पश्चिम बंगाल: एक दशक लंबे संघर्ष के बाद बारानगर जूट मिल मज़दूरों को मिली जीत

मज़दूरों की यह जीत हर मज़दूर को एक तरफ नये श्रम कानूनों का विरोध करने और दूसरी तरफ मजदूरों के हित में कानूनी व्यवस्था को मजबूत करने के लिए जोरदार लड़ाई लड़ने की प्रेरणा देती है।

कोलकाता (पश्चिम बंगाल)। एक दशक लंबे संघर्ष के बाद बारानगर जूट मिल मजदूरों ने ग्रेच्युटी भुगतान का अपना हक़ हासिल कर लिया है। इस दौरान क़ानूनी लड़ाई के साथ मालिकों की धमकियों से डरे बगैर मज़दूर पूरे हौसले के साथ संघर्षरत रहे। मज़दूरों ने मिल मालिक के साथ दलाल यूनियनों को भी आईना दिखलाया।

क्या है मामला?

दस साल पहले कोलकाता के बारानगर जूट मिल के दस मज़दूरों ने ग्रेच्युटी का पैसा ठीक से नहीं मिलने पर मुकदमा किया था। मुक़दमें के करण उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। विषम परिस्थितियों के बावजूद पांच मज़दूरों ने इस लंबे समय तक लड़ाई जारी रखी और जीत तक पहुँचे।

फैसला उनके पक्ष में आने के बाद भी मिल मालिक कोर्ट के आदेश को मानने को तैयार नहीं हुए व उल्टा मजदूरों को धमकी देते रहे। उन्होंने कुछ हज़ार रुपयों में विवाद निपटाने का प्रस्ताव भी रखा।

ग्रेच्युटी का पैसा ग़बन करना प्रथा है

दरअसल पूरे क्षेत्र में ग्रेच्युटी का सारा पैसा ग़बन कर जाने या कम करके देने की प्रथा सामान्य बन गई थी। दलाल ट्रेड यूनियन भी इस प्रथा में अपनी रज़ामंदी दे चुके थे। ऐसे में मलिक द्वारा कोर्ट का आदेश मान लेने से पूरे क्षेत्र में इस ग़ैर क़ानूनी कारोबार के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो जाती।

अडिग मज़दूरों ने हासिल की जीत

श्रमिकों ने स्वाभाविक रूप से इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। पैसा वसूलने की कार्यवाही भी करीब पांच साल तक चलती रही। लंबी जद्दोजहद के बाद जब कंपनी के निदेशक के नाम गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ तब मजबूरन उसे खुद अदालत में आना पड़ा।

मलिक ने फिर एक बार पैसों से मज़दूरों को ख़रीदने की कोशिश की लेकिन मज़दूर अडिग रहे। वे अदालत के आदेश के मुताबिक पैसे लिए बिना लड़ाई छोड़ने को तैयार नहीं थे। और अंततः मिल मालिक सभी को उनका बकाया देने पर मजबूर हुए।

जोरदार लड़ाई लड़ने की प्रेरणा

इस लड़ाई ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि इस घोर मज़दूर विरोधी तंत्र में भी मालिक के लिए लंबी लड़ाई की टक्कर में मौजूदा कानूनी ढांचे को पूरी तरह नकार देना हमेशा संभव नहीं होता है। लेकिन अगर मोदी सरकार द्वारा लाये जा रहे नये श्रम कानून प्रभावी हो जाएँ तो ऐसी लड़ाईयों के लिए कोई जगह नहीं बचेगी।

बारानगर जुट मिल के मज़दूरों की जीत हर मज़दूर को एक तरफ नये श्रम कानूनों का विरोध करने और दूसरी तरफ मजदूरों के हित में कानूनी व्यवस्था को मजबूत करने के लिए जोरदार लड़ाई लड़ने की प्रेरणा देती है।

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