रिलायंस जूट मिल बंद, गुस्साए श्रमिकों ने बीएमएस और इंटक के ऑफिस जलाए

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के दौरान ही भट्टपाड़ा स्थित रिलायंस जूट मिल में मालिकों द्वारा अचानक तालाबंदी किए जाने से 5000 जूूट मिल मज़दूरों की रोजी रोटी छीन गई है।
भटपाड़ा स्थित रिलायंस जूट मिल में जनवरी 2020 में एक साल पहले रिटायर हुए 165 श्रमिकों को ग्रेच्यूटी और रिटायरमेंट पर मिलने वाले अन्य लाभों को ना दिए जाने से नाराज़ 5000 श्रमिकों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था और श्रमिकों के एक हिस्से ने काम रोक दिया था जिसके बाद जूट मिल मालिकों ने बिना कोई नोटिस दिए अनिश्चितकाल के लिए फैक्ट्री में लॉकआउट घोषित कर दिया था।
मज़दूरों का कहना कि प्लांट में बहुत सारी समस्या है हमें टाइम पर वेतन नहीं मिलता, छुट्टी नहीं मिलती, बोनस नहीं मिलता मगर अभी हम एक साल से सिर्फ रिटायर्ड मज़दूरों को ग्रेच्यूटी और अन्य सुविधा देने की मांग कर रहे हैं।
उसके बाद अक्टूबर 2020 में दुर्गा पूजा के वक्त जूट मिल में प्रोडक्शन वापस से शुरू हुआ। मगर फ़िर 6 महीने बाद ही 25 अप्रैल सोमवार को वापस से मिल प्रबंधन ने अनिश्चित काल के लिए मिल बंद होने का नोटिस लगा दिया। नोटिस में उत्पादन बंद करने का कोई कारण नहीं बताया गया है।
श्रमिकों ने इस लॉकआउट और मज़दूरों की जिंदगी से खिलवाड़ के लिए जूट मिल मालिकों और तृणमूल, बीजेपी और कांग्रेस से जुड़ी ट्रेड यूनियनों की घटिया राजनीति और निक्कमेपन को जिम्मेदार ठहराया है। मज़दूरों का कहना है कि प्लांट में 6 यूनियनें है और सभी सेंट्रल ट्रेड यूनियन से संबंधित है, मगर कोई भी मज़दूरों के पक्ष में काम नहीं करती हैं, हमारा इस्तेमाल सिर्फ़ वोट लेने के लिए किया जाता है।
अचानक काम बन्द होने से हताश और नाराज़ मज़दूरों ने बीएमएस और इंटक के ऑफिस में तोड़फोड़ करते हुए, फर्नीचरों को ऑफिस के बाहर आग लगा दी।
एक श्रमिक का कहना है कि मिल मालिक और प्रबंधन मज़दूरों से बात करने तक को तैयार नहीं है, वो मिल को अपनी मनमर्जी से चला रहे हैं। मिल खोलने की मांग करते हुए श्रमिकों ने कंचरापाड़ा- बैरकपर को एक घंटे तक जाम किया बाद में प्रशासन द्वारा बातचीत के आश्वासन पर जाम खोला गया।
रिलायंस जूट मिल का अंबानी से कोई नाता नहीं है। यह जूट मिल 1906 में स्थापित हुआ था। यह जूट मिल महंगे किस्म के गैर पारंपरिक और सजावट में काम आने जूट का नामी गिरामी उत्पादक है और यहां ज्यादातर उत्पाद निर्यात किए जाते हैं। बंगाल के ज्यादातर बड़े जूट मिल आजादी से पहले के जमाने के है।
फ़िलहाल इस अचानक हुई तालाबंदी से 5000 लोगों की रोजी रोटी छिन गई है। अभी पिछले दिनों 21 मार्च को बंगाल में चुनावी रैली के दौरान भाजपा के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने जूट मिल उद्योग के लिए 1500 करोड़ के पैकेज की चुनावी घोषणा की थी। 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त भी भट्टपाड़ा से मोदी ने ऐसी ही घोषणा की थी। मगर सब जुमला साबित हुआ।
बंगाल में 3.50 लाख से ज्यादा जूट मिल मज़दूर हैं जिनमें से ज्यादातर हिंदी भाषी हैं और उन्हें भगवा पार्टी द्वारा संभावित वोट बैंक के रूप में देखा जाता है। बंगाल के हुगली जिले में सबसे ज्यादा जूट मिलें है। बैरकपुर, हावड़ा, हूगली और श्रीरामपर क्षेत्र जो हुगली नदी के किनारे अवस्थित है यहां सबसे ज्यादा जूट मिल है। पूरे बंगाल में 60 जूट मिल है जिसमें से 39 जूट मिल पिछले 6 सालों में बंद हो चुकी हैं।
इसके अलावा जूट उद्योग बंगाल के 23 प्रमुख जिलों में से 18 जिलों में फैले जूट की खेती करने वाले करीब 35 लाख किसानों के रोजगार से जुड़ा हुआ है। मगर मांग के गिरते जाने और मिल मालिकों द्वारा जूट उद्योग में नयी तकनीक ना अपनाने और सेंट्रल ट्रेड यूनियनों के नकारेपन की वजह से 70 के दशक के बाद से जूट मिलों के लगातार बन्द होते जाने से बंगाल में जूट मिल मज़दूर की नौकरी हर वक्त खतरे में रही है।