शुक्रिया कोरोना : इस सप्ताह की कविताएं !

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शुक्रिया कोरोना / अज्ञात

शुक्रिया कोरोना
तुमने बहुत बुरा किया, पर
मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करता हूँ
इसलिए नहीं
कि तुमने असंख्य निरपराधियों के साथ
कुछ अपराधियों को भी मार डाला
मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करता हूँ

हालांकि तुमने जितने लोगों को मारा
उससे कहीं ज्यादा लोग
कई तरह की बीमारियों से मर जाते हैं
विनाशक तुम्हीं सर्वाधिक हुए, परंतु
मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करता हूँ

हालांकि
तुमने जितनों को मारा
उससे कहीं ज्यादा लोग दुर्घटना ग्रस्त हो मर जाते हैं
हालांकि तुम्हारी वजह से जितनी जानें गईं
उससे कहीं ज्यादा लोग आत्महत्याएं कर मर जाते हैं
सर्दी, गर्मी, बरसात और
भूख़ से मर जाने वालों की तादात तो बहुत बहुत ज्यादा है
मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करता हूँ

शुक्रिया कोरोना
तुम्हारे कारण हमारी हवाएँ स्वच्छ हुईं
तुम्हारे कारण
हमारे बच्चे
नीला ,निरभ्र आकाश देख सकते हैं
तुम्हारे कारण
मैं अपने घर की छत पर खड़े होकर
अरावली पर्वतमाला देख सकता हूँ
तुम्हारी बदौलत ही मेरे दोस्त
सैकडों कोस दूर से
देख सकते हैं
धवल हिमालय!
तुम्हारी कृपा से
हम परिचित हुए कई – कई रंगों से
मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करता हूँ

शुक्रिया कोरोना
मैं वाक़ई तहेदिल से
तुम्हारा शुक्रिया अदा करता हूँ
तुम्हारी वज़ह से ही
साफ हुई हमारी दृष्टि
सारी शंकाएं एक बार फिर निर्मूल हुईं
मानव जाति के दुश्मन के चेहरे
इतने स्पष्ट एक बार फिर दिखाई दिए
मैं बिलाशक पहचान सकता हूँ
उन हत्यारों को
जिनकी लपलपाती लोभी जिह्वा से तुम्हारी उत्पति हुई है !
शुक्रिया कोरोना !!


दुश्मन / हूबनाथ

घर में बस जाए
दुश्मन
रहने लगे साथ
निकलने का नाम न ले
और सामर्थ्य न हो
उसे निकाल भगाने का
तो उससे दोस्ती कर लें
आसान तो नहीं
और कोई राह भी तो नहीं
रोज़ की खटखट
उठापटक खिचखिच से
बेहतर है
थाम लें हाथ उसका
जानें स्वभाव, फ़ितरत
आदत, रुचि और संस्कार
और ढालें ख़ुद को
उसके अनुसार
क्योंकि
वह तो ढलने से रहा
दुश्मन जो ठहरा
ऐसा नहीं कि इससे पहले
कोशिश ही नहीं की हमने
कितनी ख़ूबसूरती से
निभाए जा रही हैं
लाखों औरतें
दुश्मन सरीखे
नालायक पतियों से
और बच्चे भी ज़न रही हैं
करोड़ों लोग
निभा ही तो रहे हैं
कमीने नेताओं और
भ्रष्ट व्यवस्था से बख़ूबी
अपनी ही बुरी आदतों संग
नहीं जी रहे हम ख़ुशी से?
हमें तो आदत है
दुश्मनों का साथ निभाने की
दोस्त नहीं होते क्या
दुश्मनों से बदतर?
निभ तो रहा ही है
हम तो हैजा टीबी कैंसर
भुखमरी अकाल बाढ़
दंगे युद्ध झूठ बेईमानी
बेशर्मी बलात्कार सबसे
न जाने कब से
बड़े बढ़िया ढंग से
निभा ही तो रहे हैं
यह तो बस
एक मामूली सा वायरस है
निभ जाएगी इससे भी
थोड़ी तकलीफ़ तो होगी ही
काटता तो नया जूता भी है
उसके बाद तो हम ही
रौंदते हैं उसे रात दिन
और सबसे बड़ी बात
दोस्ती कर लेने से
असर दुश्मनी का
कम होने लगता है
धीरे धीरे!


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देवल / राजेश मल्ल

शाम सुबह
आते जाते नहलाता है सूरज
देवल को।

पुराना वट,
खांसता,हांफता ,सांस लेता और ऊंघता
समांले रहता है रंगीन धागों में लिपटी
हजारों लोगों की याचनाएं।

सुहागिनें देतीं हैं फेरा
पति पुत्र के दीर्घायु के लिए
और कुआंरियां टेकती हैं माथा
अच्छे वर की अभिलाषा में।

हजारों धागों में बंधी
लहराती याचनायें रोज़ लौट जाती हैं,
बनकर यातनाएं,
हर घर आंगन में।

बहती रहती है,महान संस्कृति
याचनाओं और यातनाओं के बीच।


वे आ रहे हैं सपने बोने / महेश पुनेठा

वे जो तुम्हारी आँखों में
सपने बोने की बात कर रहे हैं
तुम समझ सकते हो
वे तुम्हारी आँखों को क्या समझ रहे हैं

वे जानते हैं अच्छी तरह
जैसा बोया जाएगा बीज
वैसी ही लहलहाएगी फसल

वे यह भी जानते हैं
सबसे फायदेमंद कौनसी फसल है उनके लिए

दरअसल वे
अपने सपनों के बीज
तुम्हारी आँखों में
उगाना चाहते हैं
अपने सपनों को तुम्हारे
जताना चाहते हैं

वे तुम्हारे खेत में
अपने बीज-उर्वरक-कीटनाशक डालकर
भरपूर फसल निचोड़ना चाहते हैं
उन्हें खेत की उर्वरता
और पर्यावरण की नहीं
अपनी उत्पादन की चिंता है

सावधान!
खेत मत होने देना अपनी आँखों को !


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