़ैरबराबरी से विद्रोह तथा प्रेम, भाईचारा व बराबरी की है। कबीर कहते हैं- “कबिरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं/ सीस उतारे भुइं धरे तब पइसे घर माँहि..”।

वाराणसी (उत्तरप्रदेश)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र में योगी सरकार ने कबीर जन्मोत्सव भी मनाने नहीं दिया। 4 से 11 जून तक चलने वाले इस कार्यक्रम के क्रम में अलग अलग बुनकर मोहल्लों में विविध कार्यक्रम संपन्न होने के बाद 11 जून को अंतिम और मुख्य कार्यक्रम था जो बनारस की बुनकर कॉलोनी मैदान नाटी इमली में होना था।

जिस वक़्त योगी सरकार की पुलिस जन परम्परा के वाहक इस सांस्कृतिक आयोजन को रुकवा रही थी, ठीक उसी वक़्त विदेशी मेहमानों को लुभाने के लिए वाराणसी एयरपोर्ट पर “लोक नृत्य” का कथित आयोजन हो रहा था!

जहां एक तरफ देश में अंग्रेजो के तलवे चाटने वाले और माफीनामा लिखने वालों को नायक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर जनता के नायकों को याद भी ना करने देना, उस भयावह स्थिति का एक दर्पण है, जो इस देश की आम मेहनतकश जनता भुगत रही है। कबीर जिस इंसानी समानता को समर्पित थे और भेदभाव व विद्वेष की मुख़ालफ़त की थी, उस ताने-बाने को नष्ट करने में लगी भाजपा और उसकी सरकारों को भला कबीर कैसे सुहाते!

https://mehnatkash.in/2023/06/05/organization-of-tana-bana-kabir/

एक सप्ताह का आयोजन, घबड़ाई सरकार ने रुकवाया कार्यक्रम

दरअसल कबीर की 626 वी जयंती पर एक सांस्कृतिक पहल के तहत 4 से 11 जून तक ‘ताना-बाना कबीर का’ आयोजन तय था। कबीर के कर्मस्थली बनारस की विभिन्न बुनकर बस्तियों में एक सप्ताह का कार्यक्रम अलग-अलग रूप में मनाया जा रहा था। यह पूरा आयोजन बुनकर और बुनकरी के लिए समर्पित था।

कबीर जन्मोत्सव समिति की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम की अनुमति के लिए एक पखवारे पहले ही आवेदन किया गया था लेकिन पुलिस तरह तरह से उसे उलझाए रखी और कार्यक्रम के ऐन पहले मौखिक तौर पर इस आयोजन को रोक दिया और बनारस में जी-20 सम्मिट के तहत होने वाली मीटिंग का हवाला दिया।

कबीर के पेशागत उत्तराधिकारी बुनकर भयावह संकट में

बुनकारी बनारस और आसपास के जिलों के बहुत बड़े हिस्से के रोजगार का श्रोत है। जहाँ वे बनारसी साड़ी, कालीन आदि उत्पादन के साथ अलग-अलग तरीके का काम करते हैं। लेकिन ब्रिटिश राज के समय से ही इनको किनारे लगाया गया और 1947 के बाद से देशी सरकारों द्वारा भी इस दिशा में कोई ध्यान नही दिया गया।

1990 के बाद इस क्षेत्र के हालात और खराब कर दिए गए और यहाँ के कारीगर, मजदूर और छोटे मालिक तक की आर्थिक स्थिति बाद से बदतर होती चली गई।

2006 में बुनकरों को “फ्लैट रेट” दिया गया था, जिसको 6 अप्रैल 2023 को सरकार ने एक शासनादेश जारी करके रद्द कर दिया। इसको लेकर बुनकरों के अलग अलग हिस्से में काफी बैचेनी है। एक बुनकर युवा वाहिनी की भी खबर आई है, जिनको अलग अलग लोग आरएसएस की पहल के हिसाब से देख रहे हैं। बुनकरों का गुस्सा फुट न पड़े और हिंदू मुस्लिम साथ में आकर लड़ाई ना शुरू कर दे, इसलिए हिंदू बुनकरों को अपने साथ रखने के लिए बीजेपी के खिलाफ भी यह बुनकर वाहिनी उतरी है।

जी-20 के तड़क-भड़क के बीच उजाड़े जा रहे गरीब मेहनतकश

मामला सिर्फ बुनकरों का नही है। अन्य जगहों की जगह बनारस में भी जी-20 के नाम पर सरकार ने शहर के सभी गरीब बस्तियों और गंदा दिखने वाली जगहों पर हरा पर्दा लगा दिया।

बाशिंदों और किसी तरह रोजीरोटी कमाने वाली जनता को उजाड़ने में योगी-मोदी सरकार पूरे तेवर से लगी है। कुछ दिन पहले ही बनारस में राजघाट के पास किला कोहना में विकास परियोजना के नाम पर, लंबे समय से रहने वाली आबादी को उजाड़ दिया गया। उसके ठीक बगल में राजघाट स्थित गांधी आश्रम सर्व सेवा संघ को भी उसी परियोजना के तहत भगाने की कोशिश हो रही है। इसपर मीडिया मेंं भी काफी हलचल हुआ।

वाराणसी के थाना रोहनिया क्षेत्र के मोहनसराय स्थित ट्रांसपोर्ट नगर को बसाने के लिए किसानों की जमीन को प्रशासन द्वारा अधिग्रहित किया जा रहा था, जिसको लेकर सैकड़ों की संख्या में किसानों ने विरोध जताया तो पुलिस प्रशासन की तरफ से लाठियां बरसाई गईं, जिससे दर्जनों किसान घायल हुए, जिसका वीडियो वायरल हुआ था।

बनारस के घाटों पर नाव चलाने वाले मल्लाह समाज के लोगों की रोटी रोज़ी पर गहरा संकट है, क्योंकि सरकार ने मोटर चालित क्रुज और वाटर-टैक्सी चलाना शुरू कर दिया हैं। याद करने वाली बात है, कि इसी मल्लाह समाज के लोगो को मोदी के साल 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रस्तावक बना दिया गया था, और उसको खूब प्रचारित करके उनका वोट लेने की कोशिश हुई थी।

प्रतिरोध की हर आवाज़ को दबाने का सिलसिला जारी

किसान आंदोलन के समय जनता को जाति के नाम पर बांटने का प्रयास करके ही सरकार शांत नही रही। यहां के किसान नेतागण और जनवादी कार्यकर्ताओं का कहना ही की संयुक्त किसान मोर्चा के महत्वपूर्ण कार्यक्रम के पहले, नेताओं के घर के बाहर सुबह एक एक पुलिस कांस्टेबल खड़ा कर दिया जाता था, और उन्हें घर से बाहर निकलने से व कार्यक्रम में उनको जाने से रोका जाता था।

सीएए-एनआरसी के खिलाफ आंदोलन में यहां से जनवादी कार्यकर्ताओं और मुस्लिम समाज के लोगो को दो महीने से ज्यादा समय जेल में रखा गया और बाद में भी पुलिस उन्हें परेशान करती रही। डर का माहौल बनाने के लिए तमाम मुहल्लों से मुस्लिम युवाओं को पीएफआई के नाम पर बिना कोई सबूत के उठाया गया। उनके घरवाले अपना सारे पैसा दांव पर लगाकर उनको जेल से छुड़वाने की कोशिश में लगे रहे।

गाँव के हालात तो और बद से बदतर

यह तो हुई शहर की बात। शहर से थोड़ा दूर गांव इलाका में चले जाइए तो देखने को मिलेगा कि इस गर्मी में भी लगातार बिजली गुल है, जिसके चलते जनता काफ़ी परेशान है।

गांव के अंदर दलित बस्ती की तरफ हालात ये हैं कि रास्ते के दोनों तरफ सुबह रोशनी आने के पहले और शाम को अंधेरा होने के बाद अलग अलग जगह पर महिला और पुरुष दोनों को ही टॉयलेट करने आना पड़ता है, क्योंकि उनके घर में टॉयलेट नही है, और बनाने का पैसा भी नहीं है।

तो इसलिए कबीर उत्सव मनाने से घबराई योगी सरकार

अब ऐसी स्थिति में अगर जनता के जनवादी अधिकार मौजूद रहे, लोग अपने विचार और असहमति व्यक्त कर सके तब तो बनारस और आसपास के जिलों से हक़ के लिए ढेरों आवाज़ उठने लगेगी।

तब “दिव्य काशी भव्य काशी” और “यूपी मॉडल” के नाम पर जो तस्वीर तैयार किया गया है, जनता के सामने प्रकट हो जाएगा। इसलिए सरकारी और गैर सरकारी दमन यहां यूपी मॉडल का अभिन्न हिस्सा है।

जबकि कबीर और उनकी परम्परा नफ़रत और ग़ैरबराबरी से विद्रोह की तथा प्रेम, भाईचारा व इंसानी सद्भाव की है। तभी तो कबीर कहते हैं- “कबिरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं/ सीस उतारे भुइं धरे तब पइसे घर माँहि..”।

ऐसे में समाज में विभेद को बढ़ाने, जाति व मज़हब का घिनौना खेल खेलने और मुनाफ़ाखोरों क हित में मेहनतकश जन को और रसातल में धकेलने वाली संघ-भाजपा और उसकी तानाशाह सरकारें भला कबीर की बानी और उनके सच्चे वारिसों द्वारा किए जा रहे आयोजन से क्यों न घबड़ाये?

इसीलिए कार्यक्रम के ऐन पहले योगी की पुलिस, बिना किसी लिखित आदेश के कबीर उत्सव रोक देती है।

https://mehnatkash.in/2023/06/04/kabir-the-weaver-a-legacy-of-revolt-against-subservience/

संत कबीर को क्यों सहन नहीं कर पा रही है यूपी सरकार? -कबीर जन्मोत्सव समिति

‘कबीर जन्मोत्सव समिति’ ने 11 जून को जारी बयान में कहा कि पिछले एक सप्ताह के अभियान में नाटी इमली (4 जून), वरुणा पुल स्थित विश्वज्योति केंद्र (6 जून), अमरपुर बठलोहिया (7 जून), बाजार दीहा (8 जून), पीली कोठी (9 जून) और भैसासुर घाट (10 जून) में इस विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए। हमारी मुख्य चिंता यही थी कि लोग जाति-धर्म का भेदभाव मिटाकर आपस में मिलजुल इंसानियत के साथ रहें।

समिति सदस्यों ने कहा कि शहर के अन्य संस्थानों में भी कबीर जन्मोत्सव मनाया जा रहा है, तो बुनकर समुदाय अपने पुरखे कबीर को आख़िर क्यों याद नहीं कर सकता? ख़ुद सरकार भी कबीर के जन्मोत्सव पर कार्यक्रम आदि कर रही है तो बुनकर पर यह दबाव क्यों?

एक तरफ आज सरकार संत कबीर, रैदास, तुकाराम, बसवन्ना और अन्य भक्ति-सूफी संतों की मूर्तियों पर माल्यार्पण करती है, लेकिन दूसरी तरफ जनता को ऐसे आयोजन करने से रोकती है। आज की घटना से पता चलता है कि वह भारत के इन कवियों और संतों की सोच पर बातचीत करने से डरती है।

समिति के बयान में कहा गया है कि एक ऐसा शासन जो विशेष रूप से भारतीय ज्ञान परंपराओं को आगे बढ़ाने की बात करता है, उसके द्वारा भारत के प्रगतिशील विचारकों का जश्न मनाने वाले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम को रोकने के लिए, हम यूपी सरकार द्वारा उठाए गए दमनकारी कदमों की निंदा करते हैं।

1 thought on “तो इसलिए योगी सरकार ने कबीर के बनारस में कबीर उत्सव मनाने नहीं दिया!

Comments are closed.

भूली-बिसरी ख़बरे