पतंजलि समूह की कम्पनी रूचि सोया ने किया 92 मज़दूरों को बर्ख़ास्त

न्यूनतम मज़दूरी के लिए 7 दिन से जारी थी हड़ताल
बुधवार 15 जुलाई को पतंजलि समूह की नवअधिकृत कंपनी रूचि सोया की काकीनाडा, आंध्र प्रदेश स्थित इकाई ने अपने एक ठेकेदार के तहत काम कर रहे 92 मज़दूरों को काम से बर्ख़ास्त कर दिया है। यह मज़दूर 9 जुलाई से न्यूनतम मज़दूरी, तनख्वाह में बढ़ोतरी, सामजिक सुरक्षा और अन्य मांगों को ले कर हड़ताल पर थे।
मज़दूरों को पिछले चार सालों से बोनस नहीं मिली थी और ना ही उनकी तनख्वाह में कोई बढ़ोतरी हुई थी, ना ही उन्हें ईएसआई पीएफ का लाभ मिल रहा था। कम्पनी में मज़दूरों की सुरक्षा के लिए भी वाज़िब कदम नहीं लिए जा रहे हैं जबकि तेल मिल के यह मज़दूर आवश्यक उपभोग वस्तुओं के उत्पादक होने के नाते लॉकडाउन में भी लगातार काम कर रहे थे । मज़दूरों को उम्मीद थी की पतंजलि द्वारा अधिग्रहण के बाद उनकी तनख्वाह और सुविधाओं में कुछ इजाफ़ा होगा लेकिन ऐसा ना हुआ। सीटू के पूर्व गोदावरी जिला महासचिव चेक्कला राज कुमार रिस्थिति ने बताया कि परिस्सेथितियों से परेशान हो कर मज़दूरों ने अपनी मांगों को डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर और जॉइंट सेक्रेटरी के सामने भी रखा। लेकिन कोई सकारात्मक कार्यवाही ना होने पर हड़ताल का कदम उठाया। किन्तु, मज़दूरों के साथ किसी वार्तालाप में ना जाते हुए प्रबंधन ने सीधा ठेकेदार को चिट्ठी लिख कर उनका कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया।
राष्ट्रवाद के नाम पर जनता के श्रम और संसाधनों की लूट
चीनी व अन्य विदेशी कम्पनियों से निर्भरता हटाने के नामे पर देश की सरकार और पूंजीपति वर्ग एक स्वर में स्वदेशी और देशभक्ति के नारे लगा रहा है। स्वदेशी के नाम पर अपना सामाजिक प्रचार और विज्ञापन करने वाले पतंजलि ग्रुप का मज़दूरों के साथ रवैय्या राष्ट्रिय भाईचारे का नहीं बल्कि बेलगाम पूंजीवादी शोषण का उदाहरण रखता है। ठेका प्रथा पर निर्भरता, मौजूदा श्रम कानूनों का उलंघन, संयुक्त वार्तालाप के प्रति प्रतिकूलता व पुलिसिया बल प्रयोग इत्यादि मज़दूरों के साथ उनके रवैय्ये में लगातार नज़र आया है।
मज़दूरों के हकों का हनन पतंजलि या रूचि सोया के लिए नयी बात नहीं है। काकीनाडा के पहले पतंजलि प्रबंधन इंदौर के रूचि सोया फैक्ट्री से भी फ़रवरी में दो मज़दूरों को काम से निकाल कर उनके इस्तीफ़ा देना का दावा कर चुकी है, जिसे मज़दूरों ने सरासर झूट बताया है। यहाँ भी कम्पनी प्रबंधन के द्वारा श्रम कानूनों का उलंघन व मज़दूरों की विभिन्न मांगों को ले कर प्रतिरोध जारी रहा है। मज़दूरों के हकों और सुरक्षा के प्रति लापरवाही के तहत पतंजलि की हरिद्वार इकाई में 2016 में एक मज़दूर की काम करते हुए मौत हो चुकी है। वहीँ 2017 में तेज़पुर, असाम में पतंजलि के फ़ूड पार्क में भी एकाएक 85 ठेका मज़दूरों को बिना किसी स्पष्ट वजह बाताए कम से निकाल दिया गया था।
राजनैतिक दबाव से सरकारी बैंकों के घाटे पर हुआ था रूचि सोया का फायदेमंद सौदा…
मीडिया में जहाँ पंतांजलि द्वारा मज़दूरों की बर्खास्तगी के खबर ढूंढनें से ही मिलेंगे, पनांजलि द्वारा पिछले कुछ महीनों में कमाए गए ज़बरदस्त मुनाफ़े की चर्चा लगातार सुर्ख़ियों में रही हैं। 2019-20 के वित्तीय वर्ष में इनके मुनाफ़े में 39% इजाफ़ा हुआ है और 20-21 की पहली तिमाही में इजाफ़े का दर और भी बढ़ा है। जहाँ इसका कुछ श्रेय कोरोना दौर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले औषध जैसे गिलोय, शहद इत्यादि के बढ़ते सेवन को जाता है, वहीँ रूचि सोया के शेयर के मूल्य में भारी उछाल भी इसका एक कारण, जहाँ 6 महीने के अन्दर 16 रु के स्टॉक का मूल्य 15,000 रु तक पहुँच गया।
किन्तु रूचि सोया के स्टॉक में इस तरह के उछल पहले भी आ चुके हैं और कम्पनी के कारोबारी चलन का इतिहास भी मठमैला है। बड़ेबड़े ब्रांड के सामान बेचने वाली यह कम्पनी 2017 में ही न्यायालयों द्वारा जान बूझ कर अपने उधार वापस ना करने की दोषी बतायी गयी थी। बैंकों के साथ सांठ-गाँठ में यह कम्पनी घाटे में जाते हुए भी विभिन्न बैंकों से जनता के संचित 12,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ा ले कर चुकाने से मुकर चुकी थी। इस पैसे में बड़ा हिस्सा सरकारी बैंकों का ही था।
रूचि सोया का पतंजलि के हांथों में आने की कहानी में भी कई संदिग्ध पहलु हैं। 12,000 करोड़ का उधार वसूलने के लिए कम्पनी को नीलाम करके भी बैंकों ने खुद का घाटा करते हुए मात्र 43,000 रु में बाबा रामदेव को रूचि सोया बेच दी, जबकि उस समय तक अदानी की कंपनी इसके लिए 6000 करोड़ तक देने के लिए तैयार थी। वहीं इस ख़रीद में भी पतंजलि ने 32,000 करोड़ रुपये इन्हीं बैंकों से उधार पर लिया हैं। कई ऋण विश्वस्तता परखने वाली कम्पनियों द्वारा पतंजलि समूह की कारोबारी चलन की अपारदर्शी और गैर-पेशेवराना के कारण इनकी रेटिंग कम कर देने पर जब बैंक इन्हें क़र्ज़ देने में हिचक रहे थे तो स्वयं वित्तीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों को सार्वजनिक बयान में धार्मिक संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे कारोबारों को ऋण देने में ना हिचकने की सलाह दी। रूचि सोया को घाटे में पतंजलि को बेचने के पीछे भी बैंकों पर ऊपर से दबाव दिए जाने का अंदेशा है।
भ्रष्टाचारी पूंजीवाद और अवैज्ञानिक सोच का लाभदायक मेल
2006 में स्थापित पतंजलि आयुर्वेद, आयुर्वेदिक औषधि बनाने से शुरुआत कर के 2010 तक “फ़ास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स” यानी दैनिक उपभोग वस्तुओं का उत्पादन करने लगा और 2016-17 में इस वर्ग में स्थापित नेस्ले और गोदरेज जैसी कम्पनियों से ज्यादा मुनाफा कमाने लगी थी। राजनैतिक सहयोग और आयुर्वेद के नाम पर अन्धविश्वासी अवैज्ञानिक मानसिकता का प्रचार यह दोनों ही पतंजलि आयुर्वेद और इसके मुखिया बाबा रामदेव की सफलता में केन्द्रीय रहे हैं। जहाँ अभी कोरोना के दौर में “कोरोनिल” के नाम पर कोरोना की अपरीक्षित दवाई बना कर पतंजलि ने अंधविश्ववास की मार्केंटिंग से मुनाफा कमाने की कोशिश की, इसी तरह वे पहले भी औरतों के लिए बेटों को जन्म देने का आयुर्वेदिक उपचार, कैंसर और समलैंगिकता के उपचारों के अविष्कार के भी दावे किये हैं। इस पूरे दौर में ना केवल इन्हें हर कदम पर सरकारी सहयोग मिला है बल्कि मोदी सरकार के प्रति इनकी खुली पक्षधरता 2014 के बाद से इनके विस्तार में एक एहम भूमिका निभाती नज़र आती है। रूचि सोया का अधिग्रहण इस सम्बन्ध का मात्र एक उदाहरण है।