मोदी सरकार का फरमान, अब मज़दूरों को नहीं मिलेगा पूरा वेतन

मोदी सरकार ने लॉकडाउन की अवधि में श्रमिकों को पूरा वेतन देने का आदेश लिया वापस

देश में लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू होते ही केंद्र सरकार ने मज़दूरों को पूरा वेतन देने का पुराना निर्देश वापस ले लिया है। सरकार के इस कदम मज़दूरों के सामने नया संकट पैदा हो गया। केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा मज़दूर अधिकारों पर हमले की कड़ी में मज़दूरों पर यह एक और बड़ा हमला है।

मोदी सरकार ने पूँजीपतियों के हित में अपना वह आदेश वापस ले लिया है, जिसके तहत देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कारखाने और दफ्तर बंद रहने के बावजूद कंपनियों को अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन देने की बाध्यता थी। सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 29 मार्च के अपने पुराने आदेश को वापस लेने का फरमान जारी कर दिया।

केंद्र सरकार के इस कदम से जहाँ कंपनियों और उद्योग जगत में ख़ुशी की लहर व्याप्त है, वहीँ मज़दूरों के हाथ एकबार फिर मायूसी आई है।

ज्ञात हो कि भारत सरकार के गृह सचिव ने लॉकडाउन के कुछ दिन बाद 29 मार्च 2020 को जारी निर्देश में सभी कंपनियों व नियोक्ताओं को कहा था कि वे प्रतिष्ठान बंद रहने की स्थिति में भी महीना पूरा होने पर सभी कर्मचारियों को बिना किसी कटौती के पूरा वेतन दें।

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिये देश भर में 25 मार्च से लॉकडाउन किया गया है। इसे अब तक तीन बार बढ़ाया जा चुका है। लॉकडाउन का चौथा चरण सोमवार से शुरू हुआ है। भारत सरकार के गृह सचिव अजय भल्ला ने लॉकडाउन के चौथे चरण को लेकर नये दिशानिर्देश जारी किए हैं।

इस आदेश में कहा गया है कि जब तक इस आदेश के तहत जारी परिशिष्ट में कोई दूसरा प्रावधान नहीं किया गया हो वहाँ आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 10(2)(1) के तहत राष्ट्रीय कार्यकारी समिति द्वारा जारी आदेश 18 मई 2020 से अमल में नहीं आएगा।

गृह मंत्रालय के नए दिशानिर्देश में छह प्रकार के मानक परिचालन प्रोटोकॉल का जिक्र किया गया है. इनमें से ज्यादातर लॉकडाउन में लोगों की आवाजाही से संबंधित हैं। इसमें गृह सचिव द्वारा 29 मार्च 2020 को जारी आदेश शामिल नहीं है।

पुराने आदेश में सभी नियोक्ताओं को निर्देश दिया गया था कि किसी भी कटौती के बिना नियत तिथि पर श्रमिकों को लॉकडाउन की अवधि की मजदूरी का भुगतान करें, भले ही लॉकडाउन की अवधि के दौरान उनकी वाणिज्यिक इकाई बंद हो।

कोरोना/लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार सहित ज्यादातर राज्य सरकारें संकट का बोझ मज़दूरों पर डाल रही हैं। प्रवासी मज़दूर तो अबतक की सबसे बड़ी त्रासदी झेल रहे हैं। इसी के साथ लम्बे संघर्षों के दौरान हासिल श्रम क़ानूनी अधिकारों को निरस्त/निलंबित करने, काम के घंटे बढ़ाने, डीए फ्रिज करने, जनता के खून-पसीने से खड़े सार्वजनिक उद्योगों को अडानियों-अम्बानियों के हाथों में सौंपने आदि तेजी से बढ़ता जा रहा है।

मालिकों की हितसेवा में पगलाई मोदी सरकार ने 22 मई के देशव्यापी विरोध प्रदर्श से भी बेख़ौफ़ होकर यह नया फरमान जारी किया है। ऐसे में मज़दूरों को व्यापक एकता के साथ संघर्ष की धार को तीखा करना होगा!

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