महिला किसानों ने पारित किया अविश्वास प्रस्ताव : ‘मोदी गद्दी छोड़ो, कॉरपोरेट देश छोड़ो’

13 दिनों तक चली ऐतिहासिक किसान संसद में दो दिन महिला किसानों के नाम थे। 13वें दिन महिला किसानों ने मोदी सरकार और कॉरपोरेट लूट के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया और आंदोलन को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने का प्रण लिया।
किसान संसद के 13वें दिन की कमान महिला किसानों के पास
करीब 15 राज्यों की किसान महिलाओं ने 9 अगस्त 2021 को ऐतिहासिक बनाया। 200 महिला किसान सांसदों ने मोदी सरकार के ख़िलाफ़ हुंकार भरी और काले क़ानूनों को रद्द करने की माँग बुलंद की।
किसान संसद का नेतृत्व करते हुए इन महिला किसानों ने 9 अगस्त 1942 के नारे ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के तर्ज पर ‘मोदी गद्दी छोड़ो, कॉरपोरेट देश छोड़ो’ के नारे के साथ मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित किया।

देश की राजधानी दिल्ली में जंतर-मंतर पर चल रही किसान संसद ने 13 दिनों तक विधिवत तरीके से तीनों कृषि बिलों पर चर्चा करते हुए इन्हें किसान विरोधी व आम नागरिक के लिए विनाशकारी बताया और इन्हें रद्द कर दिया गया।
उल्लेखनीय है कि किसान जत्थेबंदी के 200 सदस्य 22 जुलाई से लगातार हर दिन देश की संसद के समांतर संसद भवन के निकट जंतर-मंतर पर अपनी संसद चलते रहे और किसान, मज़दूर व आमजन के हित में प्रस्ताव पारित करते रहे हैं।
महिलाओं ने निभाई स्पीकर डिप्टी स्पीकर की जिम्मेदारी
तेरह दिनों तक चली किसान संसद में दो दिन महिला किसानों के नाम थे—जिसमें तमाम राज्यों से आई हुईं महिला किसान नेताओं ने निर्धारित समय के भीतर अपनी बातें रखीं।
तीन सत्रों में बंटे आज के सत्र में बड़ी संख्या में महिला किसान नेताओं ने शिरकत की। पहले सत्र की स्पीकर पंजाब की प्रो. रणधीर कौर भंगु और वाइस स्पीकर हरियाणा की रीमन नैन थी, जबकि दूसरे सत्र में उत्तर प्रदेश की सुनीता टिकैत और पंजाब की उषा रानी ने सत्र को संचालित किया।
सभी ने एक स्वर में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर सहमति जताई और ऐलान किया कि मोदी सरकार को हटाना ही किसानों और देश के हित में है, क्योंकि वह सिर्फ कॉरपोरेट घरानों के लिए काम कर रही है।
आज किसान संसद में दो विशेषज्ञ वक्ता भी बुलाए गये थे— जिनमें अर्थशास्त्री नवशरण कौर और पटियाला विश्वविद्यालय की प्रो. अनुपमा थीं।

कृषि क़ानूनों के निरस्त होने तक जारी रहेगा आंदोलन
महिला किसान नेताओं में गुस्सा और आक्रोश था और वे इस बात को दोहरा रही थीं कि जब तक तीन कृषि कानून वापस नहीं लिये जाते, तब तक वे अपने आंदोलन में डटी रहेंगी, इसे आगे बढ़ाती रहेंगी।
नवशरण कौर ने तीनो कानूनों के किसान विरोधी और देश विरोधी चेहरे को उजागर करते हुए कहा, किसान संसद ने देश और दुनिया को दिखाया कि किस तरह से लोकतंत्र को बहस-मुबाहिसें के साथ जिंदा रखना चाहिए। दरअसल किसान आंदोलन लोकतंत्र की एक पाठशाला है, जहां संविधान, अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जबर्दस्त शिक्षा-दीक्षा हो रही है।
लखनऊ से आई महिला नेता मीना सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही नहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी योगी- मोदी सरकार के खिलाफ गुस्सा है। यह आने वाले विधानसभा चुनावों में सत्ता परिवर्तन की राह खोल सकता है। किसानों और आम नागरिकों के हकों की बटमारी करके सिर्फ हिंदू-मुसलमान कार्ड खेलकर जनता को भरमाया नहीं जा सकता।

ओलंपिक में किसानों की मेहनत चमकी है
आज किसान महिला संसद में भारत के उन तमाम खिलाड़ियों को शाबाशी दी गई, जो ओलंपिक में मेडल जीत कर आए और जिन्होंने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया।
हरियाणा की अंतरराष्ट्रीय शूटर पूनम पंडित ने कहा, ओलंपिक में किसानों की मेहनत चमकी है, गोल्ड मेडल किसान का बेटा लाया है। किसान आज कह रहा है कि मोदी सरकार ठीक नहीं कर रही, बिना मतलब के हिंदू-मुसलमान कर रही है—देश बांट रही है, तो सरकार को सुनना पड़ेगा।

महिला किसानों ने पेश की शानदार मिसाल
महिला किसानों का किसान संसद के आखिरी दिन को नेतृत्व करना और पूरे पेशेवर अंदाज में सत्र का पूर्ण आत्मविश्वास और राजनीतिक परिपक्वता के साथ संचालन करना—निश्चित तौर पर बदलते किसान आंदोलन की उजली तस्वीर है।
जिस तरह से महिला किसानों ने कमान संभाली है आंदोलन की और आज यहां से मोदी सरकार के खिलाफ हुकुम जारी किया गया है, वह लंबे समय तक याद रखा जाएगा।