सिलीगुड़ी: जमीन-जीविका-अधिकार रक्षा में कन्वेन्शन; ‘टी टूरिज्म के बहाने जमीनों की लूट बंद हो!’

सम्मेलन में संयोजक टीम गठित हुई और 10 सूत्रीय मांगों को लेकर दार्जिलिंग पहाड़-तराई-डुवर्स के विभिन्न बागानों-बस्तियों, गांवों-शहरों में “जमीन जीविका पर्यावरण बचाओ अभियान” चलेगा।
सिलीगुड़ी। दार्जिलिंग पहाड़-तराई-डुवर्स क्षेत्र के श्रमजीवी निवासियों को जमीन का अधिकार नहीं है, दूसरी तरफ जमीन लूटने का धंधा जोरों पर है। इसी क्रम में पश्चिम बंगाल सरकार ने चाय बागानों की 30% जमीन को टी टूरिज्म में सौंप देने की घोषणा की है। इससे लोगों में चिंता और आक्रोश गहरा हो रहा है।
ऐसी स्थिति में 30 मार्च 2025 को पहाड़-तराई-डुवर्स के पर्यावरण और श्रमजीवी लोगों के जमीन-जीविका-अधिकार की रक्षा में सिलीगुड़ी के मित्र सम्मिलनी सभागृह में, कन्वेन्शन आयोजित हुआ। इस गण-कन्वेन्शन में पाँच सौ से अधिक लोग एकत्रित हुए थे।
कन्वेन्शन में 10 सूत्रीय माँगपत्र तैयार हुआ, चार सूत्रीय कार्ययोजना बनी, “जमीन जीविका पर्यावरण बचाओ अभियान” के लिए तत्काल कार्यक्रम की रूपरेखा स्वीकृत हुई तथा इसके क्रियान्वयन के लिए संयोजक टीम और सलाहकार समिति के प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किए गए।

‘टी टूरिज्म‘ के नाम पर क्या हो रहा है?
कॉन्वेंशन में वक्ताओं ने कहा कि दार्जिलिंग पहाड और सटे हुए डुवर्स-तराई के चाय श्रमिकों के लिए न्यूनतम मज़दूरी लागू करने का त्रिपक्षीय समझौता 2015 में होने के बावजूद आज तक लागू नहीं हुआ है, या कानूनी रूप से मिलने वाले छाता-जूते-लकड़ी-चिकित्सा सुविधाएँ धीरे-धीरे गायब होती जा रही हैं। इन सबके साथ, पिछले एक दशक में, चाय क्षेत्र में एक शब्दावली मजबूती से स्थापित हो गई है – ‘टी टूरिज्म’।
टी टूरिज्म की शुरुआत चाय बागानों के परित्यक्त प्रबंधक बंगलों को मरम्मत करके पर्यटन के लिए उपयोग करने के एक हानिरहित प्रस्ताव के साथ हुई थी।
वह प्रस्ताव अब एक जहरीले रूप में सामने आया है– ‘चाय बागानों की 30% जमीन को टी टूरिज्म और अन्य व्यवसायों के लिए उपयोग करने की सरकारी नीति‘ के रूप में। दूसरी ओर, यहाँ प्राचीन काल से रहने वाले चाय श्रमिकों के आवास या खेती का छोटे से जमीन का पट्टा भी आज तक नहीं मिला है।
वक्ताओं ने बताया कि सिर्फ चाय बागान ही नहीं सिनकोना बागानों की भी वही हालत है। चाय के लिए तो मालिकों या सरकारों को लाभ-हानि का हिसाब रखने की बाध्यता है। लेकिन संकटग्रस्त सिनकोना बागानों के लिए सरकार की क्या योजना है? निवासियों के जमीन के पट्टे कहाँ हैं? कोई जवाब नहीं! मानो वहाँ कोई इंसान ही नहीं रहता! मानो पर्यटक आने से ही केवल सिनकोनावासी बचेंगे, और सूखते हुए सिनकोना उद्योग पर सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी।
मालिकों को जमीन की लूट मचाने देने की योजना
पहाड़-तराई-डुवर्स क्षेत्र में चाय और सिनकोना बागानों से बाहर निकलने पर छायादार वनगाँवे पड़ते हैं। 2006 में वन अधिकार अधिनियम पारित होने के बावजूद, वनवासियों के वास्तविक पूर्ण अधिकार आज भी अधूरे हैं। प्राप्त अधिकारों के खोने के साथ-साथ जंगल-जमीन-जीविका सब कुछ खोने का डर वन-गाँवों को सता रहा है।
इस पूरे पहाड़-तराई-डुवर्स क्षेत्र के नदी-चर, नदी-किनारे, शहरी बस्तियाँ या जनपदों के किनारे रहने वाले लोगों की स्थिति भी दयनीय है। एक तरफ जमीन का अधिकार नहीं है, दूसरी तरफ जमीन लूटने का खतरा है।
ऐसे में, चाय बागानों की 30% जमीन को टी टूरिज्म में सौंप देने की सरकारी घोषणा एक बुलंद आह्वान के रूप में सामने आई है। पश्चिमबंगाल राज्य सरकार चाय श्रमिकों को 5 डेसिमल जमीन का पट्टा देने का ढिंढोरा पीट रही थी। लेकिन श्रमिक परिवारों को जितनी आवास और खेती योग्य जमीन है, उतनी ही चाहिए। इसलिए ‘as is where is’ (जैसा है जहाँ है) की आवाज हर तरफ उठने लगी। अन्यथा 250 रुपये दैनिक मज़दूरी पाने वाला चाय श्रमिक घर कैसे चलाएगा?
नई सरकारी नीति पर चाय क्षेत्र में संदेह
वक्ताओं ने कहा कि इस सरकारी नीति पर चाय क्षेत्र में संदेह उत्पन्न हो रहा था – 5 डेसिमल ही क्यों? चाय-सुंदरी योजना के रद्द होने के बाद, सरकारी पक्ष 5 डेसिमल जमीन देने के लिए इतनी जल्दी में क्यों था?
जब 30% जमीन पूँजीपतियों को देने की घोषणा हुई, तो दूध का दूध पानी का पानी हो गया। श्रमिकों को थोड़ी सी जमीन में बांधकर मालिकों को जमीन की लूट मचाने देना – यही योजना है!
लेकिन, दो-ढाई दशक पहले, चांदमणि चाय बागान के श्रमिक प्रतिरोध को गोली मारकर शॉपिंग मॉल और हाउसिंग व्यवसाय का दबदबा शुरू हुआ था, उसे यहाँ के लोग भूले नहीं हैं। सिलीगुड़ी के पास दागापुर, माटीगाड़ा, न्यू चमटा, निश्चिंतपुर चाय बागान लगातार ऐसे निर्माणों से भर रहे हैं। लोग भूल नहीं पा रहे हैं, क्योंकि वन-गाँवों की जमीन वन अधिकार अधिनियम के कारण वनवासियों के हाथ में आने के बावजूद बाहर के धनी लोगों को वे लीज पर दी जा रही है।

जन-कन्वेन्शन: व्यापक भागीदारी; उठी प्रतिरोध की आवाज़
इसलिए, यहाँ के बागान श्रमिकों, वनवासियों और शहर के शुभचिंतक नागरिकों को अशुभ संकेत दिखाई देने लगे थे। उसी चिंता से 30 मार्च 2025 को सिलीगुड़ी के मित्र सम्मिलनी सभागृह में, कन्वेन्शन आयोजित हुआ। पहाड़-तराई-डुवर्स के पर्यावरण और श्रमजीवी लोगों के जमीन-जीविका-अधिकार की रक्षा में आयोजित इस गण-कन्वेन्शन में पाँच सौ से अधिक लोग एकत्रित हुए थे।
सिलीगुड़ी-जलपाईगुड़ी-अलीपुरद्वार के नागरिक समाज के विभिन्न लोग, विभिन्न सांस्कृतिक व्यक्तित्वों के साथ साथ, पहाड़ के लॉन्गव्यू, मार्गेट्स होप, बालासन, रिंगटोंग, पेशोक चाय बागान, लाटपंचार और रोंगो सिनकोना बागान या गोरुबथान के चाय बागान के श्रमिक-कर्मचारी और युवा-वृद्ध लोग थे।
तराई के त्रिहाना, शचिंद्र चंद्र, ताइपु, गंगाराम, हासखोवा आदि सेट बागानों के श्रमिकों के साथ-साथ राजगंज के नए बागानों के श्रमिक भी थे। तराई के विभिन्न स्थानों के वन बस्तियों के लोग भी थे।
डुवर्स के कालचीनी, आटियाबारी, भातखावा, दलमोड़, रामझोरा, दलगांव, हंटापारा के चाय बागान श्रमिकों के साथ-साथ बारबिशा, रसिकबिल, राजाभातखावा, चिलापाता जैसे कई वन बस्तियों के लोग थे।
विभिन्न ट्रेड यूनियनों के नेता थे, वकीलें थे। पत्रकार, लेखक, मानवाधिकार कार्यकर्ताएं भी थे। गोर्खा-आदिवासी-राभा-कोच-मेच-बंगाली-राजवंशी लोग एकजुट होकर इस विशाल भूमि को जमीन लूटने वालों से बचाने की शपथ ली।
कन्वेन्शन की शुरुआत प्रमुख संयोजक छेवांग योन्जन के आह्वान पर प्रेसिडियम गठन से हुई। प्रेसिडियम में पार्थ चौधरी, गौतम चक्रवर्ती, एल.एम. शर्मा, लालसिंह भुजेल, सुंदर सिंह राभा, उषा राई, बिप्ती उराँव, तापस गोस्वामी, किरण कालिंदी, पलक चक्रवर्ती बैठे थे।
प्रेसिडियम की ओर से लालसिंह भुजेल ने सभा का संचालन किया। सम्मेलन का प्रस्ताव अभिजीत मजूमदार ने प्रस्तुत किया।
सभा में पार्थ चौधरी, सुंदर सिंह राभा, उषा राई, किरण कालिंदी, पलक चक्रवर्ती, सुकांत नाहा, वीरेंद्र रसाइली, देवप्रकाश प्रधान, जियाउल आलम, दिलीप दास, प्रभा राई, भूपेन छेत्री, अमन दार्नाल आदि ने भाषण दिए।
सभा में पहाड़ के लाली गुरास के साथियां और वन बस्तियों के इमानुएल राभा और समुदाय ने संगीत प्रस्तुत किया। लॉन्गव्यू बागान की ऋत्विका ने कविता प्रस्तुत की।
सभा के अंतिम दौर में अभिजीत राय और शमीक चक्रवर्ती ने कार्यक्रम प्रस्तुत किया। तापस गोस्वामी ने समापन भाषण दिया।
सम्मेलन का प्रस्ताव और तत्काल कार्यक्रम तथा संयोजक टीम और सलाहकार समिति के प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किए गए।
कन्वेन्शन से मांग उठी –
1. तुरंत नए और सही तरीके से इस क्षेत्र का भूमि सर्वेक्षण करके चाय बागान सहित सभी क्षेत्रों का मौजा नक्शा बनाया जाना चाहिए।
2. उक्त मौजा नक्शे के आधार पर वन अधिकार अधिनियम का उचित कार्यान्वयन किया जाना चाहिए और “as is, where is” के आधार पर चाय और सिनकोना श्रमिकों को जमीन का पट्टा दिया जाना चाहिए।
3. “टी टूरिज्म एंड एलाइड बिजनेस पॉलिसी” को रद्द किया जाना चाहिए, चाय बागानों की जमीन पर किसी अन्य व्यवसाय की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ग्राम सभा की अनुमति के बिना वन गांवों में कोई व्यवसाय या निर्माण कार्य नहीं किया जाना चाहिए।
4. वन अधिकार अधिनियम के अनुसार सामुदायिक वन संपत्ति अधिकार को स्वीकार किया जाना चाहिए।
5. वन गांवों से विस्थापन नहीं किया जाना चाहिए।
6. टी एक्ट 1953 के स्थगित धाराओं को पूर्व स्थिति में वापस लाया जाना चाहिए। श्रमिक हित विरोधी श्रम संहिता को रद्द किया जाना चाहिए और श्रमिक हित में प्रचलित श्रम कानूनों को आवश्यक सुधार करके उचित रूप से लागू किया जाना चाहिए।
7. बंद, परित्यक्त और निष्क्रिय चाय बागानों को चालू किया जाना चाहिए और सिनकोना बागानों के पुनरुद्धार के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए।
8. चाय श्रमिकों के न्यूनतम वेतन सहित श्रमजीवी लोगों के सभी कानूनी अधिकार सुनिश्चित किए जाने चाहिए।
9. खेती योग्य जमीन की रक्षा के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए।
10. डुवर्स-तराई-पहाड़ के प्रकृति-पर्यावरण को नष्ट करने वाले सभी परियोजनाओं और गतिविधियों को तुरंत बंद किया जाना चाहिए।
सम्मेलन में लिए गए निर्णय-
1. सम्मेलन में पारित मूल प्रस्ताव के आधार पर 10 सूत्रीय मांगों को लेकर पहाड़-तराई-डुवर्स के विभिन्न बागानों-बस्तियों, गांवों-शहरों में “#जमीन_जीविका_पर्यावरण_बचाओ_अभियान” चलाया जाएगा।
2. इस अभियान के प्रारंभिक चरण में जमीनी स्तर से ब्लॉक, जिला स्तर पर बैठक, सभा, सम्मेलन आदि आयोजित करने की पहल की जाएगी।
3. बागान श्रमिकों, वन ग्राम निवासियों, कृषि श्रमिकों या श्रमजीवी लोगों के किसी विशेष समूह के चल रहे आंदोलनों में नागरिक समाज और श्रमजीवी लोगों के अन्य समूहों को इकट्ठा करना, व्यापक एकता-सहयोग बनाना अभियान का मुख्य उद्देश्य होगा। कोई भी श्रमिक संगठन, जन संगठन या मोर्चा के न्यायोचित आंदोलन में यह अभियान सहयोगी शक्ति के रूप में भूमिका निभाएगा।
4. यह सम्मेलन उपरोक्त अभियान या आंदोलन चलाने के लिए सर्वसम्मति से निम्न #संयोजक_टीम (#कोऑर्डिनेटिंग_टीम) का गठन करता है:
5. छेवांग योन्जन – संयोजक, 2) किरण कालिंदी, 3) लालसिंह भुजेल, 4) वीरेंद्र रसाइली, 5) स्वरूप साहा, 6) सुंदर सिंह राभा, 7) सुमंती एक्का, 8) भूपेन छेत्री, 9) सुकांत नाहा, 10) सेमिका लामा, 11) शंकर पाल, 12) देबाशीष शर्मा, 13) अनुपा तामांग।
सम्मेलन में यह भी निर्णय लिया गया कि संयोजक टीम निम्न #सलाहकार_समिति की सलाह से संयुक्त रूप से सभी गतिविधियों का संचालन करेगी:
1. कमल कृष्ण बनर्जी, 2) सुब्रत गांगुली, 3) अजित राय, 4) विमल टोप्पो, 5) एल.एम. शर्मा, 6) पार्थ चौधरी, 7) गौतम चक्रवर्ती, 8) तापस गोस्वामी, 9) जियाउल आलम, 10) पलक चक्रवर्ती, 11) दिलीप दास, 12) गौतम गुहराय, 13) परितोष दास, 14) रतन दे, 15) अभिजीत राय, 16) अभिजीत मजूमदार, 17) सौमित्र घोष, 18) शमीक चक्रवर्ती, 19) मौमिता आलम।
सम्मेलन ने उपरोक्त संयोजक टीम और सलाहकार समिति को आवश्यक को-अप्सन का अधिकार प्रदान किया।
बड़ी लड़ाई की तैयारी रहेगी जारी…
आयोजकों ने बताया कि आज एक महत्वपूर्ण यात्रा शुरू हुई। शपथ लेकर, संतोष लेकर, एकजुट लड़ाई की उम्मीद लेकर सम्मेलन के अंत में सभी लोग अपने गंतव्य की ओर लौट गए। ज्यादातर लोग सुबह निकले थे, देर रात घर पहुंचेंगे। कल से फिर लड़ाई शुरू होगी – रोजी-रोटी की, और जीवन-जीविका-अधिकार-पर्यावरण बचाने की। और बड़ी लड़ाई की तैयारी जारी रहेगी।