युद्धोन्माद : इस सप्ताह की कविताएं !

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दो हाथियों की लड़ाई / उदय प्रकाश

दो हाथियों का
लड़ना
सिर्फ़ दो हाथियों के समुदाय से
संबंध नहीं रखता

दो हाथियों की लड़ाई में
सबसे ज़्यादा कुचली जाती है
घास, जिसका
हाथियों के समूचे कुनबे से
कुछ भी लेना-देना नहीं

जंगल से भूखी लौट जाती है
गाय
और भूखा सो जाता है
घर में बच्चा

चार दांतों और आठ पैरों द्वारा
सबसे ज़्यादा घायल होती है
बच्चे की नींद,
सबसे अधिक असुरक्षित होता है
हमारा भविष्य

दो हाथियों कि लड़ाई में
सबसे ज़्यादा
टूटते हैं पेड़
सबसे ज़्यादा मरती हैं
चिड़ियां
जिनका हाथियों के पूरे कबीले से कुछ भी
लेना देना नहीं

दो हाथियों की
लड़ाई को
हाथियों से ज़्यादा
सहता है जंगल

और इस लड़ाई में
जितने घाव बनते हैं
हाथियों के उन्मत्त शरीरों पर
उससे कहीं ज़्यादा
गहरे घाव
बनते हैं जंगल और समय
की छाती पर ‘

जैसे भी हो
दो हाथियों को
लड़ने से रोकना चाहिए ‘


इसे भी देखें –

https://mehnatkash.in/2020/06/01/andher-nagri-1-this-weeks-poems/

युद्ध / आदित्य कमल

लुटेरे हैं… तो युद्ध है !

पागलपन नहीं है युद्ध
क्या पागलपन में जुटाई जाती हैं सेनाएँ
जमा किए जाते हैं असलाह ?
बाज़ार है, और बाज़ार पर कब्ज़ा है
कब्ज़ा है, और कब्ज़े की मारामारी है
मारामारी है… मारामारी की सियासत है
सियासत है और सियासत में युद्ध है..!

लुटेरे हैं… तो सतत ज़ारी है युद्ध !!

युद्ध है
तो युद्ध के खिलाफ भी हो सकता है-युद्ध।

दुनिया भर के
शोषितों-उत्पीड़ितों की
विराट सेना से बड़ी
कोई सेना नहीं होती ।

लुटे-पिटे लोग
जब सड़कों पर होते हैं
तो सीखते है युद्ध !
राजनीतिक सरगर्मियों के बीच
जमा होते जाते हैं उनके भी कई हथियार
कंठस्थ होते जाते हैं दाव-पेंच
लड़ाइयों के कठिन पाठ।

जब लोग पूछने लगते हैं सवाल कि
हमारे बेटे किनके लिए मारे जा रहे हैं
तो वो समझने लगते हैं हित…
कि दरअसल युद्ध किनके हितों के लिए हैं।

सचेत सर्वहाराओं के लश्कर
निश्चय ही ध्वस्त करेंगे –
लुटेरों के छुपने की आखिरी शरणस्थली
पूंजी के गुप्त बंकर तक।

इतिहास गवाह है।

हरामखोरों के मैनेजरों ने
तभी तो भयाक्रांत हो
लगा रखी है हथियारों की होड़
नुमाइश आतंक की
फैला रखा है भय का वातावरण
पूरी दुनिया में
हीस्टीरिया, युद्धोन्माद !

आओ, हम संगठित मुट्ठियाँ उठाएँ
चारों तरफ़ से घेरें उन्हें ।
आओ, रूख करें हम अपनी लड़ाई का
सीधा उनकी तरफ
ताकि खदेड़ दी जाए
दोनों तरफ के लुटेरों की सेना
कि फिर कोई युद्ध न हो।

उत्पीड़ितों की सेना को करना ही पड़ेगा –
युद्ध-युद्ध के विरूद्ध !


इसे भी देखें –

https://mehnatkash.in/2020/06/15/andher-nagri-2-this-weeks-poem/

युद्ध / राजेन्द्र राजन

जो युद्ध के पक्ष में नहीं होंगे
उनका पक्ष नहीं सुना जायेगा
बमों और मिसाइलों के धमाकों में
आत्मा की पुकार नहीं सुनी जायेगी
धरती की धड़कन दबा दी जायेगी टैंकों के नीचे

सैनिक खर्च बढ़ाते जाने के विरोधी जो होंगे
देश को कमजोर करने के अपराधी वे होंगे
राष्ट्र की चिन्ता सबसे ज्यादा उन्हें होगी
धृतराष्ट्र की तरह जो अन्धे होंगे
सारी दुनिया के झंडे उनके हाथों में होंगे
जिनका अपराध बोध मर चुका होगा
वे वैज्ञानिक होंगे जो कम से कम मेहनत में
ज्यादा से ज्यादा अकाल मौतों की तरकीबें खोजेंगे
जो शान्तिप्रिय होंगे मूकदर्शक रहेंगे भला अगर चाहेंगे

जो रक्षा मंत्रालयों को युद्ध मंत्रालय कहेंगे
जो चीजों को सही-सही नाम देंगे
वे केवल अपनी मुसीबत बढ़ायेंगे
जो युद्ध की तैयारियों के लिए टैक्स नहीं देंगे
जेलों में ठूँस दिये जायेंगे
देशद्रोही कहे जायेंगे जो शासकों के पक्ष में नहीं आयेंगे
उनके गुनाह माफ नहीं किये जायेंगे

सभ्यता उनके पास होगी
युद्ध का व्यापार जिनके हाथों में होगा
जिनके माथों पर विजय-तिलक होगा
वे भी कहीं सहमें हुए होंगे
जो वर्तमान के खुले मोर्चे पर होंगे उनसे ज्यादा
बदनसीब वे होंगे जो गर्भ में छुपे होंगे

उनका कोई इलाज नहीं
जो पागल नहीं होंगे युद्ध में न घायल होंगे
केवल जिनका हृदय क्षत-विक्षत होगा।


इसे भी देखें –

https://mehnatkash.in/2020/06/22/andher-nagri-3-poems-of-the-week/

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