संघर्षरत बांग्लादेश का श्रमिक आंदोलन नए चरण में: श्रमिकों की गिरफ्तारियाँ बंद करो!

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बनाया मानव शृंखला: बुरी स्थितियों में कार्यरत बांग्लादेश के कपड़ा श्रमिक, जिनमें बड़ी संख्या महिला श्रमिकों की है, दमन के बीच बेहतर वेतन व सुविधाओं के लिए लगातार आंदोलित हैं।

बांग्लादेश में महिला रेडीमेड गारमेंट (आरएमजी) श्रमिकों का आंदोलन पुनः आगे बढ़ रहा है। हज़ारों श्रमिक 19 नवंबर को राष्ट्रीय राजधानी ढाका में नेशनल प्रेस क्लब के सामने मानव श्रृंखला बनाया। प्रदर्शनकारी श्रमिकों की गिरफ़्तारी पर तत्काल रोक लगाने की मांग कर रहे थे।

मानव श्रृंखला का आयोजन बांग्लादेश गारमेंट वर्कर्स फेडरेशन (बीजीडब्लूएफ) और इंडस्ट्रीऑल बांग्लादेश काउंसिल द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था।

दरअसल, बुरी स्थितियों में कार्यरत बांग्लादेश के कपड़ा श्रमिक 13 अक्टूबर से हड़ताल पर रहे। हड़ताल के कारण लगभग 150 आरएमजी इकाइयां बंद हो गईं। उनकी माँग बेहतर सुविधाओं व अधिक न्यूनतम वेतन की थी।

वर्तमान में, कपड़ा श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन 8000 टका (भारतीय 6080 रुपये) तय है, और श्रमिकों को विभिन्न प्रकार के काम के लिए विभिन्न इकाइयों में बतौर बाज़ार, वेतन 8500 टका से 10,000 टका के बीच मिल रहा है।

व्यापक असंतोष के जवाब में, सरकार द्वारा नियुक्त पैनल ने मंगलवार को क्षेत्र के न्यूनतम वेतन में 56.25% की वृद्धि की घोषणा की, जिससे इसे 12,500 टका निर्धारित किया गया। हालाँकि, कपड़ा श्रमिकों ने इस वेतन वृद्धि को अस्वीकार कर दिया, जिसके कारण विरोध प्रदर्शन बढ़ गया और कम से कम 70 कारखानों में तोड़फोड़ की गई। मजदूरों ने 12,500 टका के प्रस्तावित वेतन को अस्वीकार कर दिया और 25,000 टका की मांग की, जिसमें मूल वेतन 65% है।

पुलिस दमन के बीच जुझारू आंदोलन

बांग्लादेश में चार मिलियन श्रमिक, जिनमें बड़ी संख्या महिला श्रमिकों की थी, परिधान उद्योग के श्रमिकों के लिए बेहतर वेतन की मांग करते हुए सड़कों पर उतर गए थे। श्रमिक संघों के आरोपों से पता चलता है कि अधिकारियों ने विरोध प्रदर्शन को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और रबर की गोलियों का सहारा लिया।

31 अक्टूबर को ढाका के बाहरी क्षेत्रों आशुलिया और गाज़ीपुर में स्थित गारमेंट फैक्ट्रियों के हज़ारों मज़दूर वेतन वृद्धि की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आये। पुलिस और मज़दूरों के बीच तीखी झड़पें भी हुई जिसमें पुलिस ने मज़दूरों पर पानी की बौछारें की और रबड़ की गोलियां चलायीं।

यह प्रदर्शन तब उग्र हो गया जब कई फैक्टरियों के मालिकों ने मज़दूरों को हड़ताल पर जाने से बलपूर्वक रोका। मज़दूरों ने गुस्से में फैक्टरियों में तोड़ फोड़ शुरु कर दी, एकाध फैक्ट्री को आग के हवाले भी कर दिया और मेमनसिंह से ढाका जाने वाले हाईवे को जाम कर दिया। पुलिस ने मज़दूरों का दमन शुरु कर दिया।

करीब 25,000 हड़ताली श्रमिक पुलिस से भिड़ गए, जब पुलिस ने उनकी रैली पर आंसू गैस छोड़ा और उन पर लाठीचार्ज किया। इस दौरान दो मज़दूरों की मौके पर ही मौत हो गई और तीसरे मज़दूर की अस्पताल में मौत हो गई। एएफपी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों में चार लोगों की जान चली गई।

गुस्साए मज़दूरों ने 40 कपड़ा फैक्ट्रियों में तोड़फोड़ की। सैकड़ों श्रमिकों को गिरफ़्तार किया गया और 11,000 मज़दूरों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किये गये। लगभग 19,500 नामित और अज्ञात कपड़ा श्रमिकों को आरोपी बनाया गया है। लेकिन दमन ने श्रमिकों के प्रतिरोध को कम नहीं किया।

श्रमिकों के विरोध का सामना करते हुए, बांग्लादेश सरकार ने एक आरएमजी वेज बोर्ड नियुक्त किया। वेतन बोर्ड ने 9 नवंबर, 2023 को न्यूनतम वेतन के रूप में 12,500 बांग्लादेश टका प्रति माह (9500 भारतीय रुपये या 116 यूएस डॉलर के बराबर) की घोषणा की। अधिकांश हड़ताली श्रमिकों ने इस पर अपनी सहमती नहीं जताई। इसके बाद इन श्रमिकों का संघर्ष जारी रहा और साथ ही दमन और गिरफ़्तारियां भी जारी रहीं।

संघर्ष के बाद 2 नवंबर को बांग्लादेश संसद ने ‘बांग्लादेश श्रम (संशोधन) विधेयक, 2023’ पारित किया, जिसमें मातृत्व अवकाश को 112 दिन, यानी 16 सप्ताह, से बढ़ाकर 120 दिन कर दिया गया।

असन्तुष्ट श्रमिकों का आंदोलन तेज

मज़दूरों की लगातार गिरफ़्तारियों के सिलसिले को समाप्त करने और उनपर दर्ज मामलों को वापस लेने के साथ-साथ उनके वेतन और कार्यस्थल सुरक्षा में सुधार की मांग को लेकर बीते 19 नवंबर को राजधानी ढाका में नेशनल प्रेस क्लब के सामने एक मानव श्रृंखला का आयोजन किया।

प्रेस क्लब पर श्रमिकों के विरोध प्रदर्शन से राष्ट्रीय राजधानी में स्थित घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा लाइव कवरेज मिली। इससे विरोध प्रदर्शन अंतरराष्ट्रीय पटल पर सामने आया।

बड़े दुर्घटनाओं का केन्द्र है बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग

दुनिया जहान, विशेष रूप से पश्चिमी देशों के लिए रेडीमेड वस्त्र बांग्लादेश के श्रमिकों के पसीने और पीड़ा से तैयार होती है। हालत ये है कि मुनाफे की आंधी हवस में आए दिन होने वाली दुर्घटनाओं में मज़दूरों की मौत आम बात बन चुकी है।

सबसे बड़ी दुर्घटनाओं में 24 अप्रैल 2014 को हुई, जब राणा प्लाज़ा नामक एक विशाल इमारत, जिसमें 5 कपड़ा कारखाने थे, ढह गई, जिसमें 1134 कपड़ा श्रमिकों की मौत हो गई और 2500 से अधिक घायल हो गए थे। मरने वालों में अधिकांश महिला श्रमिक थीं।

इस घटना के विरोध में दुनियाभर के मज़दूर व न्यायप्रिय जनता खड़ी हुई। तमाम जगहों पर बांग्लादेश में निर्मित सूती शर्ट और टी-शर्ट का परित्याग किया गया; प्रदर्शनकारियों ने इन कपड़ों की होली जलायी। श्रमिक यूनियनों ने एकजुटता दर्शाते हुए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किये। बांग्लादेश आरएमजी इकाइयां अभूतपूर्व वैश्विक जांच के दायरे में आईं।

इन एथितियों में बांग्लादेश सरकार को कानून पारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसने सभी कपड़ा और अन्य कारखानों के लिए सरकारी अधिकारियों द्वारा निरीक्षण को अनिवार्य बना दिया।

राणा प्लाज़ा त्रासदी से पहले साल 2012 में एक क्लीन क्लोद्स कैम्पैन बुलेटिन में बताया गया था: “बांग्लादेश कपड़ा उद्योग का सुरक्षा रिकॉर्ड दुनिया में सबसे खराब में से एक है। बांग्लादेश अग्निशमन विभाग के अनुसार साल 2006 और 2009 के बीच कम से कम 213 फैक्ट्री आग में 414 गार्मेंट श्रमिक मारे गए। इसी तरह 2010 में 21 अलग-अलग दर्ज घटनाओं में 79 श्रमिकों की जान चली गई थी।”

इसी तरह 2005 में स्पेक्ट्रम फैक्ट्री की इमारत ढह गई थी, जिसमें कई श्रमिक मारे गए थे। सेवर इंटरनेशनल की एक इमारत भी ढह गई थी।

सुरक्षा मानकों की खुली अनदेखी, मानकों के विपरीत इमारतें

बांग्लादेश में कपड़ा कारखाने खराब तरह से निर्मित इमारतों में स्थित हैं। उनके पास अग्नि सुरक्षा उपाय और अग्नि निकास जैसे अन्य आपातकालीन सुरक्षा उपाय तक नहीं हैं। कारखाने अत्यधिक भीड़भाड़ वाले कार्यस्थल थे। इससे पहले कि वे भागकर अपनी जान बचा पाते, आग उन्हें अपनी चपेट में ले लेती है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की पहल पर अग्नि एवं भवन सुरक्षा पर बांग्लादेश समझौते की स्थापना की गई, जो कपड़ा कारखानों में सुरक्षा मानकों में सुधार के लिए ब्रांड्स, खुदरा विक्रेताओं और यूनियनों के बीच एक कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है।

लेकिन इस समझौते को कई छोटी गारमेंट इकाइयों ने नज़रअंदाज़ कर दिया और बांग्लादेश सरकार ने इस समझौते को सख्ती से लागू नहीं किया। ‘अंतरराष्ट्रीय ग्रीन बिल्डिंग प्रमाणन एजेंसी’ की व्यवस्था के दावों के बावजूद बांग्लादेश में फैक्ट्री भवनों का बमुश्किल 1% ही हरित बन सका।

वैश्विक पूंजी द्वारा बांग्लादेश के सस्ते श्रम का शोषण

पश्चिमी देशों के लिए तैयार सभी प्रसिद्ध सूती शर्ट या टी-शर्ट ब्रांड का उत्पादन मुख्यतः बांग्लादेश में होता है। क्योंकि वैश्विक कॉर्पोरेट पूंजी का बांग्लादेश के सस्ते श्रम का शोषण विकट है। यहाँ से बेहद कम लागत पर तैयार माल दुनिया भर में छाया हुआ है। वजह साफ है। बेहद कम वेतन और सुविधाओं में यहाँ के मज़दूर खटने को मजबूर हैं, जिनमें बड़ी संख्या महिला मज़दूरों की है। इसी वजह से 21वीं सदी में बांग्लादेश की गार्मेंट फैक्ट्रियों में अमानवीय स्थितियां व्याप्त हैं।

सस्ते श्रम का स्रोत महिला श्रमिकों का शोषण चरम पर

बांग्लादेश में महिलाओं का सस्ता श्रम मुनाफे का प्रमुख स्रोत है। कई अध्ययनों से पता चला है कि बांग्लादेश की महिला कपड़ा श्रमिकों में कुपोषण है और सिलाई मशीनों के सामने झुकने के कारण महिला श्रमिकों में मस्कुलोस्केलिटल विकार और पीठ दर्द की व्यापक परेशानी है।

कारखानों में महिला श्रमिकों की स्थितियां अनौपचारिक श्रमिकों की स्थितियों से बहुत भिन्न नहीं थीं। इन श्रमिकों में एनीमिया व्यापक रूप से पाया गया। वैश्विक ब्रांड्स ने इन आपूर्ति इकाई श्रमिकों के लिए उचित स्वास्थ्य देखभाल की भी व्यवस्था करने की ज़हमत नहीं उठाई।

अधिकांश महिला श्रमिक ग्रामीण बांग्लादेश से प्रवासी थीं और उनके पास ढाका और अन्य औद्योगिक शहरों में रहने के लिए सुरक्षित स्थान नहीं थे। बांग्लादेश में कम से कम 3500 कारखानों के 30 लाख से अधिक गारमेंट श्रमिकों को अपना भाग्य अपने हाथों में लेना पड़ा है।

बांग्लादेश के मज़दूरों का निरंतर संघर्ष

बांग्लादेश में मई 2006 में श्रमिक विरोध प्रदर्शनों में एक बड़ा उछाल आया, जिसने बांग्लादेश में शुरुआती श्रम सुधारों को गति दी। 2010 में अधिक हिंसक श्रमिक विरोध प्रदर्शन हुए। कई श्रमिक नेताओं को गिरफ़्तार किया गया और कुछ मारे भी गए।

2014 की राणा प्लाज़ा त्रासदी के बाद बांग्लादेश के श्रमिकों ने अपने दिवंगत साथियों के साथ एकजुटता ज़ाहिर करने के लिए राष्ट्रीय शोक दिवस का आयोजन किया। प्रदर्शनकारियों ने राणा प्लाज़ा के मालिक सोहेल राणा को फांसी की सज़ा देने की मांग की। राणा को गिरफ़्तार किया गया था और मार्च 2014 में ज़मानत पर रिहा कर दिया गया।

11 दिसंबर, 2016 को विंडी अपैरल फैक्ट्री के श्रमिक हड़ताल पर चले गए थे। अशुलिया क्षेत्र के कारखाने के असंगठित श्रमिकों ने 15 अन्य मांगों की सूची के साथ, तीन साल पहले निर्धारित न्यूनतम वेतन को तीन गुना बढ़ाकर 67 डॉलर प्रति माह करने की मांग की थी। यह आंदोलन भी दमन के बीच जुझारू रहा था।

मज़दूरों ने अपने लंबे संघर्ष में अब 2023 में एक नए चरण की लड़ाई शुरू कर दी है

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