दलित बेटी से रेप-हत्या पर आक्रोश : पितृसत्तात्मक सोच से लड़ना होगा!

महिला विरोधी उपभोक्तावादी संस्कृति के विरोध में संघर्ष करना होगा
09 साल की दलित बेटी के साथ ब्लात्कार और उसकी हत्या के विरोध में क्रांतिकारी नौजवान सभा द्वारा जयपुर के मालवीय नगर में रैली निकालकर आक्रोश प्रदर्शन हुआ तो पंतनगर में इंकलाबी मजदूर केन्द्र एवं ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर तथा प्रगतिशील महिला एकता केंद्र द्वारा पुतला दहन हुआ।
कार्यकर्ताओं ने कहा कि अभी हाथरस में बच्ची के बलात्कार की घटना को एक साल भी नहीं हुआ की एक और हैवानियत दिल्ली कैंट की हमारे सामने है। 9 साल की बच्ची के साथ मंदिर में पुजारी सहित 4 लोगों ने बलात्कार करके उसको मौत के घाट उतार दिया।
पितृसत्तात्मक सोच जो समाज में अंदर हर इंसान का नज़रिया महिला विरोधी गढ़ रही है। महिलाओं दलितों के प्रति भारतीय समाज का रैवाया अभी भी वही है जो आज से सैकड़ों साल पहले था।
वक्ताओं ने कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक हर दिन भारत में 10 दलित महिलाओं का बलात्कार होता है। बलात्कार के अलावा भी आज महिलाएं तरह-तरह के शोषण सहती है, और ख़ासकर दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों से संबन्ध रखने वालीं। ब्राह्मणवादी- पितृसत्तात्मक समाज में एक महिला उसकी जाति के कारण भी अधिक शोषण झेलती है।
जयपुर (राजस्थान) में आक्रोश प्रदर्शन
8 अगस्त को दिल्ली कैंट में किए गए 9 साल की दलित बच्ची के साथ बलात्कार और जलाकार हत्या के ख़िलाफ़ मालवीय नगर , जयपुर में क्रांतिकारी नौजवान सभा द्वारा रैली निकालकर आक्रोश प्रदर्शन किया गया।

वक्ताओं ने कहा कि हम पुराने अनुभवों से पाते है कि महिलाओं के साथ बढ़ते बलात्कार और हिंसा की घटनाओं का ज़िम्मेदार दलाल पुलिस प्रशासन और ढीली न्यायव्यवस्था है। हाथरस में पुलिस ने जबरन पीड़िता का शव आधी रात को जला दिया ताकि सबूत मिटा सके और मीडिया और बाकी लोगों को पीड़िता के परिजनों से मिलने तक नहीं दिया। हर बार पुलिस महिलाओं दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले में अपराधियों, दबंग जाति और नेताओं के पक्ष मे खड़ी नजर आती है। पुलिस आमजन में खौफ और अपराधियों में विश्वास बनाने का काम कर रही है।
साथ ही ढीली न्याय व्यवस्था भी पूरी ज़िम्मेदार है। महिलाओं पर किए गए हिंसा के मुकदमों का नतीजा आते-आते ही सालों साल बीत जाते है। खुद कोर्ट का महिला विरोधी बयानबाजी करते नजर आना, फास्ट ट्रैक अदालतों की सही व्यवस्था न होना आदि ऐसी कमिया है जो महिला के साथ अन्याय को बढ़ावा देते है।
आज महिलाएं दोहरे चक्की में पीस रही है और हिंस्र घटनाओं का शिकार बन रही है।
एक तरफ देश में सालों से मौजूद पितृसत्तात्मक व्यवस्था की मौजूदगी और वर्तमान दौर में आरएसएस की फासीवादी सोच देश में महिलाओं और दलितों के शोषण को और भी तेज़ी से बढ़ा रही है। नारी की गुलामी फासीवाद के सबसे बड़े आधारों में से एक है।
दूसरी तरफ महिला श्रम के शोषण पर ही पूंजीवादी शोषण भी टिका है। बजारवादी, उपभोक्तावादी संस्कृति और अश्लील साहित्य, फिल्मों और पोस्टों से महिला उपभोग की वस्तु बन गई है।
विरोध में पंतनगर (उत्तराखंड) में पुतला दहन किया
7 अगस्त को इंकलाबी मजदूर केन्द्र, ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर तथा प्रगतिशील महिला एकता केंद्र द्वारा विरोध में शहीद स्मारक पंतनगर पर सभा हुई और महिला विरोधी पतित उपभोक्तावादी अश्लील संस्कृति, पुरुष प्रधान मानसिकता एवं केन्द्र सरकार का पुतला दहन हुआ।

सभा में वक्ताओं ने कहा कि दिल्ली में मोदी सरकार की नाक के नीचे घृणित अपराध दिखाता है कि समाज के अंदर छोटी बच्चियों सहित कोई भी महिला सुरक्षित नहीं है। बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का हस्र समाज में, शासन सत्ता और पुलिस विभाग में बैठे लोग महिलाओं को केवल वस्तु समझते हैं। इसके कारण में वह लोग हैं जो कि पुरुष प्रधान सवर्ण मानसिकता सोच से ग्रस्त लोग हैं। जो अपराधियों को दंड देने के बजाय बचाने का काम करते हैं।
आज पूंजीवादी-साम्राज्यवादी पतित उपभोक्तावादी अश्लील संस्कृति इसके कारणों में है। जहां पर पूंजीपति वर्ग अपने माल बेचने मुनाफे के लिए विज्ञापन के जरिए महिलाओं के अधनंगे शरीर की नुमाइश करता है। महिलाओं को अश्लील फिल्में, अश्लील पोस्टर, गाने सहित तमाम तरह की महिला विरोधी संस्कृति है जो इस तरह के अपराधियों का निर्माण करती है और जो इन बच्चियों को भी नहीं छोड़ती है।
हमें महिला विरोधी उपभोक्तावादी संस्कृति और पुरुष प्रधान मानसिकता के विरोध में संघर्ष करना होगा। महिलाओं को तभी इस तरह के अपराधियों से मुक्ति मिलेगी।