हिमालय बचाने के लिए युवा समूहों ने उठाई आवाज; देश भर से मिला जोशीमठ आंदोलन को समर्थन

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जोशीमठ बचाओं संघर्ष समिति की मांगों का समर्थन करने के अलावा ‘यूथ फॉर हिमालय’ की तरफ से विभिन्न मांगों के साथ अभियान पूरे हिमालायी क्षेत्र में चलेगा।

उतराखंड में पिछले कई महीनों से धंसते जा रहे शहर जोशीमठ में पिछले 100 दिनों से जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति की अगुवाई में वहां की जनता जोशीमठ को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। विभिन्न भारतीय और हिमालीय राज्यों के युवाओं द्वारा गठित मंच ‘युथ फॉर हिमालय’ से 13 अप्रैल 2023 को एक कार्यकर्ताओं का दल जोशीमठ के संघर्ष को समर्थन देने के लिए यहाँ पहुंचा है!

‘हम सरकारी ढांचों की इस निति जनित आपदा से प्रभावित जनता की तरफ उदासीन रवैये की निंदा करते हैं. और आज जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उतराखंड, सिक्कम आदि के सैकड़ों नागरिकों और युवा समूहों ने जोशीमठ के संघर्ष के समर्थन में हिमालय बचाने की आवाज उठाई है’।

यूथ फॉर हिमालय के कार्यकर्ता अनमोल ने कहा है कि हमारा मंच जोशीमठ त्रासदी और उसके खिलाफ जनता के जारी संघर्ष से प्रेरणा लेकर ही बना है। हमारा मानना है कि पूर्व से लेकर पश्चिम तक संपूर्ण हिमालय के मुद्दे और लड़ाई एक है और एक साथ ही इसके लिए संघर्ष करना होगा।

सरकार की उदासीनता निंदनीय

जोशीमठ जैसी गंभीर त्रासदी के लिए सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर जिस तरह की रणनीति प्रभावित जनता को साथ में ले कर बननी थी उस पर सुद्रढ़ कदम नहीं उठाये गये – यह निंदनीय है। पिछले तीन महीनों से जोशीमठ की जनता इसके लिए संघर्ष कर रही है।

जोशीमठ त्रासदी पूरे हिमालय क्षेत्र की जनता के लिए चिंता का मुख्य कारण बना हुआ है क्यों कि इस संकट ने हिमालय के भविष्य के बारे खतरे का ज़ोरदार डंका दिया है।

100 दिनों से जनता का संघर्ष जारी

दिसंबर 2022 से ही जोशीमठ शहर से आ रही डरावनी तस्वीरें लगातार स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खबरों में बनी हुई हैं। चाहे अब खबरें कम हो गयी हैं, लेकिन स्थानीय जनता 100दिनों से सरकार द्वारा उनकी बाते सुने जाने का इंतजार कर रही है।

स्थानीय जनता मुआवजे, पुनर्वास जैसी सुविधाओं मांग रही है लेकिन उनको देश विरोधी, विकास विरोधी यहां तक कि झूठी खबरें फैलाने वाले कहा जा रहा है। यहां पर यह बात दौहरानी जरूरी हो जाती है कि जनता, बुद्धिजीवी और वैग्यानिक 1976 से लेकर 2022 राज्य और केंद्र सरकारों से जोशीमठ की भूगर्भीय स्थिति को लेकर चेतावनी दे रहे थे लेकिन उनको लगातार नजरंदाज किया जाता रहा है। 

सरकार द्वारा अपनाए जा रहे नजरांदाज रवैये पर जोशीमठ बचाओ संघर्ष समीति ने कहा है कि “हम सरकार को दस दिनों का समय देते हैं कि वह जोशीमठ बचाओ संघर्ष समीति के सदस्यों को शामिल करते हुए, इस त्रासदी से निपटने की आगामी योजनाओं के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन करे। जोशीमठ त्रासदी की वास्तिवक स्थिति, उसकी गंभीरता और प्रकृति के बारे में जानकारी को सार्वजनिक किया जाए।”

https://mehnatkash.in/2023/04/13/hundred-days-of-joshimath-struggle-demanded-government-to-leave-ram-bharose/

सरकार की विनाशकारी बड़ी परियोजनाएं जिम्मेदार

खतरे के कगार पर खड़ी हजारों लोगों की जिंदगी एक आम बात बनती जा रही है। हालांकि जोशीमठ धँसाव से अभी भी चाहे प्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों परिवार ही नजर आ रहे हो, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से पूरे इलाके की जनता, दुकानदार, मजदूर, किसान, कर्मचारियों, छात्रों, पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों, टैक्सी वालों, घोड़े-खच्चर वालों, धार्मिक स्थलों पर इसका प्रभाव बहुत खतरनाक है।

इसके अलावा अगर पिछले सौ दिनों को देखें तो हिमालयी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश जैसे लद्दाख, जम्मू, कश्मीर, उतराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्कम, मेघालय आदि में इस तरह की घटनाएं लगातार हो रही हैं। इस सब के लिए सरकारों द्वारा विकास के नाम पर बनाई जा रही बड़ी परियोजनाएं जैसे बड़े बांध, जल विद्युत योजनाएं, रोड़, सुरंग, फ्लाइओवर, एयरपोर्ट, बड़ी उद्योगिक परियोजनाएं आदि सिधे तौर पर जिम्मेदार हैं जो हिमालय की नाजुक पारिस्थितिक तंत्र के लिए बहुत खतरनाक हैं।

रितिका ठाकुर ने कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बार-बार, 1976 से जून 2022 तक, सरकार और स्थानीय अधिकारियों ने लापरवाही से इस शहर की संभावित भूस्खलन की अनदेखी की है, विशेष रूप से पिछले दो दशकों में, हरित विकास के नाम पर वाणिज्यिक और मेगा मूलभूत ढ़ांचा परियोजनाओं को मंजूरी दी गयी। सबसे विनाशकारी गतिविधियाँ 520 मेगावाट की तपोवन विष्णुगाड परियोजना की स्थापना और चार धाम परियोजना है।

इस मामले को और भी बदतर बनाने के लिए गंगा नदी बेसिन के ऊपरी भाग में लगातार जलवायु परिवर्तन की विनाशकारी घटनाएं देखी जा रही हैं – जैसे कि एक दशक पहले केदारनाथ में और 2021 में जोशीमठ के ठीक ऊपर ऋषिगंगा में हुई थी। दोनों आपदाओं से यह दिखाने के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत हैं कि इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर व्यावसायिक निर्माण के कारण प्रभाव का पैमाना कई गुना बढ़ गया था – लेकिन अधिकारियों और कंपनियों ने अपने स्वयं के हितों की रक्षा करते हुए जोखिम को स्थानीय लोगों पर लाद दिया है।

https://mehnatkash.in/2023/01/10/peoples-struggle-for-survival-and-future-of-joshimath-continues/

भूस्खलन और भूमिधसाव तमाम हिमालयी राज्यों में जारी

जोशीमठ धंसाव की घटना कोई पहली और आखरी घटना नहीं हैं, और न ही ऐसा कुदरती और सामान्य जैसे सरकार स्थापित करने पर तुली है। इस तरह का भूस्खलन और भूमिधसाव केवल जोशीमठ ही नहीं डोडा, लद्दाख, हिमचाल, सिक्कम आदि तमाम हिमालयी राज्यों में सामने आया है।

सुमित ने कहा कि ‘और पूरे ही हिमालय क्षेत्र जो की जल वायु संकट की चपेट में भी है – ऐसी विनाशकारी विकास नीतियों के चलते जो वनों का दोहन हो रहा है और और पहाड़ों को खोकला बना कर व्यवसाय की वस्तु में बदला जा रहा है ये यहाँ की स्थानीय जनता और पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हुआ है और आए इस तरह की नीति जनित आपदाएं और भयावह रूप लेंगी, इसलिए इनकी हम इस विनाश के पक्ष में नहीं’।

https://mehnatkash.in/2023/01/30/uttarakhand-thousands-of-people-united-under-the-campaign-to-save-joshimath-took-to-the-streets/

यूथ फॉर हिमालय पूरे हिमालय क्षेत्र में चलाएगा आंदोलन

हैदराबाद से रुचित आशा कमल ने कहा है कि –  उतराखंड का जोशीमठ इस देश का हिस्सा है। इसका मतलब यह नहीं है कि राष्ट्र हित के नाम पर इस तरह का विनाश होने दिया जाए। यह पूरे देश के भविष्य के लिए बिल्कुल ठीक नहीं है।

जोशीमठ बचाओं संघर्ष समिति की मांगों का समर्थन करने के अलावा हम यूथ फॉर हिमालय की तरफ से निम्न मांगों के साथ अभियान पूरे हिमालायी क्षेत्र में चलाएंगे।

युथ फॉर हिमालय की अपील पर देश के कई शहरों – वाईवेड पैटल, गाजियाबाद, राईज ऑफ दिवांग, अरुणाचल प्रदेश, नो मिन्स नो किन्नौर, क्लाईमेट फ्रंट जम्मू, क्लाईमेट फ्रंट हैदराबाद, नेचर ह्यूमन सेंट्रिक मुवमेंट जोधपुर, नेचर क्लब विशाखापटनम आंध्रा प्रदेश, तांदि बांध संघर्ष समिति व सेव लाहोल, हिमाचल प्रदेश आदि द्वारा जोशीमठ की जनता के संघर्ष के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गये।

https://mehnatkash.in/2023/01/13/uttarakhand-after-joshimath-now-landslides-and-cracks-in-houses-in-karnprayag/

यूथ फॉर हिमालय की माँग-

  • संशोधन बिल के जरिए एफसीए 2023 जो की देश के सीमा क्षेत्र से 100 किलोमीटर के अनतर्गत वन भूमि को परियोजनाओं के लिए खोलने के लिए बना है – को रद्द किया जाए।
  • बड़े बांध, फोर लेन सड़कों जैसी बड़ी ढांचागत परियोजनाओं पर रोक लगाई जाए।
  • वनों पर आश्रित समुदायों जैसे घुमंतुओं, दलितों व आदिवासी जनता के जंगलों व संसाधनों पर उनके अधिकारों को मजबूत करने वाले कानूनों को शक्तिशाली बनाया जाए और लागू किया जाए।
  • हिमालय क्षेत्र में आपदा प्रभावित जनता का तेज गति के साथ पुनर्वास किया जाए।
  • सहभागी और सस्टेनेबल भूमि उपयोग की योजना बनाई जाए।

अनमोल ओरी (जम्मू); सुमित महर (उत्तराखंड हिमाचल प्रदेश); मोहम्मद ईशाक वन गुज्जर (उतराखंड); हेमू अवस्थी (उतराखंड); कार्तिक जंडियाल (जम्मू); रितिका ठाकुर (हिमाचल प्रदेश); ज्योति शर्मा (हिमाचल प्रदेश); गगनदीप सिंह (हिमाचल प्रदेश) द्वारा जारी