महाकुंभ का अनकहा चेहरा: संगम पर हावी रहे नदी माफिया, आम नाविक हुए बेरोजगार

योगी आदित्यनाथ ने बयान दिया था कि एक नाविक परिवार ने कुंभ के दौरान 130 नावों से तीस करोड़ रुपये कमा लिए. सच यह है कि प्रशासनिक मदद की वजह इस हिस्ट्रीशीटर परिवार को संगम में नाव चलाने का एकाधिकार मिल गया. इस नदी माफिया ने नहावन के लिए बेहिसाब पैसे वसूले, लेकिन आम नाविकों की दिहाड़ी छिन गई.
इलाहाबाद: नौ मार्च की दोपहर संगम घाट पर एक व्यक्ति एक नाविक से पूछता है- ‘संगम नहावन घाट तक चलना है, 8 सवारी हैं.’
नाविक बोलता है, ‘1200 रुपये.’
नीली टी-शर्ट वाला ग्राहक कहता है, ‘कुंभ में तुम लोगों ने 30- 35 करोड़ रुपये कमाये हैं. इतना पैसा कहां लेकर जाओगे.’ युवा मल्लाह कहता है, ‘जिसने कमाया है वह जाने. हमने नहीं कमाया है.’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब से विधानसभा में बयान दिया है कि एक नाविक परिवार ने कुंभ के दौरान 130 नावों से तीस करोड़ रुपये कमा लिए, घाट पर नाविकों और नहावन के लिए आने वाले लोगों के बीच रस्साकशी चल रही है. लोग हर नाविक को लुटेरा मानने लगे हैं.
एक युवा नाविक कहता है, ‘एक हिस्ट्रीशीटर गैंगस्टर की वसूली और दूसरों की हक़मारी को मुख्यमंत्री ने मल्लाहों की कमाई बता दिया.’
योगी आदित्यनाथ ने तो इन नावों के मालिक का नाम नहीं लिया था, लेकिन उसका नाम जल्द उजागर हो गया- पिंटू महरा.
इलाहाबाद जिले के नैनी थाने के थाना प्रभारी वैभव सिंह के मुताबिक पिंटू महरा पुराना हिस्ट्रीशीटर है. उसके खिलाफ़ कई मामले लंबित हैं. उसके परिवार के कई सदस्यों का आपराधिक इतिहास रहा है. पिंटू महरा के बड़े भाई आनंद महरा और अरविंद महरा, और पिता राम सहारे उर्फ़ बच्चा महरा भी हिस्ट्रीशीटर रहे हैं. बच्चा की मौत साल 2014 में जेल में इलाज के दौरान हुई थी.
द वायर हिंदी की पड़ताल बताती है कि अगर प्रशासनिक गठजोड़ की वजह से आपराधिक पृष्ठभूमि वाले इस नाविक परिवार को कुंभ के दौरान करोड़ों का अनुचित लाभ मिला, बेशुमार सामान्य नाविकों को गहरा नुकसान भी उठाना पड़ा.
नदी पर एकाधिकार: कुछ लोगों को सौंप दिए गए संगम के घाट
योगी सरकार ने कुंभ की सफलता के बहुत दावे किए, लेकिन इन चमकीले भाषणों के बीच यह अनकहा रह गया कि इस धार्मिक आयोजन के दौरान कुछेक बाहुबली नाविकों को पूरा संगम सौंप दिया गया था.
उन्होंने तीर्थ-यात्रियों से बेहिसाब पैसे वसूले. छोटे नाविकों का रोजगार छिन गया, और वे इन बाहुबलियों की नावों पर दिहाड़ी करने को मजबूर हो गए.
इस कहानी का प्रमुख किरदार है पिंटू महरा. पिंटू की मां सुकलावती देवी बिजली विभाग में रजिस्टर्ड ठेकेदार हैं. कुंभ आयोजन में सड़क बनाने, बिजली लाइन बिछाने, बिजली के सबस्टेशन तैयार करने का ठेका उन्हें मिला था.
पिछले कई सालों से माघ मेले, कुंभ और अर्द्धकुंभ में बिजली और सड़क बिछाने का ठेका इस परिवार को मिलता आ रहा है.
मल्लाह और नाविक यूनियन के सदस्य बताते हैं कि कुंभ की तैयारी के दौरान महरा परिवार ने पचास से अधिक नई नावें बनवाईं.
उनके रिश्तेदारों ने भी दर्जनों नई नावें बनवाईं. ज़ाहिर है, यह बात हवा में थी कि कमाई का सीजन आने वाला है. लेकिन इसका फायदा उठाया सिर्फ़ चुनिंदा लोगों ने.
नाविक यूनियन के सदस्य बबलू बताते हैं, ‘कुंभ की तैयारियों के दौरान यह बात फैलायी गई कि नावें ठेकेदारी व्यवस्था के अंतर्गत चलाई जाएंगी. और सिर्फ़ चुनिंदा घाटों पर चलेंगी.’
इसको लेकर मल्लाह समुदाय ने कुंभ शुरू होने के पहले संगम में पुलिस का रास्ता रोककर विरोध-प्रदर्शन किया था. नाविक यूनियन की कार्यकारिणी के सदस्य विशंभर पटेल कहते हैं, ‘ठेका देने से पहले विज्ञापन निकलता है. टेंडर मांगे जाते हैं, बोलियां लगती हैं. लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. प्रशासन ने ऐसी परिस्थितियां तैयार कीं, जिससे पिंटू महरा के परिवार की दरिया पर मोनोपोली खड़ी हुई.’
निषाद राज गुह्य सेवा संघ के चेयरमैन मनोज निषाद आगे जोड़ते हैं कि भले ही ठेके की अफवाहें उड़ रही थीं, ‘कुंभ में नाव चलाने का कोई अधिकृत ठेका नहीं था.’ इस तरह कुछ बाहुबलियों को पूरा कुंभ सौंप दिया गया. विशंभर बताते हैं कि प्रशासन ने टेंट सिटी के धनी यात्रियों को ध्यान में रखकर नावें लगवाईं. ‘लोगों को संगम नहलवाने के लिए जो नावें लगीं, वो अरैल घाट जिधर टेंट सिटी बसी हुई थी, वीआईपी घाट और संगम घाट की तरफ़ से लगी,’ विशंभर कहते हैं.
इस प्रक्रिया ने नाविकों के बीच भेदभाव पैदा कर दिया. कुंभ शुरू होने से पहले ही कुछ नाविकों को वीआईपी घाटों पर अधिकार मिल गया, जो बहुत जल्द एकाधिकार में बदल गया.
बात यहीं नहीं रुकी. नाविक बताते हैं कि आम नाविकों की नाव लगाने की जगह को प्रशासन ने वीआईपी स्नानगृह खड़ा करके घेर लिया.
बची जगह पर महरा परिवार और उन जैसे बाहुबलियों की नावें लगी. नाविक संदीप नीबी बताते हैं, ‘आम मल्लाहों ने यदि ग़लती से या चालाकी से नावें लगा भी ली, तो वहां ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मियों ने यह सुनिश्चित किया कि वीआईपी यात्री उनकी नावों पर न बैठने पाएं.’
खेवादार राजेश बताते हैं, ‘खेवादारों का काम यात्रियों को लाकर मोलभाव करके उन्हें नाव पर बिठाना है. लेकिन कुंभ के दौरान पुलिसकर्मी खेवादार का काम करते दिखे. घाट तक कारों से पहुंचने वाले वीआईपी यात्रियों को पुलिस वाले ख़ुद महरा की नावों में बैठाते थे.’
संगम की बीच धारा में नहावन घाट लगाने वाले गोताखोर रूप चंद कलंदर बताते हैं कि इस कुंभ में 80 घाट थे, जिसमें 25-26 प्रमुख घाटों पर चंद माफियाओं का एकाधिकार था.
नदी माफिया का उदय, आम मल्लाह आक्रोशित
कुंभ के दौरान तमाम ऐसी ख़बरें प्रमुखता से आई थीं कि नाववालों ने यात्रियों से प्रति सवारी हज़ारों रुपये वसूले हैं. इसका कारण था कि सैकड़ों नावों को नदी में उतरने नहीं दिया गया. सिर्फ़ चुनिंदा नाविकों की गिनी-चुनी नावें चलीं.
इस तरह से जानबूझकर मांग बढ़ाई गई. नावों की आपूर्ति कम होने की वजह से किराया बढ़ा और लोगों से मनमाने पैसे वसूले गए. नाविकों और खेवा देने वालों में मेला प्रशासन के प्रति आक्रोश बढ़ता गया. उन्होंने कहा कि कुंभ के दौरान उन्हें दरिया पर नाव चलाने के पारंपरिक अधिकार से वंचित कर दिया गया.
छतनाग निवासी राज कुमार कश्यप के पास एक छोटी नाव है. वह बताते हैं कि पूरे कुंभ के दौरान उन्हें झूंसी और छतनाग क्षेत्र में नाव नहीं लगाने दी गई. ये नाविक कहते हैं कि इस तरह बाहुबली नाविकों के साथ इलाहाबाद में नाव माफिया का उदय हुआ और दरिया में नाव चलाने का अपराधीकरण हो गया.
यही नहीं, इसके साथ मल्लाहों के घाट और ठीहे भी उजड़ गए. विशंभर पटेल और बबलू निषाद बताते हैं कि पहले संगम किनारे मल्लाहों, नाविकों और खेवादारों के बैठने की अपनी जगह हुआ करती थी. नाविक यूनियन के लोग यहां बैठते थे, मल्लाह बैठते थे. कभी पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी पहलवान घाट पर नाविक यूनियन की बैठक में शामिल हुए थे. लेकिन प्रशासन ने मल्लाहों के ठीहे को ख़त्म कर दिया.
यह पहली बार नहीं है कि कुंभ के दौरान भ्रष्टाचार हुआ है. 2021 की सीएजी रिपोर्ट ने अर्द्धकुंभ-2019 के आयोजन में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था. अर्द्धकुंभ 2019 के दौरान 2009 बैच के आईएस अधिकारी विजय किरण आनंद मेलाधिकारी थे. सीएजी के मुताबिक उनकी निगरानी में रहे तमाम विभाग अपने व्यय का ब्यौरा तक नहीं दे पाये थे. उन पर सरकार के बड़े अधिकारियों को मेला से फंड पहुंचाने का आरोप लगा था. विजय किरण वाराणसी और गोरखपुर में जिलाधिकारी रहे थे. इसके बाद उऩ्हें 2017 माघ मेला, 2019 अर्द्धकुंभ मेला का अधिकारी बनाया गया.
कुंभ-2025 के लिए ‘महाकुंभ मेला जिला’ नाम से एक अस्थायी जिला स्थापित किया गया. विजय किरण को इस अस्थायी जिले का जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया था.
दैनिक भास्कर की ख़बर के अनुसार 2019 के आयोजन में राज्य सरकार ने 4,236 करोड़ रुपये आवंटित किए थे. जबकि, 2013 के महाकुंभ में सिर्फ 1,300 करोड़ रुपये सरकार ने खर्च किए थे. इस तरह कुंभ 2019 की लागत कुंभ 2013 की तुलना में तीन गुना अधिक थी. सरकार का दावा था कि कुंभ 2019 में 23 करोड़ श्रद्धालुओं ने भाग लिया था. महाकुंभ 2025 के लिए क़रीब 7500 करोड़ रुपये का बजट आबंटित हुआ था.
नदी ‘माफिया’ का चेहरा: पिंटू महरा
नैनी थाने में पिंटू महरा के ख़िलाफ़ अलग- अलग धाराओं में डेढ़ दर्जन आपराधिक मामले दर्ज हैं. इसमें हत्या, हत्या की कोशिश और वसूली जैसे केस शामिल है. पिंटू के ख़िलाफ़ 2010 और 2016 में गैंगस्टर एक्ट तथा 2013 व 2015 में गुंडा एक्ट के तहत भी केस दर्ज हुए थे. उसके परिवार के 5 सदस्यों की हत्या दबंगई और वर्चस्व की लड़ाई में हो चुकी है. वह कई बार जेल जा चुका है लेकिन राजनीतिक संरक्षण के चलते जल्द ही बाहर आ जाता है.
पिंटू महरा के ख़िलाफ़ सबसे हालिया केस कुंभ के दौरान 11 फरवरी को महाकुंभ कोतवाली क्षेत्र में दर्ज हुआ था, जब शनि निषाद और पिंटू निषाद नामक नाविकों ने उसके खिलाफ़ धमकाने का मामला दर्ज करवाया था.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिंटू महरा के पिता बच्चा महरा का एक पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संग क़रीबी रिश्ता रहा है. इलाहाबाद में कहा जाता है कि शहर के एक दिग्गज भाजपा नेता व पूर्व कैबिनेट मंत्री से भी महरा परिवार का क़रीबी संबंध रहा है, जिसके चलते उन्हें बिजली और बालू खनन के ठेके आसानी से मिल जाते हैं. पिंटू महरा की चाची विमला देवी अरैल गांव की प्रधान रही हैं. इस वक्त उसका चचेरा भाई प्रदीप महरा (गुलाब महरा का बेटा) अरैल का पार्षद है.
जब द वायर हिंदी ने पिंटू महरा से पूछा कि कुंभ से पहले आपके पास कितनी नावें थीं, उन्होंने कहा, ‘हमारे परिवार के पास 60 नावें थी. 70 नावें हमने कुंभ शुरु होने से पहले बनवाई हैं.’
लेकिन सितंबर में अचानक 70 नावों को बनवाने का फ़ैसला कैसे लिया? इसमें तो काफ़ी जमापूंजी ख़र्च हुई होगी? इतना बड़ा जोखिम कैसे लिया?
पिंटू ने कहा, ‘मैंने 2019 कुंभ (अर्द्ध-कुंभ) के भव्य आयोजन को देखा था. तभी से सोच लिया था कि कुंभ में कुछ करना है. मुझे अनुमान था कि साल 2025 का कुंभ बहुत बड़ा होने जा रहा है. कमाने का अवसर आने वाला है. यही सोचकर नावें बनवाने का फ़ैसला लिया.’
स्कॉर्पियो गाड़ी से चलने वाले और आलीशान दोमंजिला घर में रहने वाले 40 वर्षीय पिंटू महरा 30 करोड़ की कमाई के दावे पर कहते हैं, ‘यह मेरी अकेले की कमाई नहीं है. 100 लोगों का परिवार है हमारा. परिवार और समुदाय के लोगों ने जो मिलकर 130 नावें चलाई थीं उसकी कमाई है. कई ग्राहकों ने ख़ुश होकर हमें बख़्शीश में पैसे और गहने दिए. सब शामिल है उसमें.’
पिंटू महरा की मां सुकलावती देवी ने भी मीडिया से बात करते हुए दावा किया था कि उनके बेटे ने नाव ख़रीदने के लिए अपनी पत्नी सुमन के गहने और घर के कागज़ात गिरवी रखकर नावें बनवाई है. उन्होंने दावा किया था कि उनके पास पहले सिर्फ़ तीन-चार नावें थीं. सितंबर 2024 में बेटे ने 70 नई नावें और 7 मोटर बोट ख़रीदी. इसके अलावा 60 नावें उनके कुनबे के लोगों की हैं.
इस मामले में द वायर हिंदी ने ज़िला प्रशासन का पक्ष जानने के लिए उनसे कई बार संपर्क किया, अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. उनका जवाब मिलने पर रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
(सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार हैं.)