उदारीकरण के साथ सांप्रदायिकता-जातिवाद का फन फैलाता जहरीला नाग

जैसे-जैसे देश और दुनिया के मुनाफाखोरों के लिए देश का बाजार चारागाह बनता गया, जनता की बुनियादी जरूरतों- रोजी-रोटी का…

उदारीकारण के 3 दशक : मुट्ठीभर अमीरजादों के बनते ऐशगाह के नीचे आमजन की बर्बादी का सामान

80 के दशक में मुनाफे का एक रुपया मालिक की जेब में जाता था तो 2 रुपए 70 पैसे मज़दूर…

उदारीकरण के तीन दशक : मेहनतकश जनता की तबाही का कौन है ज़िम्मेदार?

उदारीकारण-वैश्वीकरण की नीतियों और “विकास” के नारों के बीते तीन दशक मे विकास की सच्चाई क्या है? किसका हुआ विकास,…