योगी सरकार पर्यटन केन्द्र के बहाने मछुआरा समुदाय की जीविका का साधन भी छीनने को तैयार

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मऊ जिले के तालों को पर्यटन केन्द्र बनाने से मछुआरा समुदाय की पारंपरिक जीविका का साधन छिन जाएगा, हजारों लोग बेरोजगार होंगे। समुदाय अस्तित्व के संघर्ष की तैयारी में हैं।

उत्तरप्रदेश में ताल-तलैया को पर्यटन उद्योग के तहत निजी हाथों में देने का एक और जनहित विरोधी कार्य योगी सरकार कर रही है। ‘लब जिहाद’, ‘गो-रक्षा’, ‘हिन्दुत्व’ और ‘बुलडोजर’ की धमचौकड़ी के बीच पूरे प्रदेश को पूँजीपतियों-मुनाफाखोरों के हवाले करने में भाजपा सरकार सलग्न है।

इसी क्रम में मऊ जिले के तीन तालों- पकड़ीताल, तालनरजा व तालरतोय को पर्यटन के रूप में विकसित करने के बहाने मछुआरा समुदाय को बेरोजगार करने का उद्यम चल रहा है। इससे लंबे समय से उनके जीविका का साधन छिन जाएगा।

इस परियोजना की भनक लगने के बाद मछुआरा समुदाय में काफी रोष व्याप्त है। तालरतोय, ब्लॉक फतेहपुर मंडाव, तहसील मधुबन, मऊ की मछुआ मल्लाह बाईस गांव समुदाय समिति ने विरोध शुरू कर दिया है।

समिति ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर जिला प्रशासन तक को पत्र भेजकर माँग की है कि जनहित में पर्यटन केंद्र की जनविरोधी परियोजना बंद किया जाए। इसके विपरीत ताल में जल प्रवाह, सफाई व खुदाई मनरेगा योजना के तहत स्थानीय लोगों से करवाया जाए।

अंग्रेजी हुकूमकत के जमाने से पारंपरिक काश्तकारी अधिकार

मछुआ मल्लाह बाईस गांव समुदाय समिति, तालरतोय के कार्यकर्ताओं ने बताया कि 22 गांवों के लगभग 50,000 मछुआरे तालरतोय के चारों दिशाओं में बसते हैं।

जमीदारी उन्मूलन के बहुत पहले से वे तालरतोय में समग्र जलमग्न भूमि पर मछली का शिकार, माही कमलगट्टा निकालना, सुरहा धान आदि का कार्य करते आ रहे हैं। जिनका नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज है। जिसमें जमींदारों द्वारा मल्लाह समुदाय के लोगों के पूर्वजों को वार्षिक लगान पर दी गई थी। जमीदारी उन्मूलन के बाद से अबतक मल्लाह समुदाय के लोग इसी व्यवस्था के अंतर्गत अपना एवं परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं।

जलमग्न भूमि 132 लैंड की जमीन है, इस पर किसी भी प्रकार का सरकारी एवं गैर सरकारी निर्माण नहीं किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार मल्लाह समुदाय का ही केवल उक्त पर अधिकार है। ग्राम सभा का उससे कोई वास्ता सरोकार नहीं है।

ग्राम सभा द्वारा भू-माफियाओं को आवंटित कुछ अवैध पट्टा एसडीएम मधुबन द्वारा निरस्त करते हुए समस्त तालरतोय भूमि पर पारंपरिक काश्तकारी अधिकार देते हुए मछुआ समुदाय का अधिकार सुरक्षित किया जा चुका है।

मऊ जिले का तीन ताल बनेगा “पर्यटन स्थल”

समिति सदस्यों ने बताया कि बगैर किसी पूर्व सूचना के अचानक उक्त क्षेत्र में लोक निर्माण विभाग, मऊ द्वारा “पर्यटन स्थल तालरतोय, मधुबन-मऊ” संबंधी लगाए गए विभिन्न पट्टिकाओं से ज्ञात हुआ कि परंपरागत आजीविका और पुरखों के जमाने से प्राप्त काश्तकारी अधिकार से मछुआरा समुदाय को वंचित करने की कोई योजना आई है।

समिति द्वारा तमाम सरकारी विभागों से दरयाफ्त करने के बाद मुख्य विकास अधिकारी, मऊ से जानकारी मिली कि मऊ जिले के तीन तालों- पकड़ीताल, तालनरजा व तालरतोय को पर्यटन के रूप में विकसित करने की योजना बन चुकी है। जबकि उक्त तालों से संबंधित समुदाय से जुड़े लोगों से चर्चा-विमर्श तो दूर, कोई सूचना तक नहीं दी गई।

जबकि मछुआ मल्लाह बाइस गांव समुदाय समिति से ताल व उससे जुड़े समुदाय को प्रभावित करने वाली किसी भी परियोजना के संबंध में नियमानुसार वस्तुस्थिति जानना चाहिए और उसके सुझाव-परामर्श लेकर समुदाय की उन्नति के लिए आवश्यक निर्णय लिया जाना चाहिए। जोकि नहीं किया गया है।

परंपरागत रोजगार और जल-जमीन से वंचित करना न्यायसंगत नहीं

समिति का कहना है कि तालरतोय परंपरागत रूप से हमारा है, पीढ़ी दर पीढ़ी हमने आजीविका के साथ क्षेत्र के विकास में अपना योगदान दिया है, इसलिए हमें अपने परंपरागत रोजगार और जल-जमीन से वंचित करना किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं है।

इस वस्तुस्थिति से अवगत होने के बाद भी यदि पर्यटन केंद्र बनाए जाने संबंधी किसी प्रकार की कार्यवाही होती है तो हम तालरतोय के 50 हजार मछुआरों का जीवन यापन और पूरे क्षेत्र की कृषि व जीविका अति संवेदनशील स्थिति में चला जाएगा।

परियोजना जनहित में घातक है

समिति का कहना है कि पर्यटन केंद्र बनाने से जिले व क्षेत्र में भयावह संकट खड़ा होगा, क्यों कि-

  1. तालरतोय से परंपरागत रूप से पीढ़ियों से जुड़े 22 गांव के मछुआरों के समक्ष आजीविका का बड़ा संकट पैदा हो जाएगा और पहले से ही वंचित समुदाय व समूचे क्षेत्र में गरीबी और बेरोजगारी और बढ़ जाएगी।
  2. यह परंपरागत जीविका के साधनों को नष्ट करेगा जबकि सरकार द्वारा इसको मान्यता और अधिकार दिया गया है।
  3. हम मछली पकड़ने के परंपरागत अधिकार से वंचित होंगे जो विकास की प्रक्रिया को बाधित करेगा और पूरे क्षेत्र में विनाश की स्थिति पैदा होगी।
  4. पर्यटन केंद्र विकसित करने से इस पूरे क्षेत्र की कृषि अर्थव्यवस्था भी नष्ट होगी और गरीब खेतिहर आबादी भी इससे बुरी तरह प्रभावित और संकटग्रस्त होगी।
  5. आजीविका के संकट के साथ ही इससे पर्यावरण का भी बड़ा संकट पैदा होगा, पानी के इस्तेमाल से पूरे इलाके के ग्राम समुदाय के ऊपर बड़ा और दूषित प्रभाव पड़ेगा।
  6. पर्यटन उद्योग विकसित करने से बड़े पैमाने पर सामाजिक प्रदूषण भी फैलेगा, जोकि और भी ज्यादा संकट पैदा करेगा।
  7. इससे न तो उद्यमिता का विकास होगा, न ही रोजगार सृजन होगा, न ही इलाके का विकास होगा। इसके विपरीत परंपरागत उद्यमिता को यह नष्ट करेगा और बेरोजगारी को और बढ़ाएगा।

मछुआरा समिति की माँग-

समिति ने मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव से लेकर पर्यटन, मत्स्य व जिला प्रमुखों को पत्र भेजकर माँग की है कि-

  • जनहित में पर्यटन केंद्र की परियोजना को बंद किया जाए;
  • क्षेत्र के वास्तविक विकास के लिए मछुआरा समुदाय को उचित संसाधन उपलब्ध कराया जाए, ताल में नियमित जल-प्रवाह की समुचित व्यवस्था हो और ताल की सिल्टिंग, खर-पतवार की सम्पूर्ण सफाई एवं ताल की खुदाई हो;
  • यह स्थानीय स्तर पर मानरेगा के तहत हो जिससे रोजगार सृजन व आय में बृद्धि होगी। समिति और पूरा ग्राम समुदाय इसमें पूर्ण सहयोग के प्रति आपको आश्वस्त करता है।

अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष की तैयारी

मऊ जिले की तीन तालों में से तालरतोय सबसे बड़ा है और यहाँ समिति लंबे समय से पंजीकृत और मछुआरा समुदाय के हित में सक्रिय है। ताजा जानकारी के अनुसार प्रस्तावित इन तीन तालों में से पकड़ीताल को पर्यटन उद्योग में तब्दील करने का काम गतिमान है।

लेकिन पर्यटन केन्द्र की जानकारी मिलने के बाद से तालरतोय से जुड़े समुदाय के लोग सक्रिय हो गए हैं और इसके खिलाफ प्रयासरत हैं और आंदोलन की तैयारी में हैं।

मछुआ मल्लाह बाइस गांव समुदाय समिति का कहना है कि यह हमारे अस्तित्व का सवाल है और हम किसी भी कीमत पर ऐसा होने नहीं देंगे। अपने परंपरागत आजीविका को बचाने के लिए हम हर स्तर पर संघर्ष की तैयारी में हैं।