भारी विरोध के बीच तमिलनाडु सरकार ने 12 घंटे शिफ़्ट वाले फ़ैक्ट्रीज़ संशोधन बिल पर लगाई रोक

यूनियनों ने कहा कि नया क़ानून बीजेपी द्वारा थोपी जा रही मज़दूर विरोधी नीतियों को ही आगे बढ़ा रहा है। मुख्यमंत्री ने फिलहाल रोक लगाते हुए यूनियनों की चिंता पर ध्यान देने का वादा किया।
भारी विरोध के चलते तमिलनाडु की स्टालिन सरकार को आख़िरकार 12 घंटे शिफ़्ट वाले फ़ैक्ट्रीज़ (तमिलनाडु संशोधन) बिल 2023 पर रोक लगाने की घोषणा करनी पड़ी.
यह विधेयक विधानसभा में शुक्रवार को पास किया गया था. उसके बाद पूरे राज्य में राजनीतिक भूचाल आ गया. सत्तारूढ़ डीएमके की सहयोगी कांग्रेस और वीसीके ने विधानसभा में इसका विरोध किया और वॉक आउट कर गए.
वामपंथी पार्टियों सीपीआई और सीपीएम ने इसकी कड़ी निंदा की और ट्रेड यूनियनों ने सरकार पर मज़दूर विरोधी क़ानून थोपने का आरोप लगाते हुए तीखी आलोचना की.
शनिवार को स्टालिन सरकार ने ट्रेड यूनियनों को चर्चा के लिए बुलाया था. लेकिन ये भी आरोप लगे कि चर्चा का ये कौन सा तरीक़ा है कि क़ानून पास करके वार्ता की जाए.
ट्रेड यूनियनों ने आरोप लगाए कि नया क़ानून बीजेपी की ओर से थोपी जा रही मज़दूर विरोधी नीतियों को ही आगे बढ़ा रहा है, मुख्यमंत्री स्टालिन ने क़ानून पर फिलहाल के लिए रोक लगाते हुए यूनियनों की चिंता पर ध्यान देने का वादा किया.
बड़ी सावधानी से दिए अपने बयान में डीएमके सरकार ने कहा है कि मज़दूरों के अधिकार और कल्याण के प्रति वो प्रतिबद्ध है और राज्य के संपूर्ण विकास में शांतिपूर्ण श्रम का माहौल बहुत अहम है.
इससे पहले तमिलनाडु के अधिकारियों ने तर्क दिया था कि अगर कंपनियों के लिए काम के घंटों को लचीला नहीं बनाया गया तो वे पड़ोसी राज्य कर्नाटक में चली जाएंगी, जहां 12 घंटे की शिफ़्ट का क़ानून अभी हाल ही में बनाया गया है.
मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार, इस क़ानून पर रोक लगाने से पहले सहयोगी दलों ने सरकार से कहा था कि आठ घंटे की शिफ़्ट को बढ़ा कर 12 घंटे किए जाने से मज़दूरों पर बुरा असर पड़ेगा.
ट्रेड यूनियनों से बातचीत में सरकार ने आश्वासन दिया है कि इस क़ानून को अनिवार्य की बजाय वैकल्पिक बनाया जाएगा, यानी जिन फ़ैक्ट्रियों में वर्कर और मैनेजमेंट दोनों सहमत होंगे, वहीं लागू होगा.
साथ ही वर्करों को ये अधिकार होगा कि वो 12 घंटे की शिफ़्ट से इनकार कर सकें और मैनजमेंट को ये अधिकार नहीं होगा कि वे वर्करों से ज़बरदस्ती कर सकें.
सरकार बयान सोमवार को देर शाम आया जिसके कुछ ही देर बाद डीएमके और उसके सहयोगी दलों के बीच बैठक होनी थी.
फ़ैक्ट्री संशोधन विधेयक 2023 के मुताबिक फ़ैक्ट्रियों में कर्मचारी अगर चार दिन का कार्यदिवस चुनते हैं तो वहां शिफ़्ट 12 घंटे की होगी और उन्हें तीन दिन की सवैतनिक छुट्टी मिलेगी.
सप्ताह में 48 घंटे काम की सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि सरकार कैसे फैक्ट्रियों में ये नियम लागू करवाएगी.
उद्योग मंत्री थंगम थेनारासु ने कहा कि कर्मचारियों के लिए सप्ताह में काम के कुल घंटों को नहीं बदला गया है. उनका का दावा है कि इससे महिला कर्मचारियों को फायदा होगा.
बिल पेश करते हुए उन्होंने कहा था कि छुट्टी, ओवरटाइम, वेतन आदि के मौजूदा नियमों को नहीं बदला गया है. उन फ़ैक्ट्रियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी जो कर्मचारियों को इच्छा के विरुद्ध काम कराने पर मज़बूर करेंगे.
वर्कर्स यूनिटी से साभार