साल 2020 : संघर्षों से शुरुआत, प्रतिरोध और संघर्षों के साथ अंत

Pratirodh

sall-2020

साल-2020 का सबक – दूसरी (अंतिम) क़िस्त…

बीता साल जहाँ विकट संकटों का गवाह रहा, वहीं दमन के बीच प्रतिरोध और शानदार आंदोलनों का भी साक्षी रहा। साल के शुरू में होंडा के ठेका मज़दूरों, माइक्रोमैक्स आदि तमाम मज़दूर आंदोलनों से लेकर शाहीनबाग़ आन्दोलन तक संघर्ष की मशालें जल रही थीं। तो बीतता साल बेमिसाल किसान आन्दोलन के साथ अँधेरे दौर में शानदार मशाल प्रज्वलित कर रहा है।

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वर्ष 2020 की शुरुआत संविधान विरोधी नागरिकता कानून सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ शानदार संघर्ष के उत्कर्ष के साथ हुआ, जब शाइनबाग एक प्रतीक के रूप में पूरे देश में जन आंदोलन के रूप में फैल चुका था। जबकि साल 2020 का अंत किसान विरोधी 3 काले कानूनों के खिलाफ किसानों के शानदार जनआंदोलन के आगोश में गुजरा।

इस पूरे दौर में जहाँ संघर्ष के बीच दमन का दौर चलता रहा वहीं दिल्ली का षड्यंत्रकारी दंगा भाजपा और संघ की फिरकापरस्त कारनामों का प्रतीक बन गया। यह साल देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय व जामिया मिलिया में षड्यंत्र व हमले, दंगा और फिर अल्पसंख्यक तबकों का तरह-तरह से दमन, लवजेहाद, मदरसों की बंदी के साथ दमन, फर्जी मुकदमों, गिरफ्तारियों और तमाम दमनकारी काले क़ानूनों को थोपने के रूप में तेजी से आगे बढ़ता रहा।

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प्रतिरोध के विविध स्वर भी हुए मुखर

ऐसे में जनता के गुस्से का विस्फोट और प्रतिरोध के स्वर भी लगातार मुखर होते रहे। कोरोना महामारी की आड़ में नागरिकता क़ानून विरोधी आंदोलन स्थगित हुआ, लेकिन संघर्षों का क्रम जारी रहा। कोरोना/लॉकडाउन के बहाने जब पूरा जनजीवन ठप हो गया और मोदी सरकार का सबको वेतन देने के एक और झूठे वायदे का खुलासा हुआ, तो लोगों गुस्सा भी उजागर हुआ।

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प्रवासी मज़दूरों का प्रतिरोध और ट्रेड यूनियन आन्दोलन

तमाम धोखेबाजियों के बीच देश के विभिन्न हिस्सों से प्रवासी मज़दूरों ने सारे कथित कानूनों को ठोकर मारकर लंबी यात्राओं पर आगे बढ़ते हुए अपने प्रतिरोध को दिखलाया। जगह जगह उन्होंने पुलिस और मिलिट्री से मुठभेड़ भी की लेकिन अपने जज्बे के साथ आगे बढ़ते रहे। यह विभाजन के बाद आवाम के पलायन की सबसे बड़ी त्रासदपूर्ण स्थिति थी।

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इसी वर्ष में ट्रेड यूनियनों द्वारा मज़दूर अधिकारों पर डकैती के खिलाफ छिटपुट प्रतिरोधों से राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध तक के कार्यक्रम आयोजित हुए जो 26 नवंबर को अखिल भारतीय हड़ताल के रूप में भी सामने आया। हालांकि यह निरंतरता में आगे नहीं बढ़ने के कारण नाकाफी रहे। साथ ही जगह-जगह निजीकरण के खिलाफ हड़तालों का दौर भी चलता रहा जो अभी भी जारी है।

इस दौरान मोदी सरकार द्वारा जनपक्षधर व सीएए विरोधी आन्दोलनकारी बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दमन और गिरफ्तारियों के ख़िलाफ़ मुखर प्रतिरोध भी जारी रहा।

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आंदोलनों-हड़तालों का सिलसिला भी रहा जारी

साल की शुरुआत में होंडा स्कूटर मानेसर के ठेका मज़दूरों का शानदार आन्दोलन चल रहा था। दूसरी ओर उत्तराखंड में भगवती-माइक्रोमैक्स, गुजरात अम्बुजा, वोल्टास, एलजीबी, बजाज मोटर्स आदि कम्पनियों में जुझारू आन्दोलन जारी थे, जो पूरे कोरोना/लॉकडाउन के दौर से साल अंत तक भी जारी हैं।

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इसी दौर में आशा, आंगनबाड़ी, भोजनामाता आदि स्कीम वर्कर्स, एम्स नर्स स्टाफ की हड़तालों से लेकर इन्टरार्क, राकेट, निसिन ब्रेक, मिकुनी, सत्यम ऑटो आदि में मज़दूर संघर्षों, एप्पल मज़दूरों की बगावत और टोयटा में हड़ताल तक संघर्षों का सिलसिला जारी रहा।

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संघर्षों से जीत और बंदी का कहर

साल के शुरू में भगवती-माइक्रोमैक्स के मज़दूरों की छंटनी कोर्ट से गैरकानूनी घोषित हुई, प्रतिभा सिंटेक्स, शिवम ऑटोटेक, एवरेस्ट आदि में जीत मिली, वहीं एलजीबी, एचपी, होंडा स्कूटर, नेस्ले, नील मेटल-जेबीएम, बेलासोनिका आदि में संघर्षों के बाद वेतन समझौते भी हुए।

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बीता साल तमाम फैक्ट्रियों में हादसों का भी गवाह रहा, जिसमे एलजी पोलीमर्स का गैस लीक कांड प्रमुख है। इसी साल एटलस साईकिल, अमूल ऑटो से लेकर होंडा कार नोएडा प्लांट आदि की बंदी से मज़दूरों के पेट पर लात पड़ी।

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जुझारू किसान आंदोलन ने पैदा किया नया जज़्बा

इन सबके बीच सबसे बड़े आंदोलन का जज़्बा पंजाब के किसानों ने दिखाया, जो किसान क़ानूनों के खिलाफ पंजाब में आंदोलन को पहले मुखर और जुझारू रूप से संचालित किया। लेकिन बहरे कानों तक जब आवाज़ नहीं पहुंची तो 26 नवंबर की मज़दूरों के अखिल भारतीय हड़ताल के समकक्ष ही 26-27 नवंबर को दिल्ली कूच का आह्वान किया और उसे अमलीजामा पहनाया।

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तानाशाह मोदी सरकार भ्रम में इस आवाज को कुचलने के लिए व्याकुल रही, लेकिन किसानों के जज्बे के सामने उसकी एक न चली। अपने कथित करिश्माई विभ्रम की शिकार मोदी और उसकी जमात को लगता रहा कि वह इसे फ़िरकापरस्ती कारनामों और अपने भ्रमजाल में समेट लेगी और देश की जनता को मदारी बना कर जिस तरीके से पिछले सात-आठ सालों से नचा रही है वह नचा लेगी।

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इसको धता बताकर किसानों ने पूरे हौसले के साथ अपने आंदोलन को आगे बढ़ाया जो आजादी के बाद के इतिहास में संघर्षों का एक और मील का पत्थर बन गया। जब राजधानी दिल्ली की सरहदें हर तरफ से किसानों और उनके समर्थक आम मेहनतकश जमात के घेराबंदी के बीच एक नयी मशाल की रौशनी बिखेर रही है।

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यह संघर्ष नई उम्मीद जगाता है

पिछले दशकों में आम मेहनतकश जमात का शोषण दमन और गरीबी बदहाली की नीतियों के खिलाफ संघर्ष के जज्बे का यह बेमिसाल आंदोलन है। वर्ष 2021 का आगाज़ इसी अंदाज़ में हो रहा है। निश्चित ही संघर्षों का यह सिलसिला और आगे बढ़ेगा। यह मोदी सरकार के बदलाव की शुरुआत और भाजपा-संघ की सांप्रदायिक नीतियों पर तीखा प्रहार है।

यह आन्दोलन मेहनतकश जन कि निराशा के बीच उम्मीद की रौशनी है। साथ ही साथ यह सामाजिक परिवर्तन के निर्णायक जंग को आगे बढ़ाने के लिए बड़ा प्रेरक साबित होगा!

नए साल में संघर्ष के सिलसिले को निर्णायक संघर्ष में बदलें!

आइए, जारी संघर्ष के यज्ञ में आहुति दें तथा वर्ष 2021 को मुनाफे की अंधी लूट और मेहनतकश जन की असीम पीड़ा व कष्टकारी जीवन से मुक्ति के निर्णायक संघर्ष की दिशा में आगे बढ़ने का साल बनाएं!

(समाप्त)

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