“हमारी क्रांतिकारी विरासत ही हमारे समय में हमारा मार्गदर्शन करेगी” -प्रो. जगमोहन

जन इतिहासकार और संस्कृतिकर्मी प्रो लालबहादुर वर्मा स्मृति व्याख्यान: ‘क्रांतिकारी विरासत और आज का समय’ पर सारगर्भित व विचारोत्तेजक चर्चा; ‘अतीतग्रस्तता’ और ‘इतिहास बोध’ के बीच विरोधाभास रेखांकित।
देहरादून (उत्तराखंड)। प्रो. लाल बहादुर वर्मा की स्मृति में इतिहास बोध मंच द्वारा आयोजित व्याख्यान में देहरादून आए प्रो. जगमोहन ने ‘क्रांतिकारी विरासत और आज का समय’ विषय पर अत्यंत सारगर्भित और विचारोत्तेजक विचार प्रस्तुत किया।
यह इस शृंखला का दूसरा व्याख्यान था। पहला व्याख्यान पिछले साल इसी महीने में आयोजित किया गया था जिसमें वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक आनन्द स्वरुप वर्मा ने ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ विषय पर व्याख्यान दिया था।
पंजाब से आये मानवाधिकार कार्यकर्ता साथी नरभिंदर ने प्रो. लाल बहादुर वर्मा और प्रो. जगमोहन को दर्शकों से परिचित कराया, जो प्रो. जगमोहन के साथी हैं और दोनों पंजाब में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स का संचालन कर रहे हैं। प्रो. जगमोहन शहीद-ए-आजम भगत सिंह के भांजे हैं, जो पहली बार भगत सिंह की रचनाओं को संग्रहित और प्रकाशित करने के लिए जाने जाते हैं।

नरभिंदर ने प्रो. वर्मा के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों के बारे में बताया और कहा, कि मैं उनके संपर्क में तब से था जब उन्होंने इतिहास बोध पत्रिका का पहला अंक प्रकाशित किया था और हमारे संगठन ने उनमें से कई लेखों का पंजाबी में अनुवाद और प्रकाशन करके उसे वितरित किया। उन्होंने आगे कहा कि प्रो. वर्मा ए सी कमरे में आराम फरमाने वाले विद्वान नहीं थे। वे ऐसी शख्सियत थे जो इतिहास को जानने और समझने, इतिहास सीखने-सिखाने तथा नया इतिहास रचने के लिए जनता के बीच जाते थे।
प्रो. जगमोहन ने ‘क्रांतिकारी विरासत और आज का समय’ विषय पर ‘अतीतग्रस्तता’ और ‘इतिहास बोध’ के बीच विरोधाभास से चर्चा शुरू की। उन्होंने प्रो. वर्मा के शब्दों को उद्धृत किया कि “अतीतग्रस्तता व्यक्ति को रूढ़िवादी, पुरातनपंथी, संकीर्ण, हताश, असंतुष्ट और प्रतिक्रियावादी बना देता है। यही प्रवृति आजकल लोकप्रिय है, अतीत ग्रस्त होना। अतीतग्रस्तता एक नकारात्मक समझ है जबकि इतिहास बोध सही नजरिया है। इतिहास बोध एक व्यक्ति को मुक्त, उदार, आशावान, समदृष्टि, प्रगतिशील बनाता है।”
उन्होंने विस्तार से समझाया कि इतिहास को देखने के इन दोनों दृष्टिकोणों का आधार एक ही है — अतीत, लेकिन दोनों एकदम विपरीत हैं। एक पीछे खींचता है, दूसरा आगे बढ़ाता। एक आंख का पर्दा है और दूसरा सही दृष्टिकोण है…।

उन्होंने कहा- “प्रो. वर्मा ने कहा था कि इतिहास में बहुत सारी कहानियाँ हैं, पर इतिहास बोध एक दृष्टिकोण है, एक चुनौती भी है कि हम इतिहास से क्या सीखते हैं और हमने उसे कितना अपनाया है।” उन्होंने कहा कि “भगत सिंह भी ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने इतिहास की जटिलताओं से जो समझा, उसे व्यावहारिक रूप में लागू किया।”
इतिहास से कई उदाहरण देते हुए, प्रो. सिंह ने बताया कि 1857 का सिपाही विद्रोह कभी-कभी जागीरदारों का आंदोलन माना जाता है, लेकिन इतिहास का विश्लेषण, ब्रिटिश नीति और उनकी विचारधारा के स्तर पर, हमें उस घटना की व्यवस्थागत प्रकृति को बताता है। यह संकट असाधारण था और इसने लोगों को 1857 में विद्रोह के लिए उकसाया जब एक गाँव के 1000 लोगों ने खेती पर अंग्रेजों के शोषणकारी नियंत्रण के खिलाफ खुद जागीरदारी को नष्ट कर दिया।
उन्होंने बताया कि इसी तरह, लोगों की एकता ब्रिटिशों के लिए एक नीति का मुद्दा था और इसलिए उन्होंने रॉलेट एक्ट लागू किया। लाहौर और अमृतसर में रॉलेट एक्ट के खिलाफ विद्रोह के अद्भुत उदाहरण हैं, जहां लोग साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन करते थे, हिन्दू-मुस्लिम एक ही लंगर में खाना खाते, एक दूसरे की देख-भाल करते और साथ ही त्यौहार मनाते थे; ये सभी पहलू ब्रिटिश हुकूमत के लिए चुनौती बन गए थे।
उन्होंने जोड़ा कि यह इतिहास बोध का हिस्सा है और हमें यह सीखना चाहिए कि धर्म, जाति आदि से ऊपर उठकर, जनता की आपसी एकता ने हमेशा जन आंदोलनों को जन्म दिया है।

1920 के दशक के महान आंदोलनों को याद करते हुए प्रो. सिंह इतिहास बोध की प्रकृति को परिभाषित किया। इसके लिए उन्होंने उत्तरी भारत में भगत सिंह की नौजवान भारत सभा की स्थापना, दक्षिण में पेरियार का तर्कवादी और समाजवादी आंदोलन, महाराष्ट्र में अंबेडकर का दलितों को शिक्षित करने का आंदोलन, आदि को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि “भगत सिंह का ‘साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा और उसके पीछे की सोच गदर पार्टी की विरासत के अनुरूप थी। जबकि गांधी का आंदोलन आम जनता को राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल करने में सफल रहा। हमें इन दोनों तरीकों से समस्या को समझना और सीखना चाहिए।”
प्रो. सिंह ने एक चेतावनी के साथ अपना व्याख्यान समाप्त किया कि इस साल जून के बाद का समय चुनौतीपूर्ण होगा, चाहे लोकसभा चुनावों में कोई भी पार्टी सत्ता में आए। उन्होंने आने वाले समय में कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली नई साम्राज्यवादी नीतियों की ओर संकेत किया। साथ ही उन्होंने कहा कि हमारी क्रांतिकारी विरासत अत्यंत महत्वपूर्ण है और वही हमारे समय में हमारा मार्गदर्शन करेगी।
कार्यक्रम में स्थानीय लोगों के आलावा दूर-दूर से आये बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया जिनमें वरिष्ठ पत्रकार आनन्दस्वरूप वर्मा, राजनितिक कार्यकर्ता व ‘मेहनतकश’ के संपादक मुकुल, प्रोफेसर भूपेश कुमार सिंह, विक्रम प्रताप, प्रवीन, परमेन्दर, अशोक कंवर, अरविन्द शेखर, विप्नेश गौतम, उषा नौडियाल, अपर्णा, गीता गैरोला, प्रियंवदा अय्यर, उमा भट्ट, बीजू नेगी, त्रिलोचन भट्ट, सोहन सिंह रावत, जितेन्द्र भारती, राजेश पाल, अरुण असफल, राकेश अग्रवाल, संजीव घिल्डियाल, समदर्शी बर्थवाल, रवि चोपड़ा प्रमुख नाम हैं।

कार्यक्रम का संचालन गार्गी प्रकाशन के प्रकाशक और देश-विदेश पत्रिका के संपादक दिगंबर ने किया तथा अध्यक्षता प्रसिद्ध कवि और सामाजिक कार्यकर्ता राजेश सकलानी ने की। इतिहास बोध मंच की ओर से कैलाश नौडियाल ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस अवसर पर प्रवाह सांस्कृतिक मंच, मेरठ और सतीश धौलाखंडी के जन गीतों को भी दर्शकों ने काफी सराहा।
(प्रस्तुति— कुशल)