इज़राइल में मज़दूरों की भारी कमी को पूरा करने के लिए भारत से मजदूरों को हायर करने की योजना के तहत जो भारतीय मज़दूर इज़राइल पहुंचे, उनमें से कई निराश होकर वापस लौट रहे हैं। इज़राइल की निर्माण क्षेत्र में मज़दूरों की भारी कमी को पूरा करने के लिए बनाई गई नौकरी योजना अब असफल होती दिख रही है। इज़राइल ने भारत से स्किल्ड मजदूरों को हायर करने का फैसला किया था, लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके उलट है। जो भारतीय मज़दूर इस योजना के तहत इज़राइल पहुंचे, उनमें से कई निराश होकर वापस लौट रहे हैं। 7 अक्तूबर 2023 को हमास ने इज़राइल पर हमला किया, जिसके बाद इज़राइल ने एक लाख से ज्यादा फिलिस्तीनी मजदूरों को बैन कर दिया। इसके बाद, इज़राइल के निर्माण क्षेत्र में मजदूरों की भारी कमी हो गई, जिसे पूरा करने के लिए इज़राइल ने भारत से 10,000 से अधिक मज़दूरों को बुलाने की योजना बनाई। हालांकि, भारतीय मज़दूरों का इज़राइल में अनुभव निराशाजनक रहा है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जिन मज़दूरों ने स्किल टेस्ट पास किया था, उन्हें इज़राइल में निर्माण कार्य के लिए अयोग्य पाया गया। इस वजह से उन्हें अकुशल कामों में, जैसे इंडस्ट्रियल सेक्टर में मजदूरी या फैक्ट्री में सफाई जैसे कामों में शिफ्ट कर दिया गया। यूपी के जौनपुर के छोटे लाल बिंद, जिन्होंने प्लास्टरिंग का टेस्ट पास किया था, उन्हें इज़राइल भेजा गया। लेकिन, चीनी फोरमेन के साथ विवाद के बाद उन्हें 12 दिनों के अंदर नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बाद उन्हें एक फैक्ट्री में क्लीनर की नौकरी मिली। इसी तरह यूपी के मऊ के वीना नाथ गुप्ता को भी मजदूरी के लिए शिफ्ट कर दिया गया। द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, सीवान के श्रमिक श्रीवास्तव ने कहा, ‘मुझे शटरिंग में कौशल के लिए परीक्षण किया गया था, लेकिन जब मैं अशकेलोन में एक वाणिज्यिक टॉवर के निर्माण स्थल पर पहुंचा, तो मुझे वेल्डिंग, टाइलिंग और झाड़ू लगाने जैसे काम सौंपे गए’। ‘विरोध करने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि चीनी पर्यवेक्षक मेरी समस्याओं को समझ नहीं पा रहे थे। कुल मिलाकर, मैंने 12 दिन काम किया और 18 दिन तक कोई काम नहीं था। अंत में, मैंने चीनी पर्यवेक्षक के साथ झगड़ा किया जिसने मुझे भारत लौटने के लिए कहा।’ इज़राइल ने दो तरीकों से भारतीय मज़दूरों को हायर किया— G2G (गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट) और B2B (बिजनेस-टू-बिजनेस)। G2G हायरिंग प्रक्रिया को राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) द्वारा संचालित किया गया था, जबकि B2B हायरिंग में निजी कंपनियों ने विदेश मंत्रालय की देखरेख में मज़दूरों की भर्ती की। एनएसडीसी ने पहले चरण में फ्रेमवर्क कंस्ट्रक्शन और आयरन वेल्डिंग के लिए 3,000-3,000 मज़दूरों और प्लास्टरिंग व सिरेमिक टाइलिंग के लिए 2,000-2,000 मज़दूरों को हायर किया। लेकिन G2G के तहत हायर किए गए मजदूरों की अनुभवहीनता सामने आई, जो इज़राइली निर्माण क्षेत्र की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए। इज़राइली निर्माण क्षेत्र के प्रमुख अधिकारियों ने खुलकर कहा कि भारतीय मज़दूरों का चयन सही नहीं हुआ। इज़राइली संघ के अध्यक्ष एल्दाद नित्जेन ने बताया कि, ‘G2G के माध्यम से चुने गए कई मज़दूर कंस्ट्रक्शन का अनुभव नहीं रखते थे। इनमें कुछ ने पहले कभी निर्माण क्षेत्र में काम नहीं किया था, और उनमें से कुछ तो खेती और बाल काटने जैसे कार्यों में लगे थे’। एल्दाद नित्जेन के अनुसार, B2B के तहत हायर किए गए मज़दूर बेहतर थे, लेकिन G2G के मजदूरों की अयोग्यता ने समूचे अभियान पर नकारात्मक प्रभाव डाला। इससे भारतीय मज़दूरों की छवि इज़राइली कंस्ट्रक्शन कंपनियों के सामने खराब हो गई, जिसका असर B2B के मज़दूरों पर भी पड़ा। फ़िलहाल NSDC (राष्ट्रीय कौशल विकास निगम) ने इज़राइल के लिए भारतीय मज़दूरों की भर्ती के पहले चरण पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। NSDC ने माना कि भर्ती प्रक्रिया में कुछ चुनौतियाँ आईं, खासकर G2G (गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट) योजना के तहत चुने गए मज़दूरों को लेकर। NSDC ने कहा कि, ‘इज़राइल की ओर से यह सुझाव दिया गया था कि अगर कोई मज़दूर निर्माण कार्य में फिट नहीं पाया जाता है, तो उसे बुनियादी ढाँचा और नवीनीकरण जैसे अन्य संबंधित क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सकता है, बशर्ते कि मज़दूर इसकी सहमति दें’। लगभग 500 से अधिक भारतीय मजदूर, खासकर G2G के तहत हायर किए गए, वापस भारत लौट आए हैं। इन असफलताओं के बावजूद, इज़राइल ने फिर से भारत से मजदूरों की भर्ती की प्रक्रिया जारी रखने की योजना बनाई है। ऐसे हालात में ये सवाल लाजमी है कि आखिर मज़दूरों के चयन में क्या प्रक्रिया अपने गई। एक युद्धरत जगह पर मज़दूरों को भेजने से पहले उनके काम को लेकर क्या किसी तरह की जाँच-पड़ताल नहीं की गई। युद्ध से जूझ रहे इज़राइल में भेजे गए भारतीय मजदूरों के सामने कई गंभीर चिंताएँ उभरकर आई हैं। जान और माल की सुरक्षा: हमास और इज़राइल के बीच चल रहे संघर्ष के कारण मजदूरों की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। युद्ध क्षेत्र के करीब काम करने से उनकी जान का जोखिम बढ़ गया है। काम की अनिश्चितता: कई मजदूरों को निर्माण कार्य के बजाय अन्य अकुशल नौकरियों में शिफ्ट किया गया है, जिससे उनकी पेशेवर योग्यता का सही उपयोग नहीं हो पा रहा। वेतन संबंधी समस्याएँ: मजदूरों ने शिकायत की है कि उन्हें वादा किए गए वेतन से कम या असंगत भुगतान किया जा रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ रहा है। सुरक्षा उपायों की कमी: युद्धग्रस्त क्षेत्रों में मजदूरों के लिए पर्याप्त सुरक्षा और बचाव उपायों का अभाव है, जिससे उनका जीवन और कामकाजी स्थिति असुरक्षित हो गई है। इन समस्याओं ने मजदूरों के भविष्य और उनकी सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। वर्कर्स यूनिटी से साभार