गुड़गाँव में मनाया गया सावित्रीबाई जन्मोत्सव

गाने, नाटकों, और खेल खेल में बच्चों ने उठाए समाज और शिक्षा में भेदभाव, गैरबराबरी और असम्मान की हकीकत पर सवाल!
ज्ञानज्योति सावित्रीबाई फुले के 190 वें जन्मदिवस पर गुड़गाँव में कार्यशील सावित्रीबाई जन्मोत्सव समिति और सहयोगी ‘शिक्षा के साथी’ ने मिल कर 31 दिसंबर से 2 जनवरी को 3 दिवसीय कार्यशाला और 3 जनवरी को एक दिवसीय “सबरंग मेला” का आयोजन किया। पिछले 4 सालों से यह समिति सावित्रीबाई जन्मोत्सव समारोह के आयोजन के द्वारा गुड़गांव की मेहनतकश आबादी, व खास तौर से बच्चों के बीच सावित्रीबाई और उनके साथियों के विचारों और संघर्षों की जानकारी बढ़ाने का काम करती आई है।
इस साल भी मूसलाधार बारिश और कडाके की ठण्ड के बावजूद विभिन्न बस्तियों और स्कूलों से बच्चे अपने परिवार वालों के साथ कार्यक्रम के लिए एक जुट हुए और ऊर्जा से भरी प्रस्तुतियां पेश की, जिनमे बच्चों द्वारा स्वयं तैयार किए गए दो नाटक, और सामूहिक नाच और गाने शामिल रहे। प्रस्तुतियां मुख्य तौर से लड़कियों के जीवन और शिक्षा में आने वाली चुनौतियाँ और मज़दूर परिवारों से आने वाले बच्चों के साथ होने वाले भेदभाव पर केन्द्रित रहीं।
बीते साल में कोरोना महामारी और शिक्षा व रोज़गार के विषय में सरकार की नीतियों के कारण देश की मज़दूर आबादी नारकीय परिस्थितियों से गुज़री है, जिसका गंभीर असर बच्चों पर पड़ा है। स्कूलों के बंद किए जाने और ऑनलाइन शिक्षा के इस्तेमाल, प्रवासी मज़दूरों का शहरों से गाँव और वापस गाँव से शहर आना, माँ बाप की आर्थिक असुरक्षा मज़दूर मेहनतकश परिवारों के बच्चों की पहले से ही मौजूद परेशानियों को और बढ़ा रहा है। ऐसे में शिक्षा और गैरबराबरी के सवाल बच्चों के जीवन में भी और तीखे हो गए हैं।
सम्मानजनक जीवन और शिक्षा मेहनतकश जनता के लिए हमेशा से ही संघर्ष का मुद्दा रहे हैं। वर्तमान स्कूली शिक्षा की प्रक्रिया मज़दूर परिवार के बच्चों को अज्ञान और गुलामी के जीवन में ही वापस धकेलती है, उन्हें सिखाती है कि वे काबिल नहीं है। किन्तु कार्यक्रम के ज़रिये बच्चों ने सावित्री बाई, फातिमा शेख, भगत सिंह जैसे शहीदों के जीवन के बारे में जाना, जिन्होंने सामाजिक गैर बराबरी को चुनौतियों दी है, और अपने दोस्तों परिवारों के साथ उनपर अपने विचारों को बाटा। सावित्रीबाई और फातिमा शेख के संघर्षों के उदाहरण से आज के समय में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव पर भी सवाल उठाये गए।