उड़ीसा अपडेट: सार्वजनिक बैठक में बॉक्साइट खनन और लादे गए मुक़दमों का तीखा विरोध

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वेदांता को दिए गए कांट्रैक्ट को वापस लेने की मांग के साथ प्रस्ताव पारित: पुलिस के साये में हुई जन सुनवाई, लोगों ने सर्वसम्मति से खनन परियोजना के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया।

ओडिशा में बॉक्साइट खनन के लिए वेदांता और अडानी समूह को वनभूमि पट्टे पर देने के खिलाफ आदिवासी अधिकार संगठन और कार्यकर्ता लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच ओडिशा में वेदांता की सिजीमाली बॉक्साइट खनन परियोजना की पर्यावरण मंजूरी के लिए ओपीएससीबी और जिला प्रशासन द्वारा जन सुनवाई आयोजित हो रही है।

पुलिस के भारी आतंक के बीच 16 अक्टूबर को रायगढ़ा के काशीपुर ब्लॉक में सार्वजनिक सुनवाई हुई, जबकि 18 अक्टूबर को कालाहांडी जिले के थुआमुल रामपुर ब्लॉक में केरपई हाई स्कूल परिसर में दूसरी सार्वजनिक सुनवाई हुई। इन जन सुनवाईओ के बीच ओपीएससीबी और जिला प्रशासन को स्थानीय आदिवासियों के जोरदार विरोध का सामना करना पड़ा।

सिजिमाली और नियमगिरि के लोगों पर लादे गए मामलों की स्थिति के साथ-साथ आयोजित दो जनसुनवाई में बॉक्साइट खनन के विरोध में जोर शोर से किए गए तीखे विरोध के बाद हाल ही में (29 अक्टूबर) आयोजित सार्वजनिक बैठक आयोजित हुई, जिसका संक्षिप्त ब्योरा प्रस्तुत है-

अगस्त की शुरुआत से दक्षिण ओडिशा के खनिज संपन्न इलाक़ों के प्रमुख कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों पर किया गया चौतरफा दमन अक्टूबर में हुई जनसुनवाई के दौरान भी जारी रहा। जन सुनवाई वाली जगह की ओर जाने वाली हर सड़क पर पुलिस की भारी मौजूदगी के बावजूद, परियोजना का विरोध कर रहे ग्रामीणों ने खुद को संगठित करने और जनसुनवाई में अपना विरोध दर्ज कराने के लिए काफ़ी मेहनत और मशक्कत की। बंतेजी और कंतामल दोनों जगहों पर जन सुनवाई में जाने से लोगों को रोकने के लिए तैनात पुलिस को महिलाओं ने पीछे धकेल दिया।

काशीपुर एक्सक्यूटिव मजिस्ट्रेट ने धारा 107 के तहत कई गांवों की लगभग 40 महिलाओं और पुरुषों को उसके सामने पेश होने के लिए कारण बताओ नोटिस दिया। साथ ही 19 अक्टूबर तक उस नोटिस का जवाब देने को कहा है जिसमें कहा गया है कि शांति उल्लंघन के लिए उन्हें क्यों नहीं एक साल के लिए शांति बांड पर हस्ताक्षर करना चाहिए? यह एक विरोधाभास है कि जज ने अपनी ज़मीन को बचाने के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार को महज कानून और व्यवस्था और अशांति का मुद्दा बना दिया।

जब कृष्णा सिकोका को अदालत में पेश किया गया और पुलिस आरोप पत्र पेश किए तो उसमें 2015 और 2022 की एफआईआर के आधार पर दो और मामले थोप दिए गए थे। बाद में उन्हें यह भी पता चला कि उन्हें 2017 के एक अन्य मामले में रिमांड पर लिया गया दिखाया गया है। उनके जमानत के लिए परिवार ने हाईकोर्ट का दरवाजा़ खटखटाया है।

हालाँकि काशीपुर एफआईआर में नामित 32 ग्रामीणों ने हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत हासिल कर ली, लेकिन जमानत बांड के रूप में हरेक को 3,000 रुपये राशि देनी पड़ी। ऐसे जुर्माना लगाना हाशिए पर रह रहे आदिवासी लोगों के लिए बहुत क्रूर सज़ा है। यह एक राजनीतिक हमला है और अपनी ज़मीन और जंगल बचाने वाले लोगों के लिए जानबूझ कर दी गई सज़ा से कम नहीं है।

जन सुनवाई से एक सप्ताह पहले आतंक का साम्राज्य चरम पर था। कुछ गांवों में मोटरसाइकिलें चोरी हो गईं और उसके जवाब में पुलिस की एक टीम ने कथित तौर पर बाइक चोरों की तलाश में गांवों में धर पकड़ शुरू कर दी। लेकिन इसी बहाने उन्होंने लक्ष्मी नाइक के घर पर भी छापा मारा। संयोग से वह पुलिस को चकमा देकर घर से भागने में कामयाब रहीं। पुलिस ने खेतों और जंगलों में उनका पीछा किया। अंत में पुलिस लक्ष्मी के घर से जो भी क़ीमती सामान मिला लेकर चली गई।

यहां सरकार और कंपनी की सांठगांठ बिल्कुल साफ़ है, क्योंकि ये समुदाय को बांटने के लिए सभी हथकंडों का इस्तेमाल करते हैं। प्रशासन के पूरे मौन समर्थन से कंपनी के मुनाफे के लिए आपराधिक कानूनों अंधाधुन इस्तेमाल किया जा रहा है। कानून का इस्तेमाल कभी हथियार के रूप में तो बच निकलने के तौर पर किया जा रहा है। कंपनी के एजेंट रिश्वत लेकर गांवों में गए और यहां तक कि जेल में बंद लोगों या एफआईआर में नामित लोगों को कानूनी मदद देने की पेशकश भी की। लेकिन प्रमुख नेताओं ने इस चालबाज़ी को भांप लिया और कंपनी या उसके किसी भी प्रतिनिधि से कोई भी मदद लेने इनकार कर दिया।

ये बहुत प्रेरणास्पद है कि आदिवासी और दलित समुदाय दमन के बावजूद कानूनी तौर पर और अपनी सामूहिक ताकत के जरिए लड़ाई जारी रखे हुए हैं। वे जन सुनवाई में हाज़िर हुए, अपनी अग्रिम जमानत के लिए भुगतान किया और हाईकोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके बाद भी जेल में बंद उमाकांत नाइक की मां रुदुना माझी को जनसुनवाई में बोलने की इजाजत तक नहीं दी गयी।

काशीपुर ब्लॉक से गिरफ्तार किए गए लोगों की जमानत पर सुनवाई आखिरकार आज हुई और न्यायाधीश ने अभियोजन पक्ष के वकील से 10 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई में मामले पर अपडेट देने को कहा। यदि यह ‘इंसाफ़ में देरी का मतलब इंसाफ़ न देना’ नहीं तो क्या है?

एक अच्छी खबर भी है! जैसे ही जनता विरोध करने वाले आदिवासियों के समर्थन में उतर गई, नियमगिरि से जुड़े 9 कार्यकर्ताओं के खिलाफ यूएपीए को आरोप पत्र से हटा दिया गया! कानून की मनमानी इसके लागू करने और रद्द करने दोनों में साफ़ हो गई। कथित तौर पर जिस अधिकारी पर हमला किया गया, उसकी मेडिकल रिपोर्ट में केवल ‘साधारण चोट’ दिखाई गई थी।

जेल में बंद नियमगिरि के उपेन्द्र बाग के मामले में पुलिस ने दावा किया कि वह अन्य पांच मामलों में शामिल हैं। हालाँकि, वह न तो उनमें शामिल हैं और न ही उन मामलों में उनकी संलिप्तता को साबित करने वाला अदालत में कोई दस्तावेज ही मौजूद है। फिर भी, उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया और उन आरोपोंम को ही कारण बताया गया।

बीते 29 अक्टूबर को कालाहांडी जिले के थुआमल रामपुर ब्लॉक के तालामापदर गांव में 2000 से अधिक लोगों ने एक विशाल सभा की। सभा का मकसद समुदायों में एकजुटता को मजबूत करना और सिजिमाली पहाड़ियों में बॉक्साइट खनन के खिलाफ एकजुट होकर विरोध जारी रखने के अपने संकल्प को दोहराना था। मंच पर कालाहांडी जिले के थुआमल रामपुर ब्लॉक और रायगड़ा जिले के काशीपुर ब्लॉक की विभिन्न पंचायतों के महिला और पुरुष नेता मौजूद थे। गंधमर्धन और नियमगिरि आंदोलन के अनुभवी कार्यकर्ताओं, वामपंथी ट्रेड यूनियनों और अन्य लोकतांत्रिक समूहों के सदस्यों ने भी बैठक में भाग लिया और अपनी एकजुटता दिखाई।

बैठक में वेदांता को दिए गए कांट्रैक्ट को वापस लेने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया, क्योंकि 16 और 18 अक्टूबर को ओएसपीसीबी और जिला प्रशासन द्वारा आयोजित दो जन सुनवाई में लोगों ने सर्वसम्मति से खनन परियोजना के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया था। इसमें कहा गया है कि काशीपुर और थुआमल रामपुर जैसे अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की सहमति के बिना सरकार ने अवैध रूप से सिजिमाली और कुटरुमाली पहाड़ियों को खनन के लिए कंपनियों को पट्टे पर दे दिया है। इसके अलावा, व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों दावों को आमंत्रित करने और दावेदारों को पट्टा देने की प्रक्रिया नहीं की गई है, जो वन अधिकार अधिनियम, 2006 का उल्लंघन है। इसके बजाय सरकार को वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत तुरंत उनके भूमि अधिकारों से संबंधित उनके दावों को निपटाने और मान्यता देने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।

ग्रामीणों ने कंपनी के एजेंटों द्वारा खनन का विरोध नहीं करने वालों को 1500 रुपये प्रति माह देने की कोशिशों की निंदा की और सवाल उठाया कि क्या सरकार या उसकी कंपनी के एजेंटों को कभी पहाड़ की कीमत पता है और उनके वजूद और सम्मान के लिए इसका क्या मतलब है!

महिलाओं ने पुरजोर तर्क दिया कि उनकी गरिमा पहाड़, जमीन और जंगल से जुड़ी है। यह उन्हें पैसे के लिए व्यापार करने की अनुमति नहीं देता है। जब उनकी पहचान ही उनके निवास स्थान से जुड़ी है तो वे पुलिस या कंपनियों से कैसे डर सकते हैं। उन्होंने संकल्प लिया कि वे अपने गांवों से जुड़े रहेंगे और आखिरी दम तक लड़ेंगे। धरती माता को कभी ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती और जमीन से जुड़े रहने से जो विनम्रता आती है, उससे अधिक गहरी कोई विनम्रता नहीं है। जड़ों से जुड़े रहना ही उनकी ताकत, उनकी गरिमा और लड़ने की उनकी इच्छा का स्रोत है।

वेदांत वापस जाओ!
सिजिमाली से हाथ छुड़ाओ!!

#SijimaliMatters

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