महामारी, तबाही, दमन और संघर्ष के बीच गुजरा वर्ष 2020

Saal-2020

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साल-2020 का सबक – पहली क़िस्त…

गुजरा साल इस सदी का सबसे त्रासदपूर्ण, मेहनतकश वर्ग के विकट संकट व तबाही के बीच शानदार संघर्षों से परिवर्तन की उम्मीद जगाने के रूप में गुजर गया। बिता साल महामारी और उसके नाम पर आम जन के सामने कष्ट व संकटों का नया पहाड़ खड़ा किया तो मुनाफ़ाखोर जमात के लिए बेलगाम रास्ते पैदा किये। इसी के बीच ऐतिहासिक संघर्षों का भी गवाह बना।

महामारी : कूप्रबंधित लॉकडाउन कष्टकारी महासंकट का सबब

यह पूरा साल कोविड-19 महामारी के दौर में गुजरा, जो समाज के तमाम तबकों, विशेष रूप से आम मेहनतकश जनता के सामने कष्टकारी महासंकटों का सबब साबित हुआ। एक अजीबोगरीब स्थिति में, जब  बीमारी बेतहाशा फैल रही थी, केंद्र की मोदी सरकार ने बेवफुकाना और कुप्रबंधित लॉकडाउन लगा दिया।

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इसके चलते पहले से ही लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को लॉकडाउन ने बड़ा ही घातक झटका दिया, जिसने बेरोजगारी को अकल्पनीय दर यानि 24 प्रतिशत और जीडीपी अप्रैल-जून में 23 प्रतिशत नीचे आ गई। इस सब ने देश में भूख और दुख के वातावरण में चौंकाने वाली वृद्धि कर दी, दुख का एक ऐसा लम्हा जिसे लंबे समय तक याद किया जाएगा।

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महामारी की आड़ में जनवादी अधिकारों को पूरी तरीके से कुचलकर आम जनता को घरों में कैद कर दिया गया और संसद को पंगु बना दिया गया। इसी दौर में बंगाल में अम्फान तूफ़ान का कहर भी जनता ने झेला।

वहीं कोरोना/लॉकडाउन के बीच भारी मज़दूर मेहनतकश आबादी अपने बच्चों सामानों को लादे, दमन झेलती, भूखे-प्यासे, ट्रेनों-बसों से कटती पैदल अपने घरों की ओर पलायन और संघर्ष की त्रासदपूर्ण कहानी लिख गई।

मेहनतकश के लिए आपदा मुनाफाखोरों के लिए अवसर

केंद्र की मोदी सरकार ने इस आपदा को खुलेआम पूँजीपतियों के अवसर के रूप में बदल दिया। जहाँ भारी आबादी बेरोजगारी, महँगाई, कंगाली और चिकित्सा के अभाव में मरती-खपती रही, वहीं अडानियों और अंबानियों की पूँजी अरबों खरबों में छलाँगें लगती रहीं। साफ है कि महामारी को मुनाफे के अवसर के रूप में बदलना सत्ताधारी जमात की सुनियोजित नीति का हिस्सा है।

सरकार ने, महामारी और लॉकडाउन का इस्तेमाल कर देश की मेहनतकश आवाम और बड़े कॉरपोरेट घरानों, व्यापारियों, बड़े भू माफियाओं और वैश्विक पूँजी के मालिकों तथा सत्ताधारी अभिजात वर्ग के बीच विभाजक रेखा को और स्पष्ट रूप से उजागर कर दिया है। 

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मज़दूर-किसान विरोधी नीतियाँ, निजीकरण-छँटनी

इस पूरे साल में मोदी सरकार को मालिकों के हित में नीतियों को लागू करने की खुली छूट मिल गई। आपदा का डंडा उसे हर क्षेत्र में बेलगाम बना दिया। एक तानाशाह के लिए वाकई यह सुअवसर साबित हुआ। पूँजी के हित में धीमी गति से लागू हो रही मेहनतकश विरोधी नीतियों और साम्प्रदायिक नीतियों को सुपर फास्ट स्पीड मिल गई।

मोदी जमात ने मज़दूरों के खिलाफ 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मालिक पक्षीय 4 श्रम संहिताएँ थोप दीं। इसी क्रम में राज्य सरकारें भी हमलावर रहीं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र से लेकर उड़ीसा तक की राज्य सरकारें श्रम कानूनों को निलंबित करने व पंगु बनाने की दिशा में सक्रीय रहीं।

उसने किसानों के खिलाफ तीन कृषि क़ानून लाद दिए। विद्युत अमेंडमेंट बिल 2020 लाकर बिजली क्षेत्र को भी खुलेआम निजी हाथों में सौंपने की तैयारी की, नई शिक्षा नीति के बहाने शिक्षा का कॉरपोरेटीकरण व भगवाकरण कर दिया। खनिज कानून अधिनियम पारित करके उसने कोयला ब्लॉक को निजी कंपनियों के हवाले कर दिया और इन मुनाफाखोरों को बोली लगाने और उसके उपयोग के किसी भी पूर्व प्रतिबंध के बिना कोयला निकालने की खुली छूट दे दी है।

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जमीन के भीतर से लेकर आकाश तक बेचना बेलगाम

कुल मिलकर जमीन के भीतर कोल खदान हो, सड़क पर चलने वाले परिवहन हो या रेल सेवाएं, आकाश में उड़ने वाली हवाई सेवाएं हों या इनको दौड़ाने वाले डीजल-पेट्रोल-गैस हो – सत्ताधारियों ने ज़मीन के भीतर से लेकर आकाश तक – सबको निजी हाथों में सौंपने की रफ्तार तेज कर दी।

जनता के खून पसीने से खड़े सरकारी संपत्तियों को बेचने का काम तेज किया, मालिकों को खुलेआम मुनाफा पहुंचाने और मज़दूरों का और ज्यादा खून निचोड़ने की खुली छूट दी। सरकारी हो या निजी हर क्षेत्र में छँटनी-बंदी तेज हुई।

सीएमआई की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना/लॉकडाउन के दौरान तीन माह में 2.1 करोड़ वेतनभोगी नौकरियां ख़त्म हुई। ब्रुकिंग्स की रिपोर्ट बताती है कि 10 करोड़ से ज्यादा लोग अत्यंत ग़रीबी में पहुँच गए हैं।

https://mehnatkash.in/2020/04/29/why-is-the-anger-of-workers-erupting-again-and-again/

चालान बना सरकारी कमाई का बड़ा धंधा

इस पूरे साल में जनता के पॉकेट पर डकैती डालने की तरह-तरह की कवायद हुई और वह अभी भी जारी है। कोरोना के बहाने केंद्र व राज्य सरकारों ने जनता से तरह-तरह से वसूली के तमाम तरीके निकाल लिए। कई तरीके के टैक्स लादना, डीए फ्रिज करना, वेतन में कटौतियां आदि जारी रहीं। इसके आलावा मास्क ना पहनने, हेलमेट ना लगाने, सीटबेल्ट ना बांधने आदि के बहाने भारी वसूली का धंधा बना हुआ है।

https://mehnatkash.in/2020/06/05/unemployment-will-increase-further-many-companies-announced-layoffs/

इलाज से लेकर रेल तक जनता से दूर

महामारी के बहाने इस साल आम नागरिकों के इलाज कराने का अधिकार भी सीज कर दिया गया। स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली खुलकर सामने आ गई। जनता के आवागमन के सभी साधनों का अतिक्रमण कर दिया गया। बाद में कुछ स्पेशल ट्रेनों के नाम पर जो रेल गाड़ियां पटरी पर दौड़ीं उनके बहाने भारी किराया वसूलने का मनमानापन जारी है।

29 करोड़ बच्चों की शिक्षा प्रभावित

सबसे बड़ा प्रभाव बच्चों की शिक्षा पर पड़ा और छोटे बच्चो के स्कूल अभी भी नहीं खुले, बड़ों के खुले भी तो आधे-अधूरे। ऑनलाइन शिक्षा ग़रीब परिवार के बच्चो के लिए संकट का सबसे बड़ा सबब बन गया है। इसने स्कूल में जाकर पढ़ने की सामूहिकता का भी नाश किया है, जो बच्चों के चहुंमुखी विकास पर बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल देश में 29 करोड़ बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है।

https://mehnatkash.in/2020/12/01/corona-education-of-29-crore-children-affected-in-india/

न्यायपालिका-मीडिया की पक्षधरता उजागर

दूसरी तरफ देश की न्यायपालिका- विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय का न केवल आम जनविरोधी चरित्र ही, बल्कि खुलेआम मोदी नीत संघ-भाजपा के प्रति वफादारी भी खुलकर सामने आई। न्याय के प्रति जनता का भ्रम और ज्यादे टूटा। इसी के साथ मुख्यधारा की मीडिया का चाल चरित्र भी पूरी तरह से बेनकाब हो गया। अदालत भी जनविरोधी पतित मीडिया का सुरक्षाकवच बनकर सामने आई।

https://mehnatkash.in/2020/05/16/lockdown-exemption-of-owners-for-not-paying-full-salary/

कोरोना ने दिया विरोधी विचारों को कुचलने का आवरण

महामारी की आड़ में मोदी सरकार ने बचे खुचे जनवादी अधिकारों को भी बुरी तरीके से कुचलने का काम किया। अपने विरोधियों को एक-एक करके गिरफ्तार करने, जेलों में डालने, फर्जी मुकदमे थोपने और पुलिस-फौज से दमन करने का काम तेज कर दिया।

निरंकुशता का घोड़ा बेलगाम दौड़ता रहा। भीमा कोरेगांव के बहाने गिरफ्तारियां रही हों या सीएए-एनआरसी के खिलाफ संघर्षरत छात्र-छात्राओं, नौजवानों, महिलाओं, जनवादी ताकतों और विशेष रूप से मुस्लिमों की भयंकर दमन के साथ गिरफ्तारियां, सब सत्ता के क्रूर कारनामों की गवाह हैं।

https://mehnatkash.in/2020/04/23/kovid-19-unemployment-starvation-violence-racial-differences-to-the-extreme/

पूँजीपतियों का हित, जनता को बांटने की नीति और उजागर

संघ पोषित मोदी सरकार की जनता को धर्म-जाति के नाम पर विभाजित करने की नीति जो अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की राजनीति है, और ज्यादा उजागर हो गई है। दूसरी ओर मोदी सरकार की पूँजीपति और कॉरपोरेट के प्रति पक्षधरता भी और स्पष्ट रूप से सामने आई है।

(क्रमशः जारीशेष अगली क़िस्त में)

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