अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा कहाँ रखें ?

Yes bank

ऐसी कहीं कोई जगह बची ही नहीं! अफसोस,पर सच यही है!

पूँजीवादी आर्थिक संकट इतना गहरा गया है कि अब वह अपने लग्गू-भग्गू टटपूंजिया या मध्यवर्ग को मुनाफे का एक हिस्सा भी देने को तैयार नहीं. . . यस बैंक घटना के आलोक में बढ़ते आर्थिक संकट पर वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक साथी मुकेश असीम की पोस्ट. . .

अमेरिकी सरकार के ट्रेजरी बिल दुनिया में सबसे सुरक्षित माने जाते हैं। उनमें आज इतना पैसा लगा कि 30 साल के बॉन्ड पर ब्याज दर 0.7% और 10 साल पर 0.3% पहुँच गई। जर्मनी में 5 साल की ब्याज दर  -1% हो गई (बस मेरा पैसा रख लो, ब्याज नहीं चाहिए, 1% सालाना फीस काट लेना!)

भारत में भी सरकारी बॉन्ड की कीमत आज इतनी बढ़ी कि 6.5% या 7% के 10 साल के बॉन्ड को 6% से नीचे पर खरीदा गया। उधर यस बैंक के 5 साल के बॉन्ड को 10% ब्याज पर भी खरीदार नहीं मिल रहे! क्यों?

दो साल से आप सबने बेल इन वाले प्रस्तावित कानून का जिक्र सुना होगा – यस बैंक के मामले में बिना कानून के ही बेल इन हो गया। यस बैंक के मालिकों के शेयर तो रिजर्व बैंक ने ऊँची कीमत पर बिकवा दिये, पर ऊँची ब्याज दर के लोभ में उसके बॉन्ड में पैसा लगाने वालों का 10 हजार करोड़ रु शून्य घोषित कर दिया अर्थात बैंक इन्हें 1 पैसा भी नहीं लौटाएगा। अब अन्य बैंकों के ऐसे 95 हजार करोड़ के बॉन्ड धारक (बीमा/MF) इन्हें औने-पौने दामों पर बेचने को तैयार हैं,पर खरीदार नहीं।

सुरक्षित जगह की तलाश के ये उदाहरण उनके हैं जिनके पास हजारों करोड़ रु और उसके प्रबंधन के लिए कई-कई MBA-CA प्रबंधक लगे हैं।

खुद सरकारों की वित्तीय स्थिति ऐसी है कि रूस और सऊदी अरब बाजार से एक-दूसरे को बाहर करने के लिए खुद दिवालिया होने का जोखिम लेने को तैयार हैं! कई देश कर्ज भुगतान में डिफ़ाल्ट करने की स्थिति में हैं।

ऐसे में खुद बड़े-बड़े बैंक अपने पैसे को सुरक्षित रखने का उपाय नहीं ढूंढ पा रहे हैं, हम-आप की इस सट्टाबाजार में बिसात ही क्या? इस हालत में कुछ बड़े शार्क ही पैसा बनाने वाले हैं, छोटी मछलियों को तो उनका भोजन ही बनना है।

पूँजीवादी आर्थिक संकट इतना गहरा गया है कि अब वह अपने लग्गू-भग्गू टटपूंजिया या मध्यवर्ग को मुनाफे का एक हिस्सा देने को तैयार नहीं। मध्यवर्ग के बड़े हिस्से को अब नीचे की ओर धकेलना जरूरी है। वित्तीय संकट का हर दौर यही काम करने वाला है। पूंजीवादी व्यवस्था में इसका और कोई विकल्प नहीं।

भूली-बिसरी ख़बरे