राजस्थान: चुनाव बाद सरकारी कर्मचारियों की होगी जबरिया सेवानिवृत्ति, कर्मचारी संगठन विरोध में

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फरमान: 15 वर्ष सेवा या 50 साल आयु पूरी तो होंगे बाहर! प्रचंड बहुमत की मोदी सरकार ने जबरिया सेवानिवृत्ति का अभियान शुरू किया था। उसी तर्ज पर तमाम राज्य सरकारें सक्रिय हैं।

केंद्र की मोदी सरकार की तर्ज पर अब राजस्थान की भाजपा सरकार सरकारी कर्मचारियों को अनिवार्य (जबरिया) सेवानिवृत्ति के तहत बाहर का रास्ता दिखाने वाली है। लोक सभा चुनाव सम्पन्न होते ही 4 जून से यह प्रक्रिया तेज हो जाएगी। 24 मई को शासन द्वारा इसका आदेश भी जारी हो चुका है।

इसके तहत सरकार के विरोध में बोलने वालों, कथित भ्रष्ट 15 वर्ष की सेवा या 50 साल की आयु पूरी कर चुके ऐसे कर्मचारियों की सूची भी लगभग तैयार है।

राजस्थान के कर्मचारी संगठन इस आदेश के विरोध में खुलकर सामने आ गए हैं। संगठनों का कहना है कि कार्मिक विभाग द्वारा जारी मुख्य सचिव के अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश से कर्मचारियों में आतंक पैदा करने की कोशिश की गई है।

कर्मचारी संगठनों ने कहा कि मुख्य सचिव सहित राज्य के शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों ने राज्य कर्मचारियों को डराने-धमकाने तथा प्रताड़ित करने और सरकारी विभागों, सरकारी विद्यालयों व चिकित्सालयों को बदनाम करने का अभियान चला रखा है।

राजस्थान सरकार छंटनी के लिए सक्रिय

केंद्र सरकार के तर्ज पर प्रदेश की भजनलाल सरकार भी सरकारी कर्मचारियों की व्यापक छंटनी की तैयारी में है। सरकार ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की सूची बनाकर जबरिया सेवानिवृत्ति देकर छुट्टी पाना चाहती है। जाहीर है मुख्यतः ये वे कर्मचारी होंगे जो सरकार की नीतियों के आलोचक हैं।

इस दिशा में मुख्य सचिव सुधांश पंत ने एक उच्च स्तरीय बैठक करके ऐसे कर्मचारियों की सूची बनाने के निर्देश दिए थे जो कथित रूप से अपना काम निष्पक्षता और पारदर्शिता से नहीं कर रहे हैं। नए फरमान के तहत राजस्थान के सरकारी कर्मचारी जो 15 वर्ष की सेवा या 50 साल की आयु पूरी कर चुके कर्मचारी अनिवार्य सेवानिवृत्ति ले सकेंगे।

इसके लिए सभी विभागों को आदेश जारी किया गया है। इसके बाद ऐसे कर्मचारियों की स्क्रीनिंग की जाएगी। जो सरकारी सेवा में अपनी आवश्यक उपयोगिता खो चुके है। या आगे काम करने के इच्छुक नहीं है। ऐसे सरकारी कर्मचारियों को विभाग की प्रक्रिया के तहत सेवानिवृत्ति दी जाएगी।

स्पष्ट है कि यह जबरिया सेवानिवृत्ति है, जिससे पुराने कर्मचारियों की व्यापक छंटनी होगी! यह प्रक्रिया 31 अक्टूबर तक पूरी भी होनी है।

अनिवार्य सेवानिवृत्ति का प्रावधान

प्रदेश सरकार ने राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम 1996 के नियम 53 (1) के तहत ऐसे अधिकारियों/कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के प्रावधान पहले ही बना दिए हैं। भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार ने सं 2018 में ही अधिकारियों के लिए इसका इस्तेमाल शुरू किया था।

इस नियम के अनुसार ऐसे सरकारी अधिकारी/कर्मचारी जिन्होंने 15 साल की सेवा अथवा 50 साल की आयु जो भी पहले पूर्ण कर ली हो और अपने भ्रष्ट एवं असंतोषजनक काम से उपयोगिता खो चुके हैं, ऐसे कार्मिकों को तीन माह के नोटिस अथवा उसके स्थान पर तीन महीने के वेतन एवं भत्तों के साथ तुरंत अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी जाए।

मोदी सरकार के तर्ज पर राज्य की भाजपा सरकार के अनुसार “अपनी अकर्मण्यता, संदेहास्पद सत्यनिष्ठा, अक्षमता एवं अकार्यकुशलता अथवा असंतोषजनक कार्य निष्पादन के कारण जनहितार्थ आवश्यक उपयोगिता खो चुका है ऐसे सरकारी अधिकारी/कर्मचारी की स्क्रीनिंग करके राज्य सेवा से सेवानिवृत्ति किया जा सकेगा।”

सरकार आतंक पैदा कर रही है -कर्मचारी संगठन

अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष महावीर शर्मा का कहना है कि सरकार कर्मचारियों में आतंक पैदा करना चाहती है और आमजन को कामगारों के खिलाफ भड़काना चाहती है। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि सरकार के मंत्री ही नहीं बल्कि सत्ताधारी दल के अनेक नेता भी लगातार कर्मचारियों के खिलाफ जहर उगल रहे हैं।

अब तो मुख्यमंत्री ने भी अपने साक्षात्कार में अनिवार्य सेवा निवृत्ति नियम के अनुसार कार्रवाई करने का कहकर कर्मचारियों के डर को बढ़ाने और उन्हें पस्त करने की कोशिश की है। राज्य कर्मचारी सरकार के इस अनुचित व्यवहार से हतप्रभ, आहत और आक्रोशित है।

सरकार करना चाहती है निजीकरण

महासंघ के महामंत्री महावीर सिंह ने कहा कि सरकार शिक्षा, चिकित्सा तथा जनसेवा की सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण करना चाहती है और सरकारी विभागों का आकार घटाना चाहती है।

इन जन विरोधी कार्यो को अंजाम देने के लिए कर्मचारियों को निशाना बनाया जा रहा है ताकि कर्मचारी संगठित रूप से विरोध नहीं कर सके।

कर्मचारी भी आमजन है और “बांटो तथा राज करो” नीति के तहत सरकार आम जन को आपस में बांट देना चाहती है, आपस में टकराना चाहती है। यदि सरकार इसमें सफल हो गई तो जन सामान्य एक तरफ इन सेवाओं से वंचित हो जाएंगे, ऊंची कीमत पर निजी क्षेत्र से यह सेवाएं खरीदनी पड़ेगी और दूसरी तरफ राज्य में लाखों पद समाप्त करके रोजगार के अवसर खत्म कर दिए जाएंगे।

आंदोलन की दी चेतावनी

महासंघ का कहना है कि सरकार अपनी कर्मचारी विरोधी नीतियों से बाज नहीं आई और कर्मचारियों के खिलाफ जारी अनुचित अभियान को नहीं रोका गया तो राज्य का कर्मचारी अपनी मान मर्यादा तथा न्याय के लिए न केवल सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर जाएगा बल्कि सरकार के साजिशपूर्ण कदमों की पोल खोलने के लिए आम जन के बीच भी जाएंगे।

मोदी सरकार के तर्ज पर राज्य सरकारें

उल्लेखनीय है कि 2019 के चुनाव में प्रचंड बहुमत का करिश्मा दिखलाते हुए मोदी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की जबरिया सेवानिवृत्ति का अभियान शुरू किया था। उसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित अन्य राज्य सरकारों, विशेष रूप से भाजपा सरकारें सक्रिय हैं।

इस दिशा में अब राजस्थान की भाजपा सरकार ने दौड़ लगा दी है।

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