दमन के बीच संघर्षों के साथ बीता साल 2024; नए साल में चुनौतियों के बीच नई उम्मीदें

वर्ष 2024 की शुरुआत ड्राइवर साथियों की देशव्यापी हड़ताल से हुई, तो अंत बर्खास्त मारुति मज़दूरों सहित हक़ के लिए जारी मज़दूर संघर्षों के साथ हुई। …और क्या हुआ बीते साल में?
वर्ष 2024 दमन के बीच मज़दूरों-कर्मचारियों के जारी संघर्षों, मोदी सरकार के मज़दूर विरोधी बेलगाम क़दम, भाजपा-आरएसएस की नफ़रती हिंसा, जलते मणिपुर, फैक्ट्रियों से लेकर रेल हादसों में मरते लोग, भयावह बेरोजगारी व महँगाई और दुनिया को युद्धों व नरसंहारों समेत कई ऐसी त्रासदियों के हवाले करके विदा हो गया।
वर्ष 2024 की शुरुआत मोदी सरकार द्वारा थोपे गए तीन आपराधिक क़ानूनों के खिलाफ ड्राइवर साथियों के देशव्यापी हड़ताल से हुई थी। नववर्ष के पहले दिन ही रोडवेज और ट्रक चालकों ने पूरे देश में चक्का जाम कर दिया। साल के अंत में गुड़गांव-मानेसर में 2012 से बर्खास्त मारुति मज़दूरों का कार्यबहाली और ठेका-अस्थाई श्रमिकों के हक़ के लिए संघर्ष नए रूप में जारी है। वहीं निजीकरण के खिलाफ आन्दोलनाओं और पुरानी पेंशन बहाली का आंदोलन भी चलता रहा।
दमन के बीच मज़दूर आंदोलनों का सिलसिला
पूरा साल देश भर में जारी विभिन्न मज़दूर आंदोलन का गवाह रहा है। इस दौरान पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग हिल्स में चाय बागान मज़दूरों का संग्रामी संघर्ष सामने आया। वहीं उत्तराखंड में डॉल्फिन, हरियाणा में मारुति, बेलसोनिका से लेकर तमिलनाडु में सैमसंग के मज़दूरों के संग्रामी संघर्षों का सिलसिला जारी रहा। उत्तराखंड के रुद्रपुर में लुकास टीवीएस मज़दूरों का संघर्ष 2024 में पूरे साल चलता रहा और नव वर्ष में भी मज़दूर संघर्षरत हैं।
वहीं मज़दूर आंदोलन के दमन में केंद्र व राज्य सरकारें और उनकी पुलिस व प्रशासन इस साल भी और मुस्तादी से हमलावर रहीं, फिर भी मज़दूरों, छात्र-नौजवान, महिलाओं, गरीब-गुरबा और शोषित-उत्पीड़ित जनता का संघर्ष आगे बढ़ता रहा।
उत्तराखंड में मज़दूर नेताओं पर गुंडा एक्ट थोपने; बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) पेपर लीक, फिर से परीक्षा कराने और अभ्यर्थियों पर हुए बर्बर पुलिस दमन; मनुस्मृति दहन दिवस कार्यक्रम में बीएचयू में 3 छात्राओं सहित 13 छात्रों की गिरफ़्तारी महज दमन की मिसाल हैं। गैरक़ानूनी बुलडोजर चलाने में मोदी से योगी तक सक्रिय रहे और समुदाय विशेष व गरीबों पर कहर बरपा होता रहा।
संघर्षरत किसान
हरियाणा-पंजाब के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में 30 दिसंबर को 9 घंटे तक पंजाब बंद रहा। किसान 140 जगहों पर हाईवे और रेलवे ट्रैक पर बैठे। उधर रिटायर्ड जज नवाब सिंह की अध्यक्षता में गठित सुप्रीम कोर्ट की समिति के बुलावे पर संयुक्त किसान मोर्चा से 3 जनवरी को बातचीत होगी। 4 जनवरी को खन्नौरी में “किसान महापंचायत” होगी। किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल 37 दिनों से आमरण अनशन पर हैं और उनकी हालात काफी खराब है।
हिंसा की आग में मणिपुर
मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच 2023 से शुरू हुई हिंसा इस साल भी मणिपुरी लोगों के लिए दुःख का पहाड़ बनी रही। मणिपुर में अब तक लगभग ढाई सौ लोगों की हिंसा में मौत हो चुकी है और लगभग पचास हजार लोग विस्थापित हुए हैं। मणिपुर हिंसा के दौरान झकझोरने वाली घटना थी कुछ महिलाओं के साथ गैंगरेप और उनकी नग्न परेड। लेकिन केंद्र सरकार आँख-कान बंद करके बैठी है। चुनाव होते रहे और चुनावों से दूर मणिपुर सुलगता रहा, मगर चुनावी मुद्दा भी नहीं बना।
असल में यह हिंसा धर्म आधारित बहुलतावादी राजनीति की जिंदा मिसाल है। भाजपा-संघ का यही मुख्य एजेंडा है और उन्हें कोई भी नहीं है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के खिलाफ स्पीकर-मंत्रियों सहित 19 भाजपा विधायकों ने विद्रोह करके पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को पत्र लिखा। लेकिन बीजेपी आलाकमान ने इसकी परवाह नहीं की। 17 नवंबर को संगमा की पार्टी एनपीपी ने मणिपुर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। फिर भी खुला खेल जारी है।
कोलकाता आरजी कर घटना और व्यापक आंदोलन
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या ने देश को स्तब्ध कर दिया। इस घटना के बाद जहाँ जूनियर डाक्टरों का लगातार लंबा आंदोलन चलता रहा। वहीं पश्चिम बंगाल में हजारों की संख्या में महिलाओं का सड़क पर उतरना, दशकों के बड़े विरोध प्रदर्शनों में एक है। यह ‘रात्रि दखल’ आंदोलन महीनों तक रात में जारी रहा। कोलकाता की घटना इकलौती नहीं है, इससे मिलती-जुलती घटनाएं देश के हर कोने में हो रही हैं। और कई सवाल अनुत्तरित हैं।
दलित विरोधी – मुस्लिम विरोधी आक्रामकता
पिछले वर्षों की तरह इस साल भी दलित उत्पीड़न की घटनाएं देश के हर हिस्से में देखी गईं। जबकि कई राज्यों में विशेष रूप से भाजपा शासित राज्यों में मुस्लिम अल्प संख्यक समुदाय के प्रति हिंसक कार्यवाहियाँ और बेलगाम होती गईं।
22 जनवरी को डंके की चोट पर अनेक स्वनामधन्य ‘महापुरुषों’ व ‘महाप्रभुओं’ की ‘उपस्थिति’ में अधूरे मंदिर निर्माण के बीच मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता था। लेकिन चुनाव परिणामों में ऐसा नहीं हुआ। यद्यपि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में ही एनडीए की सरकार बनी लेकिन भाजपा अयोध्या की ही सीट जीतने में असफल रही।
इसके साथ स्वयंभू हिंदुत्ववादी धर्माधीशों द्वारा अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा से बजबजाते ‘आह्वानों’ की झड़ी लगी। एक के बाद एक मस्जिदों के भीतर मंदिर या मूर्तियाँ मिलने लगीं। हद यह कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव ने न्यायालय परिसर में ही संघ संचालित कार्यक्रम में भागीदारी की और ऐलान किया कि देश बहुसंख्यकों की मर्जी से चलेगा।
अभी संसद के शीतकालीन सत्र में गृहमंत्री अमित शाह ने दलित विरोधी भाजपा-आरएसएस की सोच उजागर करते हुए कह ही दिया कि ‘अब ये एक फ़ैशन हो गया है- आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर… इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता!’
दमन की ताजा बानगी
25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के मौके पर भगत सिंह स्टूडेंट्स मोर्चा की ओर से बीएचयू के आर्ट्स फैकल्टी में आयोजित एक चर्चा में भाग लेने वाले 13 छात्रों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, जिनमें तीन छात्राएं भी हैं।
बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) पेपर लीक और फिर से परीक्षा कराने के लिए संघर्षरत अभ्यर्थियों पर दिसंबर महीने में तीन बार लाठीचार्ज हो चुका है। दरअसल, बीते 18 दिसंबर से सभी 912 केंद्रों की दोबारा प्रारंभिक परीक्षा की मांग को लेकर बीपीएससी परीक्षार्थी पटना के गर्दनीबाग धरना स्थल पर आंदोलन कर रहे हैं।
हादसे/मौत का जारी सिलसिला
साल 2024 में वैसे तो सैकड़ों रेल दुर्घनाएं सामने आईं है। प्रमुख घटनाओं में 28 फरवरी को झारखंड के जामताड़ा-विद्यासागर स्टेशन के बीच 12 लोग रेल की चपेट में आए, 2 की मौत हो गई। 17 जून को पश्चिम बंगाल के रंगपानी-छतरहाट स्टेशनों के बीच मालगाड़ी व कंचनजंगा एक्सप्रेस की भिड़ंत में लोको पायलट और ट्रेन मैनेजर समेत 10 लोगों की मौत हुई, 50 से ज्यादा घायल हुए।
18 जुलाई को उत्तर प्रदेश के मोतीगंज-झुलाही स्टेशनों के बीच चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के कई डिब्बे पटरी से उतरे, 4 लोगों की मौत हुई, 30 से ज्यादा घायल हुए। जमशेदपुर से 80 किमी दूर बड़ाबांबू के पास मुंबई-हावड़ा मेल के 18 डिब्बे पटरी से उतरे, 2 यात्रियों की मौत हुई, 20 घायल हुए।
वहीं, गुजरात के राजकोट में गेमिंग जोन में 25 मई को आग लगने से 12 बच्चों सहित 35 लोगों की मौत हो गई। उत्तर प्रदेश के हाथरस में 2 जुलाई को नारायण साकार हरि के सत्संग में भगदड़ में 121 लोगों की जान चली गई। केरल के वायनाड में 29 जुलाई की रात भारी बारिश के बाद कई जगहों पर हुए भूस्खलन में 400 से भी अधिक लोग मारे गए। उत्तर प्रदेश के झांसी में 15 नवंबर को मेडिकल कॉलेज के शिशु वार्ड में भीषण आग लगने से 10 नवजात शिशुओं को मौत हो गई, 16 से अधिक लोग घायल हो गए। 20 दिसंबर को राजस्थान की राजधानी जयपुर में एलपीजी से भरे एक टैंकर में एक्सीडेंट के बाद आग लग गई। इसमें 19 लोगों की मौत हो गई, कई लोग घायल हुए।
दुनिया में युद्धोन्माद; मौत व तबाही का तांडव जारी
बीता साल मंदी और उससे पैदा बेरोजगारी-भुखमरी के बीच युद्ध के दलदल में फंसा रहा। अमेरिकी चौधरहट में युद्धोन्माद का मुख्य केन्द्र मध्य पूर्व है। हजारों लोगों की मौतें, संसाधनों की तबाही जारी है और हथियारों के वैश्विक सौदागरों के मुनाफे तेजी से बढ़ रहे हैं।
हमास से बदला लेने के बहाने इस्रायल का फिलिस्तीन पर ताबड़तोड़ हवाई व जमीनी हमले जारी हैं। इस्रायल ने सभी मानवीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों का खुलकर उल्लंघन करते हुए फिलिस्तीन पर हर तरह से हमला किया है। उसने स्कूलों और अस्पतालों में रॉकेट से हमले किये, फिलिस्तिनियों को हर मानवीय राहतों से वंचित किया, युद्ध पीड़ितों को खाना देने वाले संस्थाओं तक पर हमला किया। गाजा में लगभग 45 हजार फिलिस्तीनी मारे गये, जिनमें लगभग 16 हजार फिलिस्तीनी बच्चे और लगभग 10 हजार महिलायें शामिल हैं।
रूस–यूक्रेन युद्ध के लगभग दो साल होने वाले हैं। यह तमाम त्रासदियों के साथ जारी है। दिसम्बर में सीरिया में विद्रोहियों ने असद का तख्तापलट कर दिया। सीरिया के गृहयुद्ध में पिछले एक दशक में लगभग तीन लाख लोग मारे जा चुके हैं।
अंत में…
ये साल भी यारो बीत गया
कुछ खून बहा कुछ घर उजड़े
कुछ कटरे जल कर खाक हुए
एक मस्जिद की ईंटों के तले
हर मसला दब कर दफ्न हुआ!
-गौहर रज़ा
बीते साल का यह सिलसिला जारी है। भाजपा-आरएसएस द्वारा इंसान को इंसान के दुश्मन के रूप में खड़ा करने का भयावह धार्मिक उन्माद के बीच भयावह बेरोजगारी, महँगाई, निजीकरण, छँटनी-बंदी का कहर बरपा हो रहा है। अड़ानियों-अंबनियों के मुनाफे छलाँगे लगा रहे हैं और भयावह गरीबी के बीच आम मेहनतकश जनता की कठिनाइयाँ तेजी से बढ़ रही हैं। संघर्षरत जन दमन झेल रहा है।
इन कठिन हालात में भी रोजगार व बुनियादी हक़ के लिए अलग-अलग संघर्षों का सिलसिला जारी है। यही उम्मीद की किरण है। जरूरत है, मेहनतकश जन की संग्रामी एकता को मजबूत करते हुए छोटे-छोटे आंदोलनों को एकजुट, निरंतर, जुझारू आंदोलन में बदलने की। इसे मजदूर-मेहनतकश जन के निर्णायक संघर्ष में बदलने की। सांप्रदायिक-फासीवादी हमलों और पूंजीवादी लूट का यही जवाब है।
साल 2025 इन चुनौतियों को समझने और आगे की राह निकालने का साल बनाना होगा!
ये वक़्त की आवाज़ है मिल के चलो, ये इम्तेहान सख्त है मिल के चलो!