यूनियन बनाने की मांग को लेकर सैमसंग कर्मचारी हड़ताल पर

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तमिलनाडु में पिछले 11 दिनों से दक्षिण कोरिया की जानीमानी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी सैमसंग के लगभग डेढ़ हजार कर्मचारी हड़ताल पर हैं. इससे कंपनी में प्रोडक्शन का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है. भारत में सैमसंग की दो फैक्ट्रियां हैं. इनमें से एक चेन्नई शहर में है, जहां लगभग दो हज़ार कर्मचारी काम करते हैं. इस फैक्ट्री में होम अप्लायंसेज जैसे प्रोडक्ट बनाए जाते हैं. भारत में कंपनी की 12 अरब डॉलर की कमाई में इस फैक्ट्री का लगभग एक तिहाई योगदान है.

कर्मचारियों की मांग है कि कंपनी प्रबंधन नई बनी लेबर यूनियन- ‘द सैमसंग इंडिया लेबर वेलफे़यर यूनियन’ (एसआईएलडब्ल्यूयू) को मान्यता दे. उनका कहना है केवल यूनियन ही कंपनी से बेहतर वेतन और काम के घंटे पर बातचीत करने में मदद कर सकता है.

सैमसंग में हाल के वर्षों में हुई ये सबसे बड़ी हड़तालों में से एक है. ये हड़ताल ऐसे दौर में हो रही है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में मैन्युफैक्चरिंग के लिए विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की कोशिश में लगे हैं. मोदी दुनिया के सामने भारत को एक नए मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर पेश करना चाहते हैं. वो चाहते हैं कि दुनिया भर की कंपनियां अपना प्रोडक्ट चीन के बजाय भारत में बनाएं. इस बीच, सैमसंग इंडिया ने एक बयान जारी कर कहा है कि कर्मचारियों की बेहतरी उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है.

बयान में कहा गया है, “हमने चेन्नई प्लांट के अपने कर्मचारियों से बातचीत शुरू कर दी है ताकि सारे मुद्दे जल्द से जल्द सुलझा लिए जाएं.” लेकिन इसके कुछ घंटों पहले पुलिस ने बगैर इज़ाज़त के विरोध मार्च करने के आरोप में 104 कर्मचारियों को हिरासत में ले लिया था. हालांकि शाम को इन कर्मचारियों को छोड़ दिया गया. श्रमिक संगठन ‘सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन’ यानी सीटू के सदस्य ए सौंदर्यराजन ने कहा, ”कर्मचारी तब तक अपनी हड़ताल ख़त्म नहीं करेंगे जब तक कि उनकी मांगें पूरी नहीं कर दी जातीं.”

सीटू मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समर्थित ट्रेड यूनियन है. सीटू ने फैक्ट्री की नई लेबर यूनियन को अपना समर्थन दिया है. उन्होंने कहा, “कर्मचारियों की तीन प्रमुख मांगें हैं- सैमसंग नई ट्रेड यूनियन को मान्यता दे, प्रबंधन बेहतर वेतन और काम के घंटे तय करने के लिए कर्मचारियों के साथ समूह में बात करे और वो दूसरी ट्रेड यूनियनों की बात न सुने क्योंकि सैमसंग इंडिया के 90 फीसदी कर्मचारी नई लेबर यूनियन एसआईएलडब्ल्यूयू के सदस्य हैं.”

सीटू के मुताबिक़ सैमसंग की इस फैक्ट्री में कर्मचारियों का औसत वेतन 25 हजार रुपये प्रतिमाह है. कर्मचारियों की मांग है कि अगले तीन साल में उनके वेतन में 50 फ़ीसदी की बढ़ोतरी की जाए. सीटू का कहना है कि “कर्मचारियों पर रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन और टीवी जैसे प्रोडक्ट्स को 10 से 15 सेकेंड के अंदर फिनिश करने का दबाव बनाया जा रहा है.” उन्हें लगातार चार से पांच घंटे काम करने को कहा जा रहा है वो भी उस माहौल में जहां इंडस्ट्रियल सेफ्टी की कमी है. वहीं सैमसंग इंडिया ने एक बयान में कहा, “हम इस बात का खंडन करते हैं कि कर्मचारियों को चार से पांच घंटे लगातार काम कराया जाता है. सभी कर्मचारियों को बीच-बीच में ब्रेक दिया जाता है.”

“कर्मचारी अपने टास्क के अनुसार काम करते हैं क्योंकि प्रोडक्ट्स को कन्वेयर लाइन से गुज़ारा जाता है. उन्हें किसी प्रोडक्ट को इतने कम समयसीमा में फिनिश करने की ज़रूरत नहीं है, जो कि वास्तविक नहीं है. हम फिर से कहना चाहते हैं कि हम सभी क़ानूनों और नियमों का पालन कर रहे हैं.”

लेकिन सौंदर्यराजन ने आरोप लगाया है कि कर्मचारियों पर इस बात का दबाव डाला जा रहा है कि वो नई यूनियन की सदस्यता छोड़ दें. इसके लिए कर्मचारियों के परिवार वालों को भी धमकियां दी जा रही है. सैमसंग इंडिया ने अपने बयान में कहा है, ”कंपनी इन सभी आरोपों से इनकार करती है. वो श्रम क़ानूनों का पूरी तरह पालन कर रही है.” इस बीच, तमिलनाडु के श्रम मंत्री सीवी गणेशन ने बताया है कि उन्होंने लेबर यूनियन के पदाधिकारियों को भरोसा दिलाया है कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए बातचीत जारी है.

उन्होंने कहा, ”हम कर्मचारियों की मांगें पूरी करेंगे.” सैमसंग फैक्ट्री के सामने धरने पर बैठे एक कर्मचारी सीजो (बदला हुआ नाम) ने कहा कि वो इसमें शामिल होने के लिए हर दिन ठीक सुबह आठ बजे यहां पहुंच जाते हैं और शाम पांच बजे तक यहां रहते हैं. यहां उनके साथ सैमसंग इंडिया की नीली यूनिफॉर्म में उनके जैसे सैकड़ों कर्मचारी बैठे हुए हैं. धरने पर बैठे कर्मचारियों के लिए भोजन और पानी का बंदोबस्त यूनियन कर रही है. कर्मचारियों के लिए टेंट भी लगाए गए हैं ताकि बाहर के लोग वहां न आ पाएं. यहां वॉशरूम नहीं हैं, इसलिए कर्मचारियों को यहां से बाहर जाना पड़ता है.

सीजो ने कहा, ”जब से फैक्ट्री लगी है तब से कर्मचारी बगैर कोई शिकायत किए काम कर रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से चीजें ख़राब होती जा रही हैं और अब हमें एक यूनियन की मदद की जरूरत है.” उन्होंने कहा कि महंगाई जिस हिसाब से बढ़ रही है उस हिसाब से वेतन नहीं बढ़ रहा है. इस वजह से घर खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है.

साल 2020 तक सैमसंग अपने कर्मचारियों को यूनियन बनाने की इज़ाज़त नहीं देती थी. लेकिन इसके चेयरमैन पर बाज़ार में पैठ बनाने के ग़लत तरीकों और रिश्वतखोरी के आरोप पर मुक़दमा चलने के बाद हालात बदल गए. भारत में करोड़ों कामगार ट्रेड यूनियनों के सदस्य हैं. ज्यादातर ट्रेड यूनियनों को वामपंथी दलों का समर्थन हासिल है. ये पार्टियां श्रम क़ानूनों को लागू करवाने और कर्मचारियों के लिए काम का बेहतर माहौल सुनिश्चित कराने के लिए अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करती हैं.

सौंदर्यराजन कहते हैं, ”विदेशी कंपनियां भारत में फैक्ट्री तो लगाती हैं लेकिन कामगारों के ट्रेड यूनियन बनाने और प्रबंधन के साथ काम की शर्तों और वेतन के लिए बातचीत के उनके अधिकारों का विरोध करती हैं. ये कंपनियां उनके अधिकारों से जुड़े स्थानीय श्रम कानूनों को मानने में हिचकिचाती हैं.” एप्पल और अमेजन जैसी कई जानी-मानी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में अपनी फैक्ट्रियां लगाई है. लेकिन कामगारों के अधिकार के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि इनमें काम करने वाले श्रमिकों में बहुतों को कम वेतन मिलता है.

अक्सर उनसे ज्यादा काम लिया जाता है. इसके अलावा उन पर कई बार श्रमिकों के अधिकारों पर शिकंजा कसने के आरोप लगाए जाते हैं. लेबर इकोनॉमिस्ट श्याम सुंदर कहते हैं कि “मल्टीनेशनल कंपनियां भारत जैसे विकासशील देशों में श्रमिकों को यूनियन बनाने से रोकने के लिए कई तरह की ह्यूमन रिसोर्सेज रणनीति अपनाती हैं.”

श्याम सुंदर कहते हैं, ”जैसे एक रणनीति तो ये है कि कंपनियां राजनीतिक दलों के समर्थन वाली यूनियनों में कर्मचारियों के शामिल होने का विरोध करती हैं. दरअसल कंपनी प्रबंधन चाहता है कि यूनियन पर कुछ हद तक उसका नियंत्रण रहे. यही वजह है वो ऐसी रणनीति अपनाती है.” श्याम सुंदर कहते हैं कि ये कंपनियां शुरुआत में अच्छा वेतन देकर युवा और गैर कुशल कामगारों की भर्ती करती हैं. ऐसी भर्तियों में अक्सर ग्रामीण इलाकों के कामगारों को तवज्जो दी जाती है.

उन्होंने बताया, “इनकी बहाली ट्रेनी के तौर पर होती है. भर्ती के समय उन्हें कुछ महीने में पर्मानेन्ट करने का वादा किया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं होता. कर्मचारियों को पुराने वेतन में काम करना पड़ता है या फिर वेतन में कम बढ़ोतरी होती है.”

कंपनियों में अस्थायी और कॉन्ट्रेक्ट पर कर्मचारियों की भर्ती तेज़ी से बढ़ी है. श्याम सुंदर कहते हैं कि कर्मचारी संगठित न हों और न ही यूनियन बनाएं इसके लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां अस्थायी भर्तियों की रणनीति अपनाती हैं. ताज़ा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ 2022 में भारत की फैक्ट्रियों में काम करने वाले पांच कामगारों में से तीन कॉन्ट्रेक्ट पर हैं, यानी भारत के उद्योगों में काम करने वाले 40 फीसदी श्रमिक अस्थायी कॉन्ट्रेक्ट पर काम हैं. श्याम सुंदर कहते हैं, ”अगर राज्य सरकारें इन कंपनियों को श्रम क़ानून लागू करने का दबाव डालती हैं तो ये कंपनी अपनी फैक्ट्री दूसरी जगह ले जाने और विस्तार की योजना रोकने की धमकी देती हैं.” वो कहते हैं, ”लेकिन कामगार चाहें तो अंतरराष्ट्रीय लेबर यूनियनों के प्रभाव का इस्तेमाल कर उन्हें अंतरराष्ट्रीय श्रम क़ानूनों का पालन करने के लिए बाध्य कर सकते हैं.”

(बीबीसी से साभार)