ना तो जीवितों के लिए संसाधन व जगह है ना ही मरने के बाद

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राम राज्य की व्यथा ज़िंदा सवालों के साथ खड़ी है!

चारों तरफ एक भयावह मंज़र है। यह ऐसा दौर है जब जीते जी तनाव और मरने के बाद दुर्दशा बन गई है। कोरोना महामारी की दहशत से ज्यादा अस्पतालों व इलाज की दुर्व्यवस्था, ऑक्सीजन, बेड, वेंटिलेटर की कमी से खौफ का जबरदस्त माहौल कायम है। लोग मर रहे हैं और गंगा के तट पर लाशें बिखरी पड़ी हैं। लगातार आती ख़बरें ज़िंदा समाज के मुहँ पर तमाचा है।

मजबूरी में लोग सारी परंपराएं तोड़ने को विवश हैं। श्मशान घाटों पर अंतिम संस्कार के लिए जगह व लकड़ियों के अभाव व आर्थिक तंगी में लोग अपनी परंपरा को बदल कर शवों को दफना रहे हैं। वहीं एएमयू में पुरानी कब्र को खोदकर शव को दफनाया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में पिछले 20-22 दिनों में 40 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। वहाँ कब्रिस्तान में शव दफनाने के लिए जगह नहीं मिल रही है।

https://mehnatkash.in/2021/05/14/horrific-no-place-in-the-crematorium-crematoriums-along-the-ganges-bodies-buried-by-digging-old-graves/

गंगा : नदी से लेकर तटों तक लाशें ही लाशें

उत्तर प्रदेश में गंगा नदी में बड़ी संख्या में शवों के उतराने की खबरें हालात की भयावह तस्वीर पेश कर रही हैं। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के वाराणसी व गाजीपुर से बिहार के बक्सर तक गंगा में उतराते हुए और तट पर शव बिखरे हुए मिले थे। उसके बाद से हजारों लाशें गंगा तटों पर मिलने की खबरें सामने आईं हैं।

बुधवार को उन्नाव में गंगा नदी के किनारे कुछ घाटों पर जब बडी संख्या में कौवे और चील मँड़राते दिखे तब भयानक तस्वीर दिखी। गंगा नदी के किनारे कई शव रेत में ही दफ़न कर दिये गए थे। कुछ शव रेत से बाहर निकल आए थे जिन्हें कुत्ते नोंचकर खा रहे थे। कुछ शव बेहद क्षत-विक्षत अवस्था में मिले।

उन्नाव, कन्नौज, कानपुर, रायबरेली, फतेहपुर, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद से लेकर गाजीपुर, बलिया, वाराणसी, इलाहाबाद तक लाशें उतरा रही हैं। दैनिक भास्कर ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में बताया है कि यूपी के 27 जिलों1140 किलोमीटर की दूरी में दो हजार से ज्यादा शव पानी पर उतरा रहे हैं।

https://mehnatkash.in/2021/05/16/the-hallmark-of-horrors-now-the-dead-body-at-the-ganges-ghat-in-sangam-city-allahabad/

रिपोर्ट के मुताबिक कानपुर, कन्नौज, उन्नाव, गाजीपुर और बलिया में हालात बेहद खराब पाए गए। कन्नौज में गंगा किनारे 350 से ज्यादा शव दफन हैं। वहीं कानपुर में गंगा किनारे और पानी में लाशें ही लाशें नजर आईं। कुछ जगहों पर लाशों को कुत्ते और चील-कौए नोच रहे थे।

उसके बाद से लगातार और आती खबरें एक ज़िंदा समाज के के लिए बड़ा प्रश्नचिन्ह हैं। इनसे निपटने की जगह योगी महाराज ने दुर्व्यवस्था को उजागर करने वालों को ही दंडित करने का फरमान जारी कर दिया।

बढ़ती मौतें, संसाधनों की कमी बनी मजबूरी

शहरों से लेकर गाँवों तक कोरोना और इलाज की दुर्दशा की वजह से लोगों की मौत हो रही है। लकड़ियों की कमी या अन्य कमियों की वजह से लोग शव को गंगा में प्रवाहित करने या गंगा किनारे रेत में भी दफ्न करने को मजबूर हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि प्रशासन उन लाशों पर मिट्टी डालने का काम कर रहा है।

स्थानीय लोगों के मुताबिक़, श्मशान घाटों की भीड़ और महँगे अंतिम संस्कार की वजह से लोग शवों को रेत में गाड़कर चले जा रहे हैं। ग़रीबी के कारण मृतकों के परिजनों के पास जलाने के लिए लकड़ी और कफ़न ख़रीदने के पैसे नहीं है।

https://mehnatkash.in/2021/05/12/dishonesty-the-war-between-up-and-bihar-between-the-bodies-descending-in-the-ganges/

योगी सरकार लीपापोती में व्यस्त

घटनाओं के खुलासे के बाद पहले यूपी व बिहार की सरकारें लाशें मेरी नहीं की तर्ज पर कुत्ताघसीटी करती रहीं। इन निरलज्जों के लिए लाशें इंसानों की नहीं सरहदों की हो गईं हैं।

मामले और सामने आये तो अपने कुकर्मों को ढंकने के लिए योगी सरकार लीपापोती में लग गई। जब मीडिया में दफनाने की खबरें आईं तो प्रशासन इसे कुछ जातियों की परंपरा बताकर मामले को दबाने की कोशिश करने लगा।

जब पानी सिर से ऊपर निकालने लगा और सच्चाई लाख दबाने के बावजूद मुह बाए खड़ी रही तब भी योगी सरकार कोई व्यवस्था करने की कोशिश में नहीं दिखती। उलटे अब गंगा किनारे शव दफनाने वालों पर शिकंजा कसने की तैयारी है। योगी का प्रशासन दाह संस्कार के लिए जनता में दहशत पैदा कर रहा है।

सवाल ज़िंदा हैं

कोरोना का दहशत है, लॉकडाउन का खौफ है, पंचायत चुनावों की बगैर सुरक्षा ड्यूटी के दौरान मरे हजारों शिक्षक-कर्मचारी हैं… आखिर किस (कु)नीति की देन हैं? अस्पतालों में दवा-ऑक्सीजन तक नहीं, तो शमशान घाट पर लकड़ियाँ तक नहीं हैं। ना तो जीवितों के लिए संसाधन व जगह हैं ना ही मरने के बाद व्यवस्था। कौन है जिम्मेदार?

राम राज्य की व्यथा ज़िंदा सवालों के साथ खड़ी है!

https://mehnatkash.in/2021/04/30/people-dying-due-to-lack-of-treatment-who-is-responsible-for-this/