शहीदी दिवस दिवस (23 मार्च) पर विशेष भगत सिंह कहते हैं "भारत की असल क्रांतिकारी सेना गांव और कारखानों में है।" क्रांति का मतलब है पूंजीपतियों से सत्ता छीन कर मज़दूरों और किसानों के हाथों सौंपना यानी पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन और यह काम जागरूक मज़दूर और किसान अपने संगठन और एकता के बल पर कर सकते हैं। भगत सिंह और बटकेश्वर दत्त ने ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट और पब्लिक सेफ्टी बिल के खिलाफ असेंबली में बम फेंका था यह जानते हुए भी कि अगर पकड़े गए तो फांसी की सजा होगी, फिर भी अपनी गिरफ्तारी दी। तो क्या मज़दूर और ट्रेड यूनियन उस ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट से मुक्ति पा चुके हैं? क्या आज भी श्रम कानूनों में संशोधन के नाम पर सरकारें मजदूरों का शोषण नहीं कर रही है ? क्या आज भी सरकारें पूंजीपतियों के पक्ष में नहीं खड़ी है ? क्या आज भी सरकारें मजदूरों के संगठन को तोड़ने का प्रयास नहीं कर रही है ? मजदूरों की जो स्थिति आजादी से पहले थी वही आज भी है। मजदूरों और मेहनतकश अवाम के लिए कुछ नहीं बदला। मौजूदा मोदी सरकार ने अदानी-अंबानी जैसे पूंजीपतियों को खुश करने के लिए एक लंबी लड़ाई के बाद मज़दूरों को हासिल श्रम अधिकारों को खत्म करते हुए उन्हें चार लेबर कोड बिल में बदल दिया है। भगत सिंह और उनके साथियों ने कहा था कि बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत पड़ती है मगर हम देख सकते हैं कि पिछले करीब 6 महीने से 3 लाख किसान दिल्ली के बॉर्डर पर अपनी बात सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, हम सभी को पता है कि इस दौरान 100 से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं लेकिन मौजूदा निजाम बहरा ही नहीं, अंधा भी है और गूंगा भी है जो देश को जलता हुआ देख कर भी अपनी चुनावी रैली में व्यस्त है। https://mehnatkash.in/2019/08/30/todays-era-and-martyr-bhagat-singh/ भगत सिंह ने कहा था गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेजों के आ जाने से व्यवस्था में परिवर्तन नहीं होगा। सरकार के खिलाफ आवाज उठाने, विचारों की असहमति दर्ज कराने और अपने अधिकार के लिए आवाज उठाने पर लोगों के ऊपर राजद्रोह का आरोप लगाकर UAPA और NSA जैसे काले कानूनों की आड़ में जेल में डाल दिया जा रहा है। अंग्रेजों के वक्त पब्लिक सेफ्टी बिल जैसा काला कानून था और आज यूएपीए और एनएसए जैसे काले कानून है। शिक्षा के निजीकरण और होस्टल फीस में बढ़ोतरी कर छात्रवृति में कटौती का विरोध करने पर छात्रों पर लाठियां बरसाई जाती है, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ एक ट्वीट कर देने पर छात्रों और पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप लगाकर जेल में डाल दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक ट्वीट कर देने से सुप्रीम कोर्ट के एक अधिवक्ता के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस चलाया गया। सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ने पर बार-बार अल्पसंख्यकों को पाकिस्तानी और खालिस्तानी कहकर बुलाया गया, मजदूरों की आवाज उठाने वाले दो ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में महीने भर तक जेल में रखा गया और पुलिस कस्टडी में उनको शारीरिक प्रताड़ना दी गई। मारुति, ग्रेजीयानो, प्रिकॉल जैसी कंपनियों में वेतन बढ़ोतरी की मांग करने, यूनियन बनाने की कोशिश करने पर मजदूरों के ऊपर मुकदमे लाद कर उनको जेल में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है पिछले दिनों कर्नाटक में एप्पल का फोन बनाने वाली कंपनी में मजदूरों के साथ जो बर्ताव हुआ उससे साफ है कि स्थाई नौकरी का सपना देखना इस देश में गुनाह हो गया है और कंपनी मालिक और ठेकेदार की बदनीयत और मुनाफे की हवस मज़दूरों की मजदूरी और नौकरी का फैसला करती है। https://youtu.be/jWaVmlRr6hQ तो इस मौजूदा दौर में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की राजनीतिक विचारधारा में यकीन रखने वालों, उनके दिखाए रास्ते पर चलने वालों छात्रों और नौजवानों के खिलाफ़ मौजूदा सरकार जंग का ऐलान कर चुकी है तो आज भगत सिंह और उनके साथी जिंदा होते तो शायद इस सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया होता। जिस पुलिसिया व्यवस्था के खिलाफ भगत सिंह और उनके साथियों ने अपनी राजनीतिक लड़ाई छेड़ी थी मौजूदा सरकार उसी पुलिस और दमन की व्यवस्था के दम पर बेरोजगार युवाओं, मजदूरों और किसानों का कत्लेआम करने पर उतारू है। याद कीजिए भगत सिंह ने लाहौर षड्यंत्र मामले की सुनवाई के दौरान क्या कहा था कि हमें कोर्ट की कार्रवाई पर भरोसा नहीं है लेकिन हम इस कार्रवाई के जरिए इस व्यवस्था के खोखलेपन और झूठ को उजागर करना चाहते हैं। हम इसके जरिए अपने विचारों को जनता तक पहुंचाएंगे। भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु की राजनीति जनता के खिलाफ सरकारी षड्यंत्र, पूंजीपतियों और सरकारी गठजोड़ का खुलासा करने की राजनीति है। उसके खिलाफ आवाज उठाने की राजनीति है जिस राजनीति से मौजूदा सरकारों और राजनीतिक व्यवस्था को डर लगता है। पिछले 10 सालों में मौजूदा सरकार ने जनता को हिन्दू-मुस्लिम, अगड़े-पिछड़े की सांप्रदायिक राजनीति की आग में झोंक कर, पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए देश के संसाधन को, सरकारी संपत्तियों को नीलामी पर चढ़ा दिया है। रेलवे बीएसएनल सरकारी एयरपोर्ट सरकारी बैंक, मजदूरों की मेहनत, किसानों के खेत बेचने वाला नेता कहता है कि मैं देश नहीं बिकने दूंगा। https://mehnatkash.in/2019/09/28/bhagat-singh-ke/ तो आइए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत दिवस के अवसर पर इन शहीदों की सोच को आगे बढ़ाते हुए एक ऐसा समाज और एक ऐसी दुनिया को गढ़ने के लिए छात्र, नौजवान, मजदूर, किसान और महिलाएं मिलजुल कर वर्गीय चेतना से लैस एक सामूहिक राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लें! जहां सत्ता और मुनाफे के लिए इंसान द्वारा इंसान का शोषण ना हो, समाज और इंसान की सोच जाति और धर्म के बाड़े में बंधी हुई ना हो, हम और आप धर्म के नाम पर अंधी हो चुकी, सोचने समझने की शक्ति छोड़ चुकी भीड़ में तब्दील ना हो चुके हो, विचारों में असहमति होने पर किसी को देशद्रोही ना करार दिया जाए, समाज में महिलाओं को बराबरी का अधिकार हो, उन्हें बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ के नारे का मोहताज ना होना पड़े। जहां विकास का मतलब जनता का खून चूस कर अडानी और अंबानी जैसे पूंजीपतियों की सम्पत्ति और पूंजी का विकास ना हो, जहां विश्वविद्यालय के अंदर छात्र देश और समाज से जुड़े हर मुद्दे पर खुलकर चर्चा कर सकें, अपनी राय रख सकें, समाज के विभिन्न तबकों के आंदोलन से जुड़ सकें और उनकी लाइब्रेरी के अंदर घुस कर पुलिस उन पर लाठियां ना चलाएं। मेहनतकश मज़दूरों-किसानों के वर्तमान संघर्ष से संग्रामी एकजुटता के साथ मुक्तिकमी संघर्ष को तेज करना ही भगत सिंह की सच्ची परंपरा होगी!