उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रेप आरोपी के घर को ढहाने से रोका, कहा- सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन

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पॉक्सो और बलात्कार के एक मामले आरोपी को ध्वस्तीकरण नोटिस मिला था, जिसके बाद आरोपी की पत्नी ने अपने वकील के माध्यम से उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया था. हाईकोर्ट ने पिछले वर्ष 13 नवंबर को जारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए इस नोटिस को अवमानना माना.

नई दिल्ली: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने शुक्रवार (2 मई) को जिला प्रशासन, नगर पालिका परिषद और राज्य पुलिस को नैतीताल में पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) मामले में 65 वर्षीय आरोपी के घर ढहाने से संबंधित नोटिस जारी करने को लेकर फटकार लगाते हुए इसे रद्द कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, ये मामला उस वक्त सुर्खियों में आया, जब बुधवार (30 अप्रैल) की शाम 12 वर्षीय पीड़ित लड़की की मां उन्हें लेकर थाने पहुंची और उन्होंने शिकायत दर्ज कराई कि 12 अप्रैल को आरोपी उस्मान ने उनकी बेटी के साथ बलात्कार किया.

इसके बाद इलाके में विरोध प्रदर्शन हुए और उस्मान का जहां दफ्तर था, उस बाजार में कुछ दुकानों और रेस्तरां में तोड़फोड़ की गई. इस संबंध में ध्वस्तीकरण नोटिस मिलने के बाद आरोपी उस्मान की 60 वर्षीय पत्नी ने अपने वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता के माध्यम से उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया. मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और जस्टिस रवींद्र मैथानी की खंडपीठ ने कहा, ‘हम अवमानना ​​आदेश जारी कर रहे हैं और इसे गंभीरता से ले रहे हैं. आप (नगर परिषद) सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकते; यह बहुत पहले पारित नहीं हुआ था. चाहे कोई भी हो, जो भी हो, सर्वोच्च न्यायालय बहुत स्पष्ट है: यदि आप किसी घर को ध्वस्त करना चाहते हैं, तो प्रक्रिया क्या है?’

प्राधिकरण के वकील जेएस विर्क ने कहा कि नगर परिषद द्वारा नोटिस वापस ले लिया जाएगा. मालूम हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष 13 नवंबर को अपने आदेश में कहा था कि कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस आधार पर नहीं ढहा सकती कि वो किसी अपराध का अभियुक्त या दोषी है.

इस संबंध में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि बुलडोज़र से संपत्तियां ढहाना अराजकता की स्थिति है. किसी इमारत को ध्वस्त करने वाले बुलडोज़र का भयावह दृश्य उस अव्यवस्था की याद दिलाता है, जहां ताकतवर को ही सही माना जाता है.

उस्मान को जारी नोटिस में प्रशासन द्वारा आरोप लगाया गया है कि उन्होंने नगर पालिका/वन भूमि पर अतिक्रमण किया है. उनकी पत्नी ने अपनी याचिका में दावा किया है कि स्थानीय मीडिया द्वारा कथित बलात्कार के बारे में रिपोर्ट किए जाने के बाद उन्हें धमकियां मिलनी शुरू हो गईं और वह अपने घर से भाग गईं.

राज्य के वकील ने यह भी तर्क दिया कि अवैध अतिक्रमण को लेकर कई लोगों को नोटिस भेजे गए थे. पुलिस को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘आपकी अक्षमता इन सभी समस्याओं का कारण बनती है और आप इसे छुपाना चाहते हैं. सभी की दुकानें… उनमें तोड़फोड़ क्यों की गई? अगर पुलिस सतर्क होती तो ऐसा नहीं होता. आगजनी करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है? हम जवाब चाहते हैं.’

मालूम हो कि गुरुवार को जिला न्यायालय में वकीलों ने आरोपी का प्रतिनिधित्व करने से इनकार कर दिया. जस्टिस मैथानी ने कहा, ‘जब आरोपी को न्यायालय में पेश किया गया, न्यायालय के गेट पर वकीलों के साथ हाथापाई हुई, आपने इसकी अनुमति क्यों दी? आपने इसका अनुमान क्यों नहीं लगाया?’

मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि किसी को आरोपी का प्रतिनिधित्व करने से कैसे रोका जा सकता है. गौरतलब है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने में यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुई घटनाओं का हवाला देते हुए बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका में जमीयत ने अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया था. याचिका में सरकार को आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाने से रोकने की मांग की गई थी.

इस पर अदालत ने देशभर में संपत्तियों को ढहाने के संबंध में दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा था कि इस तरह का न्याय शक्तियों के पृथक्करण (separation of powers) के सिद्धांत का उल्लंघन करता है. यह अभियुक्तों और दोषी ठहराए गए लोगों के परिवारों पर ‘सामूहिक दंड’ देने के समान है.

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