टिस: सुप्रीम कोर्ट ने ‘देश-विरोधी’ गतिविधियों को लेकर बर्ख़ास्त दलित छात्र को बहाल करने को कहा

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अप्रैल, 2024 को टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने दलित पीएचडी स्कॉलर और वाम छात्र नेता रामदास प्रिनी शिवानंदन को को ‘देश-विरोधी गतिविधियों’ के आरोप में संस्थान से दो साल के लिए निलंबित कर दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बहाल करने का निर्देश दिया है.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (2 मई) को दलित पीएचडी स्कॉलर और वामपंथी छात्र नेता रामदास प्रिनी शिवानंदन को टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) में बहाल करने की अनुमति दे दी, साथ ही कथित कदाचार के लिए उनके दो साल के निलंबन को घटाकर अब तक भुगती गई अवधि तक सीमित कर दिया है.

जस्टिस दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने रामदास को राहत दी, जिन्होंने अपने निलंबन और टिस परिसर में प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती दी थी. ज्ञात हो कि 17 अप्रैल, 2024 को टिस की एक अधिकार प्राप्त समिति ने रामदास को ‘देश-विरोधी गतिविधियों’ के आरोप में संस्थान से दो साल के लिए निलंबित कर दिया तथा सभी परिसरों में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था. संस्थान ने उन पर 28 जनवरी 2023 को भारत में प्रतिबंधित बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग, भगत सिंह मेमोरियल लेक्चर में ‘विवादास्पद’ वक्ताओं को बुलाने और देर रात में निदेशक के बंगले के बाहर नारेबाज़ी और धरना प्रदर्शन करने का आरोप लगाया था.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ ने टिस की ओर से पेश हुए अधिवक्ता राजीव कुमार पांडे की दलीलों पर गौर किया और उन दस्तावेजों का अवलोकन किया, जिनके आधार पर समिति ने स्कॉलर को दो साल के लिए निलंबित कर दिया. पांडे ने तर्क दिया कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने निलंबन में हस्तक्षेप न करके सही किया. हालांकि, अदालत ने इस तथ्य पर गौर किया कि रामदास इस संस्थान से अपनी पीएचडी कर रहे थे और उन्हें इसे पूरा करने की अनुमति दी जानी चाहिए.

‘मैं खुश हूं, यह मेरे लिए राहत की बात है’

रामदास ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, ‘आज, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दो साल के निलंबन और तीन अलग-अलग राज्यों में किसी भी टिस परिसर में प्रवेश पर रोक लगाने के खिलाफ मेरी याचिका पर सुनवाई करते हुए टिस को तत्काल प्रभाव से मुझे एक छात्र के रूप में बहाल करने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद से कानूनी कार्यवाही के 366वें दिन, मैं आधिकारिक तौर पर फिर से एक छात्र हूं – आज से – उसी संस्थान में जिसने 380 दिन पहले मुझे शिक्षा देने से इनकार कर दिया था.’

उन्होंने आगे लिखा, ‘जैसा कि हम जनांदोलनों से सीखते हैं, किसी भी छात्र को शिक्षा से वंचित करना कभी भी सिर्फ़ एक व्यक्ति को प्रभावित करने के बारे में नहीं था- यह अनगिनत छात्रों के मौलिक अधिकारों और हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली में कैंपस लोकतंत्र के सवाल के बारे में था. हालांकि यह अवधि एक कठिन लड़ाई रही है, जिसने मेरी शिक्षा और दैनिक जीवन से काफी समय छीन लिया, मुझे खुशी है कि मैं भी प्रतिरोध का एक छोटा सा हिस्सा बन सका.’

रामदास ने कहा, ‘मैं खुश हूं. यह मेरे लिए राहत की बात है. मेरी पहली प्रार्थना थी कि मैं टिस में वापस जाऊं और पढ़ाई करूं. वह मंजूर हो गई है. मैंने अभी तक तय नहीं किया है कि मैं कब वापस जाऊंगा. फैसला आने के बाद मैं इसका अध्ययन करूंगा और उसके बाद वापस जाऊंगा. कोर्ट ने कहा, ‘उन्हें पढ़ाई करने दो.’ मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हूं.’