छात्र, किसान, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर दमन का पुरजोर विरोध करो!

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मानवाधिकार कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या की छठी बरसी 5 सितंबर: 6 साल में उनके हत्यारों पर कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन एनआईए द्वारा छापेमारी से जनवादी कार्यकर्ताओं में दहशत का माहौल बनाया गया।

5 सितंबर को मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या की छठी बरसी थी। इसी दिन एनआईए (नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) ने वाराणसी, प्रयागराज, आजमगढ़, देवरिया और चंदौली में 8 जगहों पर छापेमारी कार्यवाही द्वारा छात्र, किसान, जनवादी व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में दहशत का माहौल बनाया, गिरफ्तारियाँ कीं।

6 साल में उनके हत्यारों पर कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन जनवादी कार्यकर्ताओं पर सरकार द्वारा सुनियोजित हमला सामने है।

खबर के मुताबिक एनआईए ने मंगलवार, 5 अगस्त की सुबह काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के छात्र संगठन भगत सिंह स्टूडेंट्स मोर्चा (बीसीएम) के दफ्तर समेत पूर्वांचल के प्रयागराज, चंदौली, आज़मगढ़ और देवरिया में आठ स्थानों पर छापेमारी की। एनआईए द्वारा की गई इस कार्रवाई में स्टूडेंट्स, समाजसेवी, राजनीतिक कार्यकर्ता, अधिवक्ता और किसान-मजदूरों के हितों के लिए संघर्ष करने वाले लोग निशाने पर आए।

वाराणसी

एनआईए की टीम भारी पुलिस फोर्स के साथ 5 अगस्त की सुबह बनारस के महामनापुरी कॉलोनी स्थित भगत सिंह स्टूडेंट्स मोर्चा (बीसीएम) के दफ्तर में छापेमारी करने के साथ ही दस्तावेजों को खंगालना शुरू कर दिया। बीसीएम से जुड़े लोगों के मोबाइल फोन ज़ब्त कर लिए गए। संगठन की अध्यक्ष आकांक्षा आज़ाद और सहसचिव सिद्धि को हिरासत में ले लिया गया। एनआईए ने इनके लैपटॉप भी अपने कब्जे में ले लिए। बीसीएम से जुड़े लोग मौके पर पहुंचे तो एनआईए व पुलिस ने उनके फोन छीन लिए और उनके साथ मारपीट की। समूचा इलाका पुलिस छावनी में बदल गया।

भगतसिंह स्टूडेंट्स मोर्चा की बीएचयू इकाई की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि “पूर्वांचल में राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं के दमन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की ज़रूरत है। बीजेपी उन लोगों को अपने शिकंजे में फंसा रही है जो आगामी चुनाव में उनका मुखर विरोध कर सकते हैं। मंगलवार को हुई एनआईए की छापेमारी इसी कोशिश का हिस्सा है।”

इलाहाबाद

इलाहाबाद में सुबह से ही सर्च ऑपरेशन शुरू हो गया। पीयूसीएल की उत्तर प्रदेश राज्य सचिव एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आज़ाद और उनके पति अधिवक्ता विश्वविजय के अलावा जानी-मानी अधिवक्ता सोनी आज़ाद और सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ता मनीष आज़ाद के घर भी एनआईए ने छापेमारी की। एनआईए की टीम प्रयागराज के रसूलाबाद स्थित सीमा आज़ाद के आवास पर सुबह करीब पांच बजे पहुंची। सीमा और उनके पति विश्वविजय को उनके घर में ही नज़रबंद किया। उनके लैपटॉप, मोबाइल फोन, कविताएं और अन्य साहित्य ज़ब्त किया गया।

इसके बाद एनआईए, सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार सीमा, विश्वविजय, सोनी और रितेश को पूछताछ के लिए अपने साथ ले गई। ज्ञात हो कि सीमा और उनके पति विश्व विजय को साल 2010 में भी विश्व पुस्तक मेला दिल्ली से लौटते समय गिरफ्तार करके देशद्रोह में निरुद्ध किया गया, जिनकी रिहाई के लिए मानवाधिकार संगठनों ने लंबा आंदोलन चलाया था।

प्रयागराज के वरिष्ठ वकील केके रॉय के मुताबिक, “सीमा आज़ाद को अज्ञात स्थान पर ले जाया गया है। वाराणसी समेत यूपी के कई शहरों और झारखंड में सुनियोजित तरीके से छापेमारी की जा रही है। पीयूसीएल के दूसरे सदस्यों ने घरों में भी छापे डाले जा रहे हैं।”

देवरिया/आजमगढ़

आज़मगढ़ के खिरियाबाग में चलाए जा रहे किसान जमीन बचाओ आंदोलन में सक्रिय व संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े राजेश आज़ाद के देवरिया स्थित उनके आवास पर भी एनआईए की टीम ने छापेमारी की। आजमगढ़ के तहबरपुर थाने के बरहमपुर गांव में राजेश आजाद की ससुराल में भी छापेमारी की गई। 

चंदौली

चंदौली जनपद के सैयदराजा थाना क्षेत्र के बगही कुम्भापुर गांव में मंगलवार तड़के एनआईए की टीम ने एक्टिविस्ट बच्चा राय के घर को घेर कर घंटों जांच-पड़ताल और परिवार वालों से कड़ी पूछताछ हुई। बच्चा राय के पुत्रों रोहित राय और रितेश राय जो दिल्ली व प्रयागराज में पढ़ते हैं, को ढूँढने के बहाने छापेमारी हुई।

देवरिया

एनआईए की टीम ने देवरिया शहर के उमानगर इलाके में जनवादी क्रांति दल के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. रामनाथ चौहान के घर भी छापा मारा। डॉ. चौहान घोसी उप-चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह के समर्थन में प्रचार करने गए थे। रामनाथ पहले बीएसपी से भी जुड़े थे।

आंदोलनकारियों का दमन

उल्लेखनीय है कि मोदी-योगी-संघ सरकार की जन विरोधी नीतियों का मुखर विरोध करने वाले छात्र-युवा, और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के यहाँ छापेमारीकर उनका दमन तेज हो गया है। बीते सालों में सरकार की आलोचना करने वाले वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, स्टेन स्वामी, गौतम नौलखा, उमर खालिद जैसे कवि, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता पिछले लंबे समय से जेलों में सड़ रहे है।

इसके विपरीत हिंदुत्ववादी विचारधारा के खिलाफ आलोचनात्मक रुख रखने के कारण मानवाधिकार कार्यकर्ता व पत्रकार गौरी लंकेश की 5 सितंबर, 2017 के रात बेंगलुरु स्थित घर के पास ही गोली मार दी गई थी। इसी तरह एमएम कलबुर्गी, गोविंद पानसरे, नरेंद्र दाभोलकर आदि की भी हत्या आरएसएस पोषित तत्वों द्वारा हुई लेकिन हत्यारे बेखौफ हैं।

आज बेहद खुले दबंगाई से NIA, CBI, ED सहित सभी सरकारी एजेंसियां सरकार निजी हथियार के रूप में काम कर रही हैं। इनका इस्तेमाल सरकार या सरकारी नीतियों का विरोध करने वालों के दमनकारी यंत्र के रूप में हो रहा है।

ऐसे में जनवादप्रिय सभी नागरिकों को छात्र, मज़दूर, किसान, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं के यहां छापेमारी और दमन का पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए।