एस्मा के साथ योगी सरकार का एक और निरंकुश फरमान

0
0

उत्तर प्रदेश सरकार का कर्मचारियों पर अंकुश बढ़ाने का एक और आदेश जारी

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार जनविरोधी क़दमों के साथ मज़दूरों-कर्मचारियों को अधिकार विहीन बनाने के तानाशाहपूर्ण फरमान लगातार जारी कर रही है। उसने श्रमाकनूनी अधिकारों को निलंबित करने और हड़ताल पर 6 माह के प्रतिबन्ध के बाद राज्य कर्मियों पर अंकुश का नया फरमान जारी कर दिया है।

22 मई को राज्य के अपर मुख्य सचिव द्वारा प्रदेश के सभी सचिवों, मंडलायुक्त और जिलाधिकारी के नाम भेजे गए पत्र का विषय है कोविड 2019 के प्रबंधन में कर्मियों की भूमिका के संबंध में।

जारी पत्र का मूल मक़साद राज्य के कर्मचारियों के धरना, प्रदर्शन एवं हड़ताल के प्रति भय का माहौल बनाने और श्रम संघों पर मनमानी रोक लगाना है। इसमे योगी सरकार का उसकी हरकतों के ख़िलाफ़ विरोध होने का भय भी काम कर रहा है।

यूपी में एस्मा लागू यानी “जबरा मारे ...

अपर सचिव द्वारा प्रेषित पत्र-

अपर सचिव मुकुल सिंघल द्वारा प्रेषित पत्र में लिखा है कि राज्य सरकार के संज्ञान में आया है कि कतिपय संगठनों द्वारा कार्य स्थल पर विभिन्न प्रकार का प्रतिरोध करने की संभावना है, जिससे कोविड 2019 के प्रबंधन का कार्य प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा।

अतः उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारियों की आचरण नियमावली 1956 तथा उत्तर प्रदेश सेवा संघ की मान्यता नियमावली 1979 की निम्नलिखित व्यवस्थाओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया जा रहा है।

पत्र में आचरण नियमावली 1956 के नियम 3 का हवाला देते हुए कहा गया है की सरकारी सेवक हर समय अपनी ड्यूटी के प्रति पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण रखेगा। नियम 5 (2) के हवाले से कहा गया है कि सरकारी सेवक किसी भी प्रकार की हड़ताल के लिए न तो सहायता करेगा ना उसमें सम्मिलित होगा।

सेवा संघ की मान्यता नियमावली 1979 के नियम 4 (ङ) के हवाले से लिखा गया है कि सेवा संघ ना कोई ऐसा कार्य करेगा और ना कोई ऐसा कार्य करने में सहायता देगा जिससे सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956 के नियमों का उल्लंघन हो।

नियम 4 (ढ) के हवाले से लिखा है कि सामान्य रूप से सरकारी कार्य में बाधा डालने या अवरोध उत्पन्न करने की दृष्टि से अपने सदस्यों को हड़ताल करने या धीरे कार्य करने या कोई अन्य तरीका अपनाने के लिए न प्रेरित करेगा, न उकसाएगा, न भडकएगा, न उत्तेजित करेगा, ना सहायता और न सहयोग देगा।

नियम-4 (ण) के तहत सेवा संघ पर दबाव बनाने के लिए लिखा है कि वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी ऐसे कार्य में भाग नहीं लें, जिससे सरकारी सेवक को अपने कार्यालय आने, अपने कर्तव्य का पालन करने में अभित्रास, या अवरोध या रुकावट हो।

नियम 8 के हवाले से धमकी के साथ कहा गया है कि मान्यता प्राप्त महासंघ उपरोक्त अपेक्षाओं-शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसकी मान्यता वापस ली जा सकती है।

जारी पत्र में अधिकारीयों को निर्देश दिया गया है कि समस्त सरकारी सेवकों तथा मान्यता प्राप्त संघों को अवगत कराएं कि धरना, सांकेतिक प्रदर्शन, प्रदर्शन अथवा हड़ताल में शामिल होने की स्थिति में संबंधित सरकारी सेवक के विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक अनुशासन एवं अपील नियमावली 1999 के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी।

धरना, सांकेतिक प्रदर्शन, प्रदर्शन एवं हड़ताल में भाग लेने पर ‘कार्य नहीं तो वेतन नहीं’ के सिद्धांत पर उस अवधि का वेतन का भुगतान न किया जाए। इसमें शामिल होने के लिए अवकाश स्वीकृत ना की जाए। कार्यालय आने वाले कार्मिकों को संरक्षण दिया जाए तथा व्यवधान डालने वाले कार्मिकों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए।

कार्य बहिष्कार अथवा हड़ताल की स्थिति में संबंधित अत्यावश्यक सुविधाएं बनाए रखने के लिए समुचित व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। किसी अधिकारी को हड़ताल की अवधि में अवकाश स्वीकृत न की जाए।

एकजुटतापूर्ण आर-पर का संघर्ष ही विकल्प

उल्लेखनीय है कि योगी सरकार कोरोना संकट के बहाने मज़दूरों-कर्मचारियों के अधिकारों पर लगातार हमला बोल रही है। राज्य के श्रम कानूनों को 3 साल के लिए निलंबित करने का फरमान, राज्य कर्मियों के हड़ताल पर 6 माह तक प्रतिबंधित करने, एस्मा लगाने के फरमान आदि की की कड़ी में यह ताजा निर्देश तानाशाही की चरम अभिव्यक्तियाँ हैं।

यह ध्यान तलब है कि केंद्र की मोदी सरकार से लेकर योगी सहित तमाम राज्य सरकारें मालिकों के हित में तेजी से बढ़ रही हैं, कोविड-19 महामारी ने उन्हें मुफीद मौका दे दिया है और सत्ता की निरंकुशता चरम पर है। देश फासीवाद की गिरफ्त में तेजी से बढ़ रहा है।

ज़ाहिर है कि अब मेहनतकश की व्यापक एकता के साथ आर-पार के संघर्ष की तैयारी ही एकमात्र विकल्प है।