छलांगें ले रही महँगाई; पेट्रोल-सरसों तेल के साथ अब प्याज-टमाटर भी जनता से दूर

‘बहुत हुई महँगाई की मार, आबकी बार…” बोलकर सत्तानसीन मोदी राज में- पेट्रोल 102 रुपये, रिफाइंड तेल 160 रुपये, सरसों तेल 175 रुपये, चीनी 42 रुपये, प्याज 50 रुपये, टमाटर 60 रुपये…
पेट्रोल 102 रुपये, रिफाइंड तेल 160 रुपये, सरसों तेल 175 रुपये, चीनी 42 रुपये, प्याज 50 रुपये, टमाटर 60 रुपये – बाजार में दाम आसमान छू रहे हैं। कोई चीज अछूती नहीं है। पहले जहाँ चीनी के दाम एक सामान लेवल पर स्थिर रहते थे वो अब नई ऊँचाई छू रहे हैं, प्याज का दाम और टमाटर के दाम रोजाना बढ़ रहे हैं। इस त्योहारी सीजन में लोगों के लिए राहत के कोई आसार नजर नहीं आ रहे।
ईंधन और खाने के तेल की कीमतों के रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बाद आम भारतीयों के लिए प्याज का बोझ जेब काटे ले रहा है। हाल ही में भारत के अलग-अलग हिस्सों में हुई भारी बारिश ने न सिर्फ गर्मी की फसल को नुकसान पहुंचाया है बल्कि सर्दी की फसल की बुआई में भी देर करवा दी है। प्याज की बहुत बड़ी सप्लाई महाराष्ट्र से आती है। महाराष्ट्र के धुले जिले के एक किसान के मुताबिक, सितंबर में बहुत बारिश हुई जिसके कारण फसल पर बीमारी का प्रकोप हुआ। फसल कम हो गई। औसतन एक एकड़ से पांच टन तक फसल लेने वाले किसान इस साल एक टन फसल की ही उम्मीद कर रहे हैं।
महाराष्ट्र के अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक सबसे बड़े प्याज उत्पादक राज्य हैं। यहां सितंबर में सामान्य से 268 प्रतिशत ज्यादा बरसात हुई है। फसल को नुकसान पहुंचा तो सप्लाई प्रभावित हुई। इसलिए प्याज के सबसे बड़े होलसेल बाजार महाराष्ट्र के लासलगांव में प्याज की कीमत दोगुनी से भी ज्यादा बढ़कर एक महीने में 33,400 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई। नतीजा यह हुआ कि लखनऊ ही नहीं, मुंबई के बाजारों में प्याज़ 50 रुपये किलो से भी ज्यादा में मिल रहा है।
भारत प्याज का सबसे बड़ा निर्यातक है। लेकिन महंगाई बढ़ने बावजूद सरकार ने निर्यात पर किसी तरह की पाबंदी नहीं लगाई है। व्यापारियों का कहना है कि भारत में बढ़ती कीमतों का असर बांग्लादेश, नेपाल, मलयेशिया और श्रीलंका आदि में भी पड़ेगा। बढ़ती कीमतों का नुकसान भारतीय निर्यातकों को भी हो रहा है।
मुंबई स्थित अनियन एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजित शाह कहते हैं कि आयातक अब तुर्की और मिस्र जैसे दूसरे सप्लायरों के पास जा रहे हैं। 2019 और 2020 में भी प्याज के दाम बहुत बढ़ गए थे। तब सरकार ने कुछ महीनो के लिए निर्यात पर रोक लगा दी थी। इससे श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों को किल्लत भी झेलनी पड़ी थी। एक प्याज निर्यातक के मुताबिक, अगर सरकार को लगा कि दाम बहुत तेजी से और बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं, तो निर्यात पर रोक लगाई जा सकती है।
वैसे, सरकार खाद्य पदार्थो की कीमतों को नीचे लाने की कोशिश कर रही है। खाद्य तेलों पर टैक्स घटाने जैसे कदम उठाए गए हैं। लेकिन कीमतें कंट्रोल में नहीं आ पा रही हैं। चीनी के बढ़े दामों की वजह इंटरनेशनल बाजार में ब्राजील से सप्लाई घटना बताया जा रहा है। इसकी वजह से भारत से एक्सपोर्ट सप्लाई बढ़ गयी है, जिसका असर घरेलू बाजार पर पड़ा है। भारत के घरेलू बाजार में चीनी के दाम बीते दो महीने में 13 फीसदी बढ़ चुके हैं। अब चार साल के उच्चतम स्तर पर हैं।
खाद्य तेलों की कीमतें घटाने के लिए सरकार ने इम्पोर्ट ड्यूटी लगभग ख़त्म ही कर दी है । लेकिन उसका इम्पैक्ट नजर नहीं आ रहा है। इसकी वजह खाद्य तेल के ग्लोबल उत्पादकों द्वारा अपने यहाँ निर्यात शुल्क बढ़ा दिया जाना है। इससे इम्पोर्ट ड्यूटी घटाने का कोई असर नहीं हो रहा। यानी खाद्य तेल के ग्लोबल उत्पादक ऐसी स्थिति पैदा कर रहे हैं ताकि तेल के दामों पर कोई असर ही न पड़े।