देश का किसान कृषि कानूनों के साथ कोरोना के खिलाफ भी लड़ रहा है जंग

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सरकार का “आपदा में अवसर” है जन विरोधी कृषि कानून

जनविरोधी कृषि क़ानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन जारी है। सयुंक्त किसान मोर्चा द्वारा 147वें दिन जारी प्रेस बुलेटिन में कहा गया है कि किसानों के धरनों की चुनावी रैली से तुलना अमानवीय व तर्कहीन है। कोविड से लड़ने में असक्षम सरकार किसानों पर ठिकरा न फोड़े। इधर बुद्धिजीवियों, वकीलों, पत्रकारों ने सरकार व सयुंक्त मोर्चे को पत्र लिखकर कहा कि बातचीत से ही होगा हल।

सयुंक्त किसान मोर्चा की बैठक में निर्णय लिया गया कि किसानों के मोर्चो पर सेनिटेशन व साफ सफाई का विशेष तौर पर ध्यान रखा जाएगा। किसानो को मास्क आदि वितरित किये जायेंगे। प्रशासन ने धरने के आसपास वैक्सीनेशन सेंटर बनाये है वहां किसान जाकर वैक्सीन लगवा सकते है। लक्षण दिखने पर जांच करवाई जाएगी। मोर्चो पर किसान पहले ही दूर दूर खुले में रह रहे है। सयुंक्त किसान मोर्चा इस कृषि कानूनो के खिलाफ होने के साथ साथ कोरोना के खिलाफ भी लड़ रहा है।

कोरोना लॉकडाउन में जब सब लोग घरों में कैद थे तब “आपदा में अवसर” खोजते हुए सरकार ने किसान विरोधी व जन विरोधी कृषि कानून देश पर थोपे। स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान देने की बजाय कॉरपोरेट घरानों को खुश रखने के सभी प्रयास सरकार ने किए। आज भी भाजपा के लिए चुनाव महत्वपूर्ण है न कि देश की जनता। भाजपा के पास यह विकल्प है कि वे चुनावी रैली करें या न पर किसानो के पास विरोध करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। किसान अपना विरोध वापस ले लेंगे अगर सरकार खेती कानून वापस ले व MSP पर कानून बना दे।

सरकार कोरोना से लड़ने में असफल रही है। किसानों के धरनों से कितने लोगों को कोरोना हुआ है यह सरकार को सिद्ध करना चाहिए बजाय इसके कि किसानों के खिलाफ प्रोपगेंडा फैलाएं। कोरोना महामारी का पिछली बार भी किसानों के खिलाफ प्रयोग किया गया था व अब भी हो रहा है।

देश के जाने माने अर्थशास्त्री, वकील, बुद्धिजीवी व अन्य जनवादी हस्तियों ने केंद्र सरकार व सयुंक्त किसान मोर्चा को पत्र लिखकर फिर से बातचीत करने का आह्वान किया है।