यूसीसी के खिलाफ रामनगर में जनसम्मेलन: “भेदभावपूर्ण है प्रस्तावित यूसीसी” -एडवोकेट वृंदा ग्रोवर

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रामनगर, नैनीताल। उत्तराखंड में भाजपा सरकार द्वारा लागू किए जा रहे समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ शनिवार, 16 नवंबर को रामनगर में आयोजित जन सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने यूसीसी को विचारों की विभिन्नता को नष्ट करने की साजिश का आरोप लगाते हुए इसे महिलाओं और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताया है।

स्थानीय पायते वाली रामलीला के रंगमंच पर समाजवादी लोक मंच के मुनीष कुमार के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में वृंदा ग्रोवर ने कहा कि प्रस्तावित यूसीसी कानून लोगों की सघन निगरानी के लिए ही ऐसा टूल है जो आधार कार्ड से होते हुए यहां तक पहुंच चुका है।

महिलाओं सुरक्षा के नाम पर लोगों पर निगरानी

वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर लोगों पर निगरानी का काम किया जा रहा है। यूसीसी के द्वारा भाजपा सरकार लोगों की छोटी छोटी निजी जानकारियां अपने पास रखकर उन्हें भविष्य में उत्पीड़न के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करेंगी।

उन्होंने कहा कि सभी के समानता के नाम पर लागू होने वाले इस कानून में उत्तराखंड के निवासी की परिभाषा इतनी व्यापक है कि इसमें राज्य में केंद्रीय सरकार की नौकरी करने वाले, पढ़ाई के लिए उत्तराखंड आने वाले अन्य राज्यों के निवासी भी इसके दायरे में आ जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने भी नागरिकों की निजता को उनका मौलिक अधिकार बताते हुए उनकी निजता को बनाए रखने की पैरवी की है। लेकिन सरकार कोर्ट के निर्देशों को भी ताक पर रखने पर आमादा है।

उत्तराखंड सरकार का लोगों पर निगरानी का यह पैंतरा नया नहीं है। इससे पूर्व वह विवाह पंजीकरण क़ानून लागू करने का असफल प्रयास भी कर चुकी है।

विभिन्नताओं से भरे देश में सबको एक डंडे से हांकना गलत

वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि संविधान निर्माण के समय भी समान संहिता पर चर्चा हुई थी। लेकिन तब भी विशेषज्ञों ने देश की विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में लोगों के निजी जीवन के अलग अलग पहलुओं को देखते हुए इस विचार को त्याग दिया था। उनका भी मानना था कि विभिन्नताओं से भरे इस देश में सबको एक ही डंडे से नहीं हांका जा सकता। लेकिन भाजपा की सरकार आज सबको एक ही तरह की जीवनशैली अपनाने को मजबूर कर रही है। यही सरकार कुछ समय सबको एक ही दृष्टि से सोचने को भी मजबूर करेगी। जिसके बाद देश में न कोई नया विचार पनपेगा और न ही लोकतंत्र बचा रहेगा।

समानता का मतलब समान शिक्षा, समान इलाज, समान न्याय

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि यह सरकार का कर्तव्य है कि वह इस बात को देखें कि सभी को शिक्षा और इलाज मिल रहा है, सभी के पास सम्मानजनक रोजगार हो और रहने के लिए घर और जमीन हो। भाजपा सरकार स्वयं को महिलाओं की हितैषी बोलती है तो वह बताएं कि उत्तराखंड में हिंसा से पीड़ित महिलाओं की सहायता के लिए खोले गए महिला शेल्टर होम क्यों बंद किए जा रहे हैं। सरकार को यदि वाकई महिलाओं की चिंता है तो वह उन लोगों की लिस्ट बनाकर, उनके ऊपर निगरानी रखे जो अपने घर में पत्नी, बहन, बेटियों व मां को पीट रहे हैं।

विभिन्न वक्ताओं ने चर्चा को बढ़ाया आगे

जन सम्मेलन में चर्चा की शुरुआत करते हुए चंद्रकला ने कहा कि फासीवादी लोगों के सत्तारूढ़ होने के बाद लोकतंत्र के साथ ही अल्पसंख्यकों, दलितों और महिलाओं पर हमले बढ़े हैं। निर्मला बिष्ट ने कहा कि उत्तराखंड को हिंदुत्व की राजनीति की नई प्रयोगशाला बनाया जा रहा है। सरकार खुद नफरत की राजनीति को बढ़ावा दे रही है।

तरुण जोशी ने कहा कि यह सरकार सामाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न करने के लिए परंपराओं से खिलवाड़ कर रही है। इतनी हिम्मत 1862 में अपने कानून लागू करते समय अंग्रेजों तक ने नहीं की थी। खास वर्ग को निशाना बनाकर उनका उत्पीड़न करने वाली ऐसी व्यवस्था का सभी को मिलकर विरोध करना चाहिए।

मुकुल ने कहा कि यूसीसी की आड़ में सरकार मुसलमानों और महिलाओं का उत्पीड़न करना चाहती है। महिला हितों की बात करने वाली यह सरकार महिला श्रमिकों को न्यूनतम वेतन तक नहीं दिलवा पा रही है। यूसीसी मजदूरों की किसी समस्या का समाधान नहीं है। यह सम्मेलन यूसीसी के विरोध में पसरी खामोशी को तोड़ने का काम करेगा।

पीपी आर्य ने कहा कि महिला हितों के सरकारी छलावे की पोल इसी से खुल रही है कि प्रदेश की आंगनवाड़ी कार्यकत्री तथा भोजनमाताएं अपनी दो जून की रोटी बचाने के लिये संघर्ष कर रही हैं लेकिन सरकार उनकी आवाज सुनने की जगह उन्हें अपमानित करने पर उतारू है। यूसीसी के प्रभावितों के बीच अभियान चलाकर यूसीसी का विरोध करने की जरूरत है।

प्रभात ध्यानी ने कहा कि भाजपा सरकार द्वारा प्रस्तावित यूसीसी लोगों को बांटने के लिए लाया जा रहा है। उपासना ने कहा कि सरकार भले ही यूसीसी को समता के नाम पर ला रही है। लेकिन इसके प्रावधान बताते हैं कि यह बैक डोर से समाज में अराजकता फैलाने का प्रयास है।

शंकर गोपाल सरकार मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न का मुद्दा उछालकर यूसीसी को सामाजिक मान्यता दिलाने का प्रयास कर रही है। जबकि नेशनल फैमिली सर्वे की रिपोर्ट्स के अनुसार मुसलमानों में बहुविवाह करने वालों की संख्या 1.8 प्रतिशत है तो हिंदुओं में भी यह संख्या 1.4 प्रतिशत है। भाजपा सरकार खुद दोहरे मापदंड अपनाने वाली पार्टी है।

हल्द्वानी कांड में घायल पुलिसकर्मियों से मिलने वाले मुख्यमंत्री उत्तरकाशी में हिंदू उत्पातियों के हमले में घायल पुलिसकर्मियों से नहीं मिलकर एक समुदाय के दंगे की खुली छूट व दूसरे समुदाय पर कार्यवाही कर सामाजिक बंटवारे को हवा दे रहे हैं।

कैलाश जोशी ने कहा कि यूसीसी जैसे दोहरे मापदंड वाले कानून के खिलाफ लोगों को सड़कों पर उतरकर संघर्ष करना होगा। राम मंदिर निर्णय के आलोक में सीजेआई द्वारा दिए बयान से स्पष्ट है कि मौजूदा दौर में अदालतें भी कानून की जगह आस्था के अनुसार फैसले सुना रही हैं।

वक्ताओं ने इस कानून को महिला विरोधी और जन विरोधी करार देते हुए कहा गया कि समाज और समुदाय में महिलाओं को सामाजिक न्याय, बराबर हक, भूमि पर हक और वन अधिकार मिलना चाहिए। इस कानून से भ्रष्टाचार, भेदभाव और अधिकारियों के मनमानी को बढ़ावा मिलेगा। यह आम जनता के बुनियादी मुद्दों से भटकाने का प्रयास है।

सम्मेलन में भाजपा सरकार द्वारा जनता पर थोपी जा रही समान नागरिक संहिता को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया गया। पारित प्रस्ताव में लिखा है कि-

हम उत्तराखंड के अलग अलग क्षेत्र से आए सामाजिक राजनीतिक व महिला संगठनों के प्रतिनिधि, एवं आम नागरिक आज एक जुट हो कर उत्तराखंड राज्य में भाजपा सरकार द्वारा जनता पर थोपी जा रही समान नागरिक संहिता को रद्द करने का प्रस्ताव पारित करते हैं।

ये कानून पूर्णता महिला विरोधी और जन विरोधी है।

हम इस बात को ले कर प्रतिबद्ध हैं कि समाज और समुदाय में महिलाओं को सामाजिक न्याय और बराबर हक मिलना चाहिए। लेकिन इस समान नागरिक संहिता द्वारा उनको न बराबर हक मिलने वाला है और न ही सामाजिक न्याय। इसमें न ही शिक्षा और इलाज जैसी बुनियादी सुविधाओं में बराबरी है, ना ही समान काम पर समान वेतन की बात है।

उल्टा इस कानून से आम जन की निजता, महिलाओं के हक, अल्पसंख्यकों के अधिकार और संविधान के मूल्यों का हनन होगा। इस कानून से भ्रष्टाचार, भेदभाव और अधिकारियों के मनमानी कार्यों को बढ़ावा मिलेगा। इसलिए हम आज संकल्पित हैं कि हम सभी एकजूट होकर इस कानून को सड़क और न्यायालय में चुनौती देंगे।

डॉल्फिन महिला मजदूरों के बलिदानी संघर्ष के समर्थन में प्रस्ताव

डॉलफिन कम्पनी, सिडकुल पंतनगर उधमसिंह नगर उत्तराखण्ड में बुनियादी श्रम कानूनों को लागू करने की मांग को लेकर कम्पनी के 4 महिला मजदूर 27 दिनों से आमरण अनशन पर बैठी हैं।

अपनी मांगों को लेकर  28 अगस्त से डॉलफिन कम्पनी के 4 प्लांटों के मजदूर धरनारत हैं। डॉलफिन कम्पनी में मजदूर स्थाई मजदूरों को ठेकेदारी के तहत नियोजित करने के खिलाफ, न्यूनतम वेतन का बकाया देने, बोनस देने,  अवैधानिक गेटबंदी के विरोध में व कंपनी में श्रम कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं। 3 अक्टूबर से गांधी पार्क रुद्रपुर में मजदूरों का क्रमिक अनशन शुरु हुआ और  21 अक्टूबर से 4 महिला मजदूर गांधी पार्क में आमरण अनशन पर बैंठी। पुलिस प्रशासन द्वारा अनशनकारी महिला मजदूरों को जबरन उठाकर अस्पताल में भर्ती कर दिया । महिला मजदूरों का अस्पताल मे भी अनशन जारी है। आज महिला मजदूरों को अनशन पर बैठे 27 दिन हो गये हैं। इसके अलावा गांधी पार्क मे आमरण अनशन पर बैठे डॉलफिन मजदूर संगठन के अध्यक्ष को 19 दिन हो गये हैं।

उत्तराखंड की धामी सरकार,श्रम विभाग, ऊधमसिंह नगर का जिला प्रशासन, डॉलफिन कम्पनी के मालिक प्रिंस धवन के इशारे पर काम कर रहे हैं। शासन – प्रशासन  डॉलफिन कम्पनी मालिक के गैर कानूनी कृत्यों के समर्थन करते हुए मजदूरों की बलि लेने को उतारु हैं ।  

27 दिनों से आमरण अनशन पर बैठी महिलाओं का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा है। इसके बावजूद आमरण अनशनकारी महिलाएं अनशन समाप्त नहीं कर रही हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि भारतीय संविधान, सुप्रीम कोर्ट व नैनीताल हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद प्रशासन डॉल्फिन कंपनी मालिक पर अपराधिक मुकदमा दर्ज करने के स्थान पर मालिक के गैर कानूनी कामों का साथ देकर मजदूरों की आवाज को दबा रहे हैं। हम सभी मजदूरों को न्याय मिलने तक अनशन खत्म नहीं करेंगे।  

भाजपा सरकार के बेटी बचाओ नारे की यही हकीकत है। एक तरफ महिला मजदूर अपनी जायज मांगों को लेकर तिल तिल कर मौत की ओर बढ रही हैं , दूसरी ओर प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री/ श्रममंत्री पुष्कर सिंह धामी व उनके सरकारी महकमें सोयें हुए हैं।

समान नागरिक संहिता रद्द करो विषय पर आहूत आज का यह जन – सम्मेलन  डॉलफिन कम्पनी के मजदूरों की मांगों का समर्थन करते हुए प्रदेश की धामी सरकार से मांग करता है कि डॉल्फिन कंपनी के गैरकानूनी कृत्यों पर रोक लगाकर मजदूरों की मांगों को जल्द पूरा कर आमरण अनशनकारी महिलाओं के जीवन की रक्षा करे।

सम्मेलन में उत्तराखंड के संघर्षशील लोगों की भागीदारी

जन सम्मेलन में उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों से आय उत्तराखंड महिला मंच की निर्मला बिष्ट, चंद्रकला, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, भाकियू एकता उग्राहां के अध्यक्ष बल्ली सिंह चीमा, रचनात्मक महिला मंच की आसना श्रमयोग, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी, महिला किसान अधिकार मंच की हीरा जंगपांगी, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रभात ध्यानी, पीसी तिवारी, भाकपा माले के कैलाश जोशी, मजदूर सहयोग केंद्र (CSTU) के मुकुल, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के पीपी आर्य, इमके नेता सुरेन्द्र, उत्तराखंड लोक वाहिनी के राजीव लोचन साह, महिला एकता मंच की ललिता रावत, गोपाल लोधियाल, मौ. शफी, उमा भट्ट, सरस्वती जोशी, सुरेश लाल, गिरीश आर्य, जमन राम, मदन मेहता, उषा पटवाल, ललित उप्रेती, वीर सिंह, महेश जोशी, मुकेश जोशी, कौशल्या चुन्याल, किरण आर्य, किशन शर्मा आदि शामिल रहे।

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