श्रीदेव सुमन के शहीदी दिवस पर विविध कार्यक्रम: स्मृति यात्रा में जनता के हक़ों पर आंदोलन का ऐलान

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25 जुलाई स्वतंत्र सेनानी श्रीदेव सुमन के 80वें शहीदी दिवस के अवसर पर विविध कार्यक्रमों के आयोजन हुए, उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प बंधा और जनता के हक़ के आंदोलन को तेज करने का संकल्प बंधा।

श्रीदेव सुमन की क्रम स्थली टिहरी में “नफरत नहीं रोज़गार दो” के नारे के साथ कुमाऊँ एवं गढ़वाल के जन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने “श्रीदेव सुमन स्मृति यात्रा” का आयोजन किया।

वहीं अल्मोड़ा शहीद श्रीदेव सुमन के संघर्षों को याद करते हुए उपपा कार्यालय में हुई संगोष्ठी में उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए आज के उत्तराखंड को संवारने के लिए जनता से आगे आने का आह्वाहन किया गया।

प्रातः नई टिहरी जेल पर श्रीदेव सुमन को श्रद्दांजलि अर्पित करने के पश्चात शहीद यात्रा जुलूस निकाल कर सुमन पार्क पहुंची। जिसमें बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों ने भी भागीदारी की।

सुमन पार्क में हुई सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि शोषण और तानाशाही के खिलाफ श्री देव सुमन ने 84 दिनों तक अनशन करते हुए अपने जीवन की आहुति दे दी। वे न  केवल अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे बल्कि उन्होंने टिहरी रियासत के खिलाफ भी अपना संघर्ष जारी रखा था।

परंतु आजादी के बाद भी टिहरी व उत्तरकाशी में जनता का बर्बर दमन करने वाली राजशाही की संपत्ति जप्त करने और उसके खिलाफ मुकदमा चलाने की कार्रवाई सरकारों द्वारा नहीं की गयी। उल्टा उनका मान मनौव्वल किया गया।

विभिन्न प्रस्ताव पारित; संघर्ष तेज करने का ऐलान

सभा में वक्ताओं ने कहा कि भाजपा सरकार लगातार जन विरोधी नीतियों को बढ़ावा दे रही है। नए आपराधिक कानून; लोगों के ज़मीन और वनों पर हक़ों पर लगातार हनन; नफरत, जातिवादी भेदभाव को निरंतर बढ़ावा दिया जा रहा है। महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों पर हमले बढ़ रहे हैं। कल्याणकारी योजनाओं में हो रहे समस्याएं इस लोकतंत्र विरोधी मंशा को साबित करते हैं।

सभा में आगामी अक्टूबर महीने में समान नागरिक संहिता और नए 3 आपराधिक कानूनों पर कुमाऊँ में जन सम्मेलन करने की घोषणा की गई। सभा में अतिक्रमण हटाने के नाम पर जनता को उजाड़े जाने के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित हुआ।

उल्लेखनीय है कि श्रीदेव सुमन को श्रद्धांजलि देने के लिए 24 जुलाई को कुमाऊं के सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं का दल सुमन पार्क, नई टिहरी पहुंचकर श्रद्धांजलि कार्यक्रम के आयोजन तथा उस जेल का दौरा करने जहां पर श्री देव सुमन की यादें संजो कर रखी गई हैं, के लिए टिहरी रवाना हुआ था।

स्मृति यात्रा में समाजवादी लोक मंच के मुनीष कुमार, ललित उप्रेती, लक्ष्मी, राजेंद्र सिंह एवं दिगम्बर; महिला एकता मंच की ललिता रावत एवं सरस्वती; वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी, गोपाल लोधियाल, पावनी, एवं अशरफ; चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, विनोद बडोनी और महावीर सिंह रावत सहित राज्य के अन्य जन संगठन शामिल रहे।

अल्मोड़ा टिहरी रियासत के ज़ुल्मों के खिलाफ़ 84 दिन की भूखहड़ताल के बाद शहीद हुए श्रीदेव सुमन के संघर्षों को याद करते हुए उपपा कार्यालय में हुई संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि श्रीदेव सुमन की परंपरा ज़िंदा है हम उन्हें न भूले हैं न भूलेंगे। इस मौक़े पर वक्ताओं ने सुमन के जीवन से प्रेरणा लेते हुए आज के उत्तराखंड को संवारने के लिए जनता से आगे आने का आह्वाहन किया।

 “श्रीदेव सुमन का बलिदान एवं उत्तराखंड” विषय पर हुई संगोष्ठी में आधार व्यक्तव्य रखते हुए उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पी सी तिवारी ने कहा कि 25 मई 1916 को जौल में जन्मे श्रीदेव सुमन ने मात्र 29 वर्ष के जीवन में टिहरी रियासत के ज़ुल्मों व भारत की आज़ादी के लिए ऐतिहासिक व उल्लेखनीय संघर्ष किए। उन्होंने एक कुशल संगठनकर्ता, पत्रकार व साहित्यकार के रूप में टिहरी रियासत व देश में आज़ादी के संघर्षों को नई दिशा दी।

सुमन टिहरी प्रजामण्डल की स्थापना से ही उसके मंत्री रहे। 1939 में उन्होंने इसके प्रतिनिधि के रूप में अखिल भारतीय देशी रियासतों के परिषद् की लुधियाना में हुई बैठक की भागीदारी की एवं उसकी केंद्रीय समिति के सदस्य बनाए गए। उन्हें टिहरी रियासत के हुक्मरानों ने 80 दिनों में 5 बार गिरफ़्तार किया। 1942 में श्रीदेव सुमन को भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ़्तार किया गया। 30 दिसम्बर 1943 को टिहरी रियासत ने उन्हें गिरफ़्तार किया और 3 मई 1944 को उन्होंने अपनी ऐतिहासिक भूख हड़ताल शुरू की जो 25 जुलाई 1944 को उनके बलिदान पर समाप्त हुई।

सुमन टिहरी प्रजामण्डल के माध्यम से नरेश की छत्रछाया में उत्तरदायी प्रजातंत्र शोषण, दमन के अंत व नागरिक अधिकारों की बहाली के लिए संघर्ष कर रहे थे।

लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला; संघर्ष जरूरी

संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि सुमन के बलिदान के 80 वर्ष बाद भी भारतीय सत्ता के चरित्र में मौलिक अंतर नहीं आया है। आज भी श्रमिक नेताओं को गुंडा घोषित किया जा रहा है। लोकतांत्रिक अधिकारों को हर क्षेत्र में कुचला जा रहा है जिसके चलते सुमन के संघर्षों की परंपरा आज भी ज़िंदा रखने की ज़रूरत है।

वक्ताओं ने कहा कि आज हमें अपने नागरिक बोध को जगाने व आज भी उत्तराखंड व हिमालय के पर्यावरण, संसाधनों व समाज के विकास के लिए संघर्ष में उतरने की ज़रूरत है।

संगोष्ठी के अध्यक्षता मंडल में बालप्रहरी के संपादक उदय किरौला, शिक्षाविद सी एस बनकोटी एवं पूर्व प्राचार्य नीरज पंत शामिल रहे।

बैठक में कुमाऊनी भाषा के कवि व साहित्यकार महेंद्र ठाकुराठी, एड पान सिंह बोरा, अफ़सर अली, पूर्व सीडीपीओ सुश्री भगवती गुसाईं, उपपा की केंद्रीय उपाध्यक्ष आनंदी वर्मा, उपपा के महासचिव एडवोकेट नारायण राम, एड जीवन चंद्र, अमीनुर्रहमान, मुहम्मद साकिब, रेखा आर्या, दीपा देवी, राजू गिरी, उछास की भावना पांडे आदि लोग उपस्थित रहे।

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