यूपी: 6 माह से धरनारत जूनियर इंजीनियर; पांच वर्ष पूर्व निकली वैकेंसी, अभीतक नौकरी नहीं

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200 दिनों का विरोध। आवेदक जेई पत्र लिख सीएम से पूछ रहे हैं कि ”या तो हमारा परिणाम घोषित कर भर्ती प्रक्रिया पूरी करो या हमारी आत्‍महत्‍या की जिम्‍मेदारी लो।”

लखनऊ : उत्तर प्रदेश लोक अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूपीएसएसएससी) की पांच वर्ष पूर्व वैकेंसी निकली थी जिसमें जूनियर इंजीनियर के पद के लिए आवेदन करने वाले आवेदक अभी तक इंतजार ही कर रहे हैं।

6 नवंबर 2022 से लखनऊ के ईको पार्क में बैठे जूनियर इंजीनियर आवेदक अब थक चुक हैं और अपने विरोध के अंतिम चरण में हैं। 200 दिनों तक विरोध करने के बाद अब आवेदक विभिन्‍न संबंधित सरकारी अधिकारियों को पत्र लिख रहे हैं कि ”या तो हमारा परिणाम घोषित कर भर्ती प्रक्रिया पूरी करो या हमारी आत्‍महत्‍या की जिम्‍मेदारी लो।” ये पत्र वे गवर्नर, मुख्‍यमंत्री कार्यालय और चयन प्रक्रिया के लिए तथा इन पदों को भरने के लिए जिम्‍मेदार विभागों को भेज रहे हैं।

आवेदकों का मानना है कि यूपीएसएसएससी में उनके पद अन्‍य पदों की तुलना में कम हैं इसलिए सरकार द्वारा इनकी उपेक्षा की जा रही है। उनको लगता है कि अन्‍य पदों की संख्‍या अधिक है सरकार के लिए इनका चयन कर रोजगार में अपनी उपलब्धि दिखाना आसान है। हालांकि उनके पदों की संख्‍या कम है पर वे उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

अपना विरोध दर्ज कराने के लिए लगभग 500 आवेदकों ने संविधान दिवस से अपना विरोध शुरु किया था। हालांकि बाद में उनकी संख्‍या धीरे-धीरे घटती गई क्‍योंकि उनकी अपनी समस्‍याएं थीं। विरोध प्रदर्शकों के नेता मयूर वर्मा के अनुसार नवंबर से अब तक लगभग 30 आवेदक लगातार धरना स्‍थल पर उपस्थित रहे।

गौरतलब है कि जूनियर इंजीनियर(जेई) के पद उनके लिए सृजित थे जिन्‍होंने तकनीकी क्षेत्रों जैसे कृषि या सिविल में विशेष डिप्‍लोमा किया हो। पात्रता के मानदंड रखे गये थे कि आवेदक ने हाई स्‍कूल पास किया हो और तीन साल का डिप्‍लोमा कोर्स किया हो। स्‍नातक की डिग्री या बी.टेक की डिग्री की तुलना में इस डिप्‍लोमा की फीस काफी कम थी, इसलिए आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के छात्रों ने भी यह कोर्स किया और अब खुद को इंजीनियर के रूप में देखना चाहते हैं।

इस वैकेंसी के इतिहास की कहानी कुछ अलग ही है। पहली वैकेंसी फरवरी 2016 में जारी की गई थी जिसे 2017 में पूरा किया गया। उसी साल 385 वैकेंसी फिर जारी की गईं और भर्ती प्रक्रिया शुरु की गई। हालांकि इस बार और भी विलंब हुआ फरवरी और अप्रैल 2022 के बीच अंतिम दस्‍तावेजों का सत्‍यापन हुआ। तब से, 2016 की रिक्ति के लिए आवेदक दस्तावेज़ सत्यापन के बाद ज्वाइनिंग तिथि और अंतिम योग्यता सूची की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

जब 2016 की भर्ती प्रक्रिया चल रही थी तभी सरकार ने उन्‍हें जेई पदों की 2018 में 1,477 वैकेंसी बढ़ाकर जारी कर दी। आवेदकों ने इसे अपनी स्थिति को सुधारने के लिए एक अच्‍छे अवसर के रूप में देखा। खासकर उन आवेदकों ने 2016 की वैकेंसी के अनुसार खुद को पात्र नहीं मान रहे थे या उसी साल जारी हुई वैकेंसी के लिए खुद को योग्‍य नहीं मान रहे थे। उन्हें क्या पता था कि इस रिक्ति का भाग्य भी उतना ही धुंधला होगा जितना किसी निकट दृष्टि दोष वाले व्‍यक्ति की दृष्टि का। चार साल के लंबे इंतजार के बाद अप्रैल 2022 में भर्ती परीक्षा हुईं। हालांकि तब से अब तक छात्र अपने परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं बहुतों के लिए तो यह आखिरी अवसर है।

जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि ये छात्र बहुत समृद्ध परिवारों से नहीं थे और परीक्षा की तैयारी के समय या अपने रिजल्‍ट का इंतजार करते समय वे अन्‍य नौकरी करने को विवश थे। ऐसे ही एक छात्र हैं अंकित जो ईको पार्क में लगातार विरोध में आते हैं।

अंकित के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्‍छी नहीं थी इसलिए उनका परिवार उन्‍हें लखनऊ छोड़कर घर आने को कह रहा था ताकि वह उसकी शादी कर सकें। पर अंकित धरना स्‍थल पर इस उम्‍मीद से आते रहे कि उसे नौकरी मिल जाएगी। अंकित का कहना है,”अब तक छह महीने हो चुके हैं और स्थिति बद से बदतर हुई है।’’

अन्‍यों का मामला भी अंकित की तरह ही है। विरोध प्रदर्शन का नेतृत्‍व करने वाले मयूर वर्मा न्‍यूजक्लिक से बात करते हुए कहते हैं उन्‍होंने अनुभव किया है कि, ” अब तक किसी भी प्राधिकरण ने सही से जवाब नहीं दिया हे और न हमारे मामले में कोई संज्ञान लिया है। हमने जब भी शिकायत दर्ज कराई है हमें वही घिसापिटा जवाब मिला है कि हमारा मामला विचाराधीन है और वे इस पर गौर करेंगे। लेकिन मामला कभी आगे नहीं बढ़ता। हम फिर पत्र लिखते हैं और फिर हमें वही जवाब मिलता है।’’

वर्मा प्रयागराज से 2013 से खुद को तैयार कर रहे हैं। वर्ष 2016 की वैकेंसी के इन्‍टरव्‍यू में उसे अयोग्‍य ठहरा दिया गया था और वर्ष 2018 उसे अपने सपनों को पूरा करने का आखिरी अवसर था। जब उससे पूछा गया कि आपकी प्राथमिकता में सरकारी नौकरी ही क्‍यों है तो उसने कहा कि इज्‍जत, सरकारी नौकरी करने वाले की समाज में इज्‍ज्‍त होती है जो कि प्राईवेट जॉब करने वालों की नहीं होती। वर्मा कहते हैं, ” ऐसा नहीं है कि मैंने कहीं काम नहीं किया है। मैंने साईट इंजीनियर के रूप में पूरे उत्‍तर प्रदेश में कई निजी कंपनियों के साथ काम किया है और कई पॉवर हाउस बनाए हैं।”

उसने कहा, ”हम बहुत की रूढि़वादी परिवार से आते हैं। हमारे परिवार में और हमारे सामाजिक दायरे में निजी क्षेत्र में नौकरी करने वाले को कोई महत्‍व नहीं दिया जाता। मैं निजी नौकरी में ठीकठाक कमा रहा था मेरा वेतन 35,000 रुपये प्रतिमाह था। पर फिर भी इस से कम वेतन में भी मैं सरकारी नौकरी करना चाहूंगा। सरकारी नौकरी के महत्‍व को देखते हुए मुझे अधिक संतुष्टि होगी।”

आवेदकों ने कहा कि इस तरह की वर्जना (टैबू) छोटे शहरों में मौजूद है, जो आवेदकों को केवल सरकारी नौकरी करने के लिए मजबूर करती है और हम सालों तक सरकारी नौकरी का इंतजार करते हैं, भले ही बेरोजगार रहें।

उससे यह पूछने पर कि क्‍या पिछले कुछ महीनों से आपके विरोध प्रदर्शन को कोई समर्थन मिला है? वर्मा का कहना है, ”इस मुश्किल समय में हमें बहुतों ने समर्थन दिया है। स्‍वतंत्र संगठनों, युवा आंदोलनों और विपक्षी दलों जैसे अखिलेश यादव हमारे साथ हैं। पर हम हमेशा केन्‍द्र सरकार और राज्‍य सरकार से उम्‍मीद करते हैं कि वे समाधान निकालें जिसमें वे असफल हो चुकी हैं।”

इन छात्रों के साथ युवा हल्‍ला बोल के कार्यकारी अध्‍यक्ष गोविंद मिश्र ने मुलाकात की। न्‍यूजक्लिक से बातचीत करते हुए उन्‍होंने कहा, ”मेरा मानना है कि यह सिर्फ इन छात्रों का ही मसला नहीं है बल्कि यह हर व्‍यक्ति की कहानी है। कुछ छात्र हर हफ्ते 100 किमी दूर से आकर विरोध प्रदर्शन में शामिल होते हैं, बहुतों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है, और दूसरों की अन्‍य समस्‍याएं भी है।” गोविंद मांग करते हैं कि सरकार मॉडल इक्‍जाम कोड के तहत परीक्षाएं ले और नौ महीनों के अंदर रिक्तियां भरे ताकि छात्र बिना वजह इन समस्‍याओं का सामना न करें।’’

महिला आवेदक जो रिजल्‍ट का इंतजार कर रही हैं उन्‍होंने जो अपनी बातें बताईं वे भी सामाजिक दबाब और लिंग के कारण उनकी स्थिति खराब होना दर्शाती हैं। रिंकू श्रीवास्‍तव जिसने 2018 में परीक्षा के लिए आवेदन किया था वह परिवार का दबाब बर्दाश्‍त न कर सकी और आखिरकार उसे शादी करनी पड़ी। अभी भी उसे रिजल्‍ट का इंतजार है। वह अभी भी शायद ही नौकरी न कर पाए। अभी हाल ही में उसका दूसरा बच्‍चा हुआ है। उसे परिवार की देखभाल को प्राथमिकता देनी होगी। ऐसे ही दूसरे मामलों में महिलाओं को वापस घर ही संभालना होगा।

हालांकि इस संदर्भ में निधि सिंह का मामला उल्‍लेखनीय है। वह एक सीमित भूमि वाले किसान परिवार से हैं। आर्थिक बाधाओं को दूर करने के लिए उसे डिप्‍लोमा करने का निश्‍चय किया, उसकी आकांक्षा है कि वह स्‍नातक डिग्री जैसे बी.टेक करे। निधि का सफर चुनौतीपूर्ण है, जब वह नौकरी की तलाश कर रही थी तब उसे लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। रिशेपनिस्‍ट का जॉब करते हुए उसे सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। अपने दृढ़ संकल्प के बावजूद, निधि को शादी करने के लिए अपने परिवार के दबाव का सामना करना पड़ा और आखिरकार, उनके छोटे भाई की शादी कर दी गई।

निधि ने कहा कि उसके परिवार वालों की बात न मानने के कारण उसकी परिवार वालों के साथ बोलचाल नहीं है। निधि कहती हैं, ”मेरे पिता मेरी उम्‍मीद थे उन्‍हें मेरे जॉब और मुझ पर गर्व था पर आखिर में वह भी समाज के दबाब में आ गए।” 32 वर्ष की उम्र में वह अभी अपने आवेदन के रिजल्‍ट का इंतजार कर रही है। अब उसके लिए अगली वैकेंसी के लिए आवेदन करने का अवसर नहीं है।

आवेदकों के अनुसार अभी वे अपने विरोध प्रदर्शन के अंतिम चरण में हैं। वे सभी संबंधित सरकारी विभागों/प्रधिकरणों को पत्र भेज रहे हैं यह कहते हुए कि यह उनका आखिरी पत्र है। आवेदको की योजना 6 जून को विभिन्‍न जिलों में सरकारी अधिकारियों से मिलकर उन्‍हें पत्र सौंपने हैं। 13 जून को उनकी लखनऊ के ईको पार्क में बड़े स्‍तर पर विरोध प्रदर्शन करने की योजना है।

न्यूजक्लिक से साभार

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