8 मार्च क्यों बना महत्वपूर्ण दिवस?

Shramjivi mahila

अंतरराष्ट्रीय श्रमजीवी महिला दिवस :  विरासत व प्रासंगिकता

अंतरराष्ट्रीय श्रमजीवी महिला दिवस की कहानी 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है। अन्य कई दिवसों और त्योहारों से भिन्न इसका नायक कोई एक महापुरुष नहीं, बल्कि वे लाखों महिलाएं हैं जिन्होंने अपने और अपने प्रियजनों के अधिकारों को जीतने के लिए संघर्ष किया।

एक भूली हुई कहानी

8 मार्च सन 1857 में अमेरिकी राजधानी न्यू यार्क के गारमेंट उद्योग में बेहद दर्दनाक हालातों में काम करने वाली महिलाओं ने बेहतर काम करने के वातावरण और 10 घंटे काम करने के अधिकार की माँग करते हुए एक जुलूस निकाला, जिस पर हुए दमन में कई महिला मज़दूर शहीद हुईं। तबसे एकता व संघर्ष का सिलसिला आगे बढ़ता रहा।

सन 1910 में समाजवादी मज़दूर संगठनों से जुड़ी महिलाओं के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में 17 मुल्कों से आए प्रतिनिधियों ने क्लारा जेटकिन की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने का फैसला किया। इस दिवस के जरिए समाज में मध्यवर्गीय महिला आंदोलन को चुनौती देते हुए समाजवादी मज़दूर वर्ग की महिलाओं ने महिला मुक्ति के सवाल को मौलिक रूप से मजदूरों के सवालों से जोड़कर स्थापित किया।

आज से 110 वर्ष पहले जलाई गई इस मशाल को थामे महिलाओं ने बड़े बलिदान देकर शिक्षा, वोट और पुरुषों के समान मज़दूरी पाने के अधिकार जीते। उन्होंने पूरे मज़दूर वर्ग के आंदोलन की अगुवाई भी की है। इतिहास में पहली बार मज़दूरों की सत्ता कायम करने वाली रूसी क्रांति इसका एक उत्साहजनक उदाहरण है। जब सन 1917 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मज़दूर घरों की महिलाओं द्वारा बढ़ती महंगाई के खिलाफ निकाले गए एक जुलूस ने जन उभार की पहली चिंगारी को हवा दी।

आज अनेकों महिलाएं समाज में अपने आप को कमजोर और असहाय पाती हैं। अपने भीतर अनेक प्रतिभाएं और संभावनाएं लिए हुए अनेकों नवयुवतियां कच्ची उम्र से ही केवल घर-द्वार और पारिवारिक रिश्तो के दायरे में बंधकर रह जाती हैं, जहाँ उनकी अन्य सभी आकांक्षाएं अक्सर घर तक सीमित हो जाती हैं। जब वह काम करने या पढ़ने निकलती भी हैं तो खुद को एक पुरुष प्रधान समाज में असुरक्षित और उपेक्षित पाती हैं।

ऐसे में अंतरराष्ट्रीय श्रमजीवी महिला दिवस की शानदार कहानी किसी और ही दुनिया में घटी मालूम पड़ती है। इन संघर्षों के 100 साल बाद भी हम एक कितना पिछड़ा जीवन जी रहे हैं!

औरतों के शोषण के नए तरीके

पूँजी के बढ़ते वर्चस्व के साथ समाज में महिलाओं का शोषण नए-नए रूप ले रहा है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी की स्थिति में मज़दूर घरों की अनेक महिलाएं कठिन से कठिन परिस्थितियों में नौकरी करने को मजबूर हैं।

उनकी इस कठिन वास्तविकता को पूरी तरह नकारते हुए सास बहू के धारावाहिकों के माध्यम से महिलाओं के जीवन का एक ऐसा आदर्श खड़ा किया जा रहा है, जहाँ महिलाएं सदा ही घरेलू झगड़ों और कामकाज में व्यस्त होते हैं और बाहर की व्यापक दुनिया में कोई रुचि नहीं रखती। फिल्मों और विज्ञापनों में भी महिलाओं को अक्सर महज एक उपभोग की वस्तु के समान दर्शाया जाता है, जिनका पहला चरित्र उनका आकर्षक पहनावा या लुभावना व्यवहार होता है और उनकी मेहनत-मशक्कत और संघर्ष सब पर्दे के पीछे रह जाते हैं।

मुनाफे के लिए महिला स्वभाव की ऐसी संकुचित कल्पना का प्रचार करने वाली पूँजीवादी व्यवस्था का यौन उत्पीड़न और बलात्कार जैसी दरिंदगी को बढ़ावा देने में बड़ा हाथ है।

भाजपा सरकार का दोमुंहा रवैया

कहा जा रहा है कि भाजपा सरकार महिलाओं के लिए बहुत काम कर रही है। उज्जवला, स्वच्छ भारत जैसी योजनाओं का भरपूर प्रचार हो रहा है। किंतु इसके साथ ही महिलाओं के साथ बढ़ती हिंसा की घटनाओं में भाजपा के नेताओं व उनके समर्थकों की भागीदारी और सरकार की जनविरोधी नीतियां महिलाओं का जीना दुश्वार भी कर रही हैं।

तीन तलाक पर भाजपा सरकार द्वारा लाया गया कानून सरकार द्वारा महिलाओं के प्रति रवय्ये का अच्छा उदाहरण है। जहाँ एक ओर वे मुसलमान महिलाओं के हितों की बात करते हैं और दूसरी ओर पूरे मुसलमान समुदाय पर लगातार हमले कर रहे हैं। यही कारण है कि आज मुसलमान महिलाएं हों या अलग-अलग उद्योगों में कार्यरत मज़दूर महिलाएं हों, जैसे कि चाय श्रमिक, भोजन माताएं, आंगनवाड़ी श्रमिक, गारमेंट श्रमिक इत्यादि महिलाओं के विभिन्न हिस्से सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरी हुई हैं।

जहाँ दुनिया की आधी आबादी असाक्षरता, समान वेतन, बेरोजगारी और पुराने रीति-रिवाजों में बंधी पड़ी है, वहीं समाज के प्रगतिशील परिवर्तन का सपना कहां तक साकार हो सकता है? हमारे देश में आज महिलाओं का संगठित आंदोलन कमजोर और महिलाओं के एक बहुत ही छोटे हिस्से तक सीमित है।

ऐसे में अंतरराष्ट्रीय श्रमजीवी महिला दिवस की सालगिरह हमारे लिए ना केवल महिलाओं के दशकों पुराने संघर्ष को याद करने का अवसर बननी चाहिए बल्कि इस संघर्ष को एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाने की प्रेरक भी होनी चाहिए।

विश्व भर में कुछ अगुआ महिलाओं द्वारा लड़े गए संघर्षों का हमारे जीवन में आज भी गहरा प्रभाव है। शिक्षा, वोट और नौकरी करने के अधिकार, जो आज महिलाओं के एक हिस्से को हासिल हुए हैं, उन्हें पाने के लिए हमारी परनानिओं ने शहादतें दी हैं। इन अधिकारों को बनाए रखने और समाज में महिलाओं के लिए समानता स्थापित करने में यह संघर्ष हर एक महिला और न्याय प्रिय व्यक्ति की भागीदारी की माँग करता है।

नारी के बढ़ते क़दम‘ पत्रिका, अंक 3 (जनवरी-मार्च 2020) में प्रकाशित

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