तुर्की के महान कवि नाज़िम हिक़मत की कविताएं !

Nazim-Hikmet

विशेष : जन्म दिवस: 15 जनवरी 1902; स्मृति दिवस: 03 जून 1963

अज़ीम इंसानियत / नाज़िम हिक़मत

अज़ीम इन्सानियत जहाज़ के डेक पर सफ़र करती है
रेलगाड़ी में तीसरे दर्ज़े के डब्बे में
पक्की सड़क पर पैदल
अज़ीम इन्सानियत I

अज़ीम इन्सानियत आठ बजे काम पर जाती है
बीस की उम्र में शादी कर लेती है
चालीस तक पहुँचते मर जाती है
अज़ीम इन्सानियत I

रोटी काफ़ी होती है सबके लिए अज़ीम इन्सानियत को छोड़कर
चावल के साथ भी यही बात
चीनी के साथ भी यही बात
कपड़ों के साथ भी यही बात
किताबों के साथ भी यही बात

काफ़ी होती हैं चीज़ें सबके लिए अज़ीम इन्सानियत को छोड़कर I

अज़ीम इन्सानियत की ज़मीन पर छाँह नहीं होती
उसकी सड़क पर बत्ती नहीं होती
उसकी खिड़की पर शीशे नहीं होते
पर अज़ीम इन्सानियत के पास उम्मीद होती है
उम्मीद के बिना तुम ज़िन्दा नहीं रह सकते।


मनहूस आज़ादी / नाज़िम हिक़मत

तुम बेच देते हो
अपनी आँखों की सतर्कता, अपने हाथों की चमक.
तुम गूँथते हो लोइयाँ ज़िन्दगी की रोटी के लिए,
पर कभी एक टुकड़े का स्वाद भी नहीं चखते
तुम एक ग़ुलाम हो अपनी महान आज़ादी में खटनेवाले।
अमीरों को और अमीर बनाने के लिए नरक भोगने की आज़ादी के साथ
तुम आज़ाद हो !

जैसे ही तुम जन्म लेते हो, करने लगते हो काम और चिन्ता,
झूठ की पवनचक्कियाँ गाड़ दी जाती हैं तुम्हारे दिमाग में।
अपनी महान आज़ादी में अपने हाथों से थाम लेते हो तुम अपना माथा।
अपने अन्तःकरण की आज़ादी के साथ
तुम आज़ाद हो !

तुम्हारा सिर अलग कर दिया गया है धड़ से।
तुम्हारे हाथ झूलते है तुम्हारे दोनों बगल।
सड़कों पर भटकते हो तुम अपनी महान आज़ादी के साथ।
अपने बेरोज़गार होने की महान आज़ादी के साथ
तुम आज़ाद हो !

तुम बेहद प्यार करते हो अपने देश को,
पर एक दिन, उदाहरण के लिए, एक ही दस्तख़त में
उसे अमेरिका के हवाले कर दिया ज़ाता है
और साथ में तुम्हारी महान आज़ादी भी.
उसका हवाई-अड्डा बनने की अपनी आज़ादी के साथ
तुम आज़ाद हो !

वाल-स्ट्रीट तुम्हारी गर्दन ज़कड़ती है
ले लेती है तुम्हें अपने कब्ज़े में।
एक दिन वे भेज सकते हैं तुम्हें कोरिया,
ज़हाँ अपनी महान आज़ादी के साथ तुम भर सकते हो एक क़ब्र।
एक गुमनाम सिपाही बनने की आज़ादी के साथ
तुम आज़ाद हो !

तुम कहते हो तुम्हें एक इन्सान की तरह जीना चाहिए,
एक औजार, एक संख्या, एक साधन की तरह नहीं।
तुम्हारी महान आज़ादी में वे हथकड़ियाँ पहना देते हैं तुम्हें।
गिरफ़्तार होने, जेल जाने, यहाँ तक कि
फाँसी पर झूलने की अपनी आज़ादी के साथ
तुम आजाद हो !

तुम्हारे जीवन में कोई लोहे का फाटक नहीं,
बाँस का टट्टर या टाट का पर्दा तक नहीं।
आज़ादी को चुनने की जरूरत ही क्या है भला —
तुम आज़ाद हो !
सितारों भरी रात के तले बड़ी मनहूस है यह आज़ादी।


उम्मीद / नाज़िम हिक़मत

मैं कविताएँ लिखता हूँ
पर उनको कोई नहीं छापता
एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब छपेंगी मेरी कविताएँ।

मुझे इन्तज़ार है एक चिट्ठी का
जिसमें आएगी कोई अच्छी ख़बर
हो सकता है उसके आने का दिन वही हो
जिस दिन मैं लेने लगूँ आखिरी साँसें…
पर ये हो नहीं सकता
कि न आए वो चिट्ठी।

दुनिया सरकारें या दौलत नहीं चलाती
दुनिया को चलाने वाली है अवाम
हो सकता है मेरा कहा सच होने में लग जाएँ
सैकड़ों साल
पर ऐसा होना है ज़रूर।



कवि : नज़ीम हिकमत रन
उपनाम : नाज़िम हिकमत
जन्म : 15 जनवरी 1902
निधन : 03 जून 1963
जन्म स्थान : सलोनिकी, यूनान


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