उत्तराखंड : श्रम क़ानूनों को पंगु बनाने की कवायद तेज

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उत्तराखंड सरकार 7 दिन में केंद्र को भेजने वाली है श्रम सुधार प्रस्ताव

केंद्र की मोदी सरकार की तर्ज पर देश की तमाम राज्य सरकारें मालिकों के हित में श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने पर तुली हैं। इसी क्रम में उत्तराखंड में निवेशकों को आकर्षित करने के बहाने श्रम कानूनों में सुधार की कवायद चल रही है। ‘अमर उजाला’ संवाद में मुख्यमंत्री रावत ने 7 दिनों में श्रम कानूनों के नए ड्राफ्ट लाने की बात भी कर दी। ये बदलाव श्रमिकों के लिए बेहद ख़तरनाक हैं।

“निवेशक को दोस्त की तरह देखा” –मुख्यमंत्री

10 जुलाई को अमर उजाला वेबिनर संवाद में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि पिछले कई सालों से प्रदेश में श्रम सुधार के तहत नियम, कानूनों को बदला जा रहा है और नए नियम बनाए जा रहे हैं। अब भी 15 सुधार बाकी हैं। कोविड काल में कारखानों को फिर से पनपने देने के लिए सरकार बाकी बचे हुए सारे श्रम सुधारों पर फैसला लेकर सात दिन के अंदर केंद्र को प्रस्ताव भेजेगी। यह प्रस्ताव मंत्रिमंडल में आएगा।

सरकार ने राज्य में औद्योगिक मैत्री वातावरण बनाने का काम किया। हमने इन्वेस्टर को दोस्त की तरह देखा।

मुनाफाखोर निवेशक ज़नाब के मित्र हैं, लेकिन मेहनतकश मज़दूर?…

https://mehnatkash.in/2020/05/11/now-the-workers-are-ready-to-cut-their-entire-neck/

केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय का राज्य सरकारों को सुझाव

‘कोविड-19 की चुनौती को अवसर में बदलने’ की कवायद के साथ केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने सभी राज्यों से अपने वहाँ औद्योगिक वातावरण सुधारने और श्रम कानूनों में संशोधन करने की अपेक्षा की है। मकसद है विदेशी कंपनियां को निवेश के लिए मुफीद वातावरण देना। वाणिज्य मंत्रालय लगातार सभी राज्यों के साथ संपर्क में भी है। इस कड़ी में उत्तराखंड में भी श्रम कानूनों में बदलाव किया जा रहा है। 

क्या होगा बदलाव?

बदलाव असल में क्या होने वाला है, यह खुलकर सामने नहीं आ पाया है, लेकिन मीडिया की ख़बरों से जो जानकारी मिल रही है और खुद रावत सरकार मोदी सरकार के अनुकरण, योगी सरकार, एमपी व गुजरात सरकार द्वारा किए गए संशोधन का अध्ययन करके संशोधन की बात कर चुकी है, उससे स्थिति साफ़ है।

कैबिनेट में भी बीते दिनों औद्योगिक विवाद अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव लाया गया था। इसमें अधिकांश उद्योगों को श्रम क़ानूनी दायरे से बाहर रखने की सिफारिश की गई थी।  इसे श्रम मंत्री हरक सिंह रावत और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक की अध्यक्षता में गठित मंत्रिमंडलीय समिति को सौंपा गया। इस पर अभी फैसला लिया जाना है। मुख्यमंत्री इसे ही 7 दिन में लाने को कह रहे हैं।

इस कड़ी में काम के घंटे 12 करने का फरमान उत्तराखंड सरकार पहले ही पारित कर चुकी है। उद्योगों में तीन से अधिक यूनियन न बनाए जाने के प्रस्ताव को कैबिनेट मंजूर कर चुकी है। औद्योगिक नियोजन (स्थाई आदेश) अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव द्वारा फिक्स्ड टर्म को और प्रभावी बनाया जा रहा है। वहीं औद्योगिक विवाद अधिनियम में संशोधन का मामला मंत्रिमंडलीय समिति के पास है। इसके अलावा अन्य श्रम कानूनों में भी ढील देने की तैयारी चल रही है।

नए प्रस्ताव में कहा गया कि कारखानों में तीस फ़ीसदी या 250 कर्मचारियों पर ही यूनियन बन सकेगी। सरकार का कहना है कि इसका मकसद औद्यौगिक विवादों में कमी लाना है। इसके अलावा यूनियनों की संख्या भी सीमित की गई है।

यूपी व उत्तराखंड में लागू श्रम कानून पहले से ही है मालिकपक्षीय

उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में लागू उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 व अन्य कई श्रम क़ानून पहले से ही मालिकों के ज्यादा अनुकूल रहे हैं। यहाँ 300 से कम श्रमशक्ति वाले प्रतिष्ठानों में छंटनी, बंदी, लेऑफ़ के लिए अनुमति की ज़रुरत नहीं है। लेऑफ़ के लिए तो पूरा प्रावधान ही ऐसा बना है, जो मालिकों को मनमर्जी की खुली छूट देता है। इन राज्यों में ट्रेड यूनियन पंजीकृत होने के बाद 2 साल तक यूनियन माँगपत्र नहीं दे सकती।

ऐसे में नए संशोधन मज़दूरों को पूरी तरीके से बंधुआ बना देंगे।

जाहिरा तौर पर इन सुधारों के मूल में है ‘हायर एंड फायर’ यानी जब चाहो काम पर रखो, जब चाहो लात मारकर निकाल दो! इसमें फिक्स्ड टर्म यानी नियत अवधि के रोजगार को बढ़ाने, फोक़ट के मज़दूर नीम ट्रेनी रखने, यूनियन बनाने व संगठित होने के रास्ते बंद करने, छंटनी-बंदी की खुली छूट देने आदि मज़दूर विरोधी क़दम शामिल हैं।