स्मृति सभा : लाल बहादुर वर्मा न्याय, समता, बंधुत्व और समाजवाद के प्रति समर्पित थे

जूम मीटिंग में मित्रों ने अपनी स्मृतियाँ साझा कीं
कोविड की जंग हारकर अलविदा हुए कॉमरेड लाल बहादुर वर्मा की याद में 17 मई को जूम पर हुई बैठक में तमाम पुराने नए साथियों ने अपनी स्मृतियां साझा की और उनके अधूरे कार्यों को आगे बढ़ाने का वायदा किया। सबकी बातों का सार था कि वे सच्चे कॉमरेड थे, उनकी आंखों में न्याय, समता, बंधुत्व और एक समतामूलक समाज का ख्वाब था, जिसके लिए वे अंत तक सक्रिय रहे।
प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा ने संचेतना सांस्कृतिक मंच से जन संस्कृत की एक नई परिभाषा गढ़ी थी। ‘भंगिमा’ पत्रिका से जहाँ उन्होंने जन साहित्यकारों की पीढ़ी तैयार की, वहीं ‘इतिहास बोध’ पत्रिका के मार्फत उन्होंने इतिहास की एक नई दृष्टि दी।
उन्होंने यूरोप के इतिहास से लेकर इतिहास की विविध किताबों, तमाम छोटी-छोटी पुस्तिकाओं के साथ मानव मुक्ति कथा, भारत की जन कथा, अधूरी क्रांतियों का इतिहास बोध, क्रांतियाँ तो होंगी ही, ‘मई, अडसठ पेरिस, उत्तर पूर्व, हमारी धरती मां जैसी अनेक कृतियों का सृजन किया। हावर्ड फास्ट, जैक लंडन, एरिक हॉब्सबॉम, क्रिस हरमन, आर्थर मारविक, मिजेराब्ल आदि की महत्वपूर्ण कृतियों का अनुवाद किया।
17 मई को कॉमरेड वर्मा के निधन की अप्रत्याशित खबर ने तमाम मित्रों को शोकाकुल कर दिया। कोविड-19 और पाबंदियों के कठिन दौर और विपदा की इस घड़ी में जब मिलकर दुख साझा करने की स्थिति नहीं थी, तो कुछ पुराने साथियों ने जूम मीटिंग द्वारा एक स्मृति सभा का आयोजन किया।
बैठक की शुरुआत वर्मा जी के सबसे पुराने साथियों में से एक कॉमरेड रवि सिन्हा ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि 1973 में डॉक्टर वर्मा से पहली मुलाकात प्रगाढ़ता में बदलती गई और वैचारिक एकता के साथ अब तक बरकरार रही। उन्होंने कॉमरेड वर्मा को अपना पहला गुरु बताया और कहा कि वर्मा जी ने उनकी ज़िंदगी की धारा को ही मोड़ दिया।
रंगकर्मी कॉ. शमशुल इस्लाम और कॉ. नीलिमा ने उनकी श्रद्धांजलि में ‘लाल झंडा लेकर कॉमरेड आगे बढ़ते जाएंगे’ गीत प्रस्तुत किया।
कॉ. शमशुल ने आज के दौर की त्रासदी बताते हुए कहा कि रमेश उपाध्याय से लेकर वर्माजी की मौत हत्याएं हैं। उन्होंने 80 के दशक में राष्ट्रीय जनवादी सांस्कृतिक मंच के दौर को याद किया। कहा कि एक विकट दौर में वर्मा जी ने महज 3 दिन में ताला जुबान पर नाटक लिखकर प्रस्तुत किया वह बेजोड़ था। उन्होंने उनके भगत कथा, अंबेडकर कथा के नए प्रयोगों की भी चर्चा की।
पदमा सिंह में कहा कि उन्होंने बहुतों को तैयार किया, युवाओं की पीढ़ियां तैयार की। छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सबको जोड़ लेना, सब के लिए काम निकाल लेना, वर्मा जी की खासियत थी। अशोक पांडे ने बताया कि वर्मा जी के पास 20 साल आगे की लंबी योजना थी और उनके कई काम अधूरे रह गए। वे जीवन को लेकर उत्साहित थे और फासीवाद पर काम करना चाहते थे।
साहित्यकार विनोद शाही ने कहा कि पिछले दिनों इस विकट स्थिति में भी वर्मा जी किसान आंदोलनों स्थलों विभिन्न सीमाओं पर पहुंचे और संघर्ष के साथ अपनी सक्रिय भागीदारी दर्ज कराई जो उनकी जीवटता की मिसाल है। वह धरती, पर्यावरण और मनुष्य को बचाने के लिए सतत सक्रिय रहे। उन्होंने सुझाव दिया कि वर्मा जी याद को मैत्री दिवस के रुप में मनाया जाए।
पत्रकार पंकज श्रीवास्तव ने कहा वे मनुष्य को जोड़ते थे और बेहतर मनुष्य बनाने का प्रयास करते थे। मानवीय भावनाएं जगाने, बेहतर दुनिया को बनाने के लिए सतत प्रयासरत थे। पिछले दिनों गाजीपुर बॉर्डर पर साथ जाने का वर्णन करते हुए उनके व्यक्तित्व पर उन्होंने रोशनी डाली।
रंगकर्मी राकेश कुमार ने कहा कि वह दूसरों की बात सुनते थे और उसी में से नए सूत्र निकालते थे। इस दौर में लोकतंत्र में यकीन रखने वालों को फासीवाद के खिलाफ एक जुट करना ज़रूरी है।
मुकुल ने कहा कि कॉमरेड वर्मा इंसान गढ़ने वाले एक शानदार कलाकार और जनशिक्षक थे। वर्मा जी में सहजता पैदा करने का बेजोड़ गुड़ था और मित्रता पर उनका विशेष जोर था। एंगेल्स के जन्मदिवस को मित्रता दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत उन्होंने ही की थी।
विकास नारायण राय ने कहा कि वर्मा जी ने हमको बनाया है और हम सब ने मिलकर वर्मा जी को बनाया है। वे सबके लिए सहज थे। इसी वजह से कई पीढ़ियों के प्रशंसक आज यहां मौजूद हैं। अशोक मेहता ने कहा कि दोस्त की पहचान कराने वाला चला गया। अधिवक्ता राकेश गुप्ता ने वर्मा जी के शब्दों में कहा कि वारिस होने का मतलब विरासत को आगे बढ़ाना है।
ओम प्रकाश सिन्हा ने उन्हें ईमानदार शिक्षक और सबका दोस्त बताया। कहा कि वैचारिक प्रतिबद्धता को कभी वर्मा जी ने पांव की बेड़ी नहीं बनने दी। वह विचारधारा को एक रंग में रंगने की जगह विविध रंगों के समर्थक थे।
सुभाष गाताडे ने कहा कि वर्मा जी ने पीढ़ियों को तैयार किया। हमने साथ साझा सांस्कृतिक अभियान की मुहिम शुरू की थी आज यह अभियान अधूरा है हमें मिलजुल कर आगे बढ़ना होगा। अलग-अलग लोगों के पास वर्मा जी द्वारा दिए गए जो अधूरे काम है सबको मिलकर उसे आगे बढ़ाना होगा।
सभा में बिंदा जी, कुमार मुकेश, संतोष यादव, विनायक भिषिकर, सुनील प्रहरी, राघवेंद्र सिंह, कुमुद जी, बीके राय, सरोश अनवर, राजेश मल्ल, अमित भौमिक, अनिल सिंह, कंचन सिन्हा आदि ने भी अपनी स्मृतियों को साझा किया।
जबकि महेंद्र पाल ने ‘जिंदगी लड़ती रहेगी’ शुभेंदु जी ने फ़ैज़ का नज़्म ‘आपकी याद आती रही रात भर’ तथा रुपाली ने ‘भागो नहीं दुनिया को बदलो’ गीत प्रस्तुत किए।
स्मृति सभा का संचालन राजेश उपाध्याय ने किया। बीच-बीच में उन्होंने वर्मा जी से जुड़े कई प्रसंग भी साझा किया और बताया कि आगे योजनाओं को लेकर बैठक भी की जाएगी।
स्मृति बैठक में अनुमान से काफी ज्यादा लोग उपस्थित हुए। बैठक की क्षमता 100 की थी, इसलिए बहुत से साथी मीटिंग में भागीदारी नहीं कर सके, लेकिन सबकी भावनाएं वर्मा जी के साथ जुड़ी रही।